Hotel Oberoi Owner: ओबेरॉय होटल्स एंड रिसॉर्ट्स का नाम सुना होगा, 7 देशों में इस होटल की चेन चल रही है. दर्जनों फाइव स्टार होटल और रिसॉर्ट्स चेन चलाने वाली ओबेरॉय ग्रुप की करोड़ों की संपत्ति आज सबको दिख रही है, लेकिन इसके पीछे की सालों की मेहनत सब नहीं देख पाते हैं.
Oberoi Hotel Success: अक्सर लोग यही सोचते है अगर करोड़ों का बैंक बैलेंस हो, विरासत में करोड़ों की संपत्ति मिली हो, तभी बिजनेस में हाथ आजमाना चाहिए, लेकिन साधारण परिवार के मोहन सिंह ओबेरॉय ने इस धारणा को गलत साबित कर दिया. न तो उनके पास बैंक बैलेंस था, न कारोबार का अनुभव और न ही विरासत में मिली दौलत. महीने का सिर्फ 50 रुपये कमाने वाले मोहन सिंह ओबेरॉय ने 25000 करोड़ रुपये की होटल चेन की नींव रख दी.
ओबेरॉय होटल्स एंड रिसॉर्ट्स का नाम सुना होगा, 7 देशों में इस होटल की चेन चल रही है. दर्जनों फाइव स्टार होटल और रिसॉर्ट्स चेन चलाने वाली ओबेरॉय ग्रुप की करोड़ों की संपत्ति आज सबको दिख रही है, लेकिन इसके पीछे की सालों की मेहनत सब नहीं देख पाते हैं. कैसे पाकिस्तान से भारत आए एक साधारण से लड़के ने कर्ल्क की नौकरी करके इस होटल की शुरुआत की.
मोहन ओबरॉय ने परिवार को पेट पालने के लिए अपने चाचा की जूते की फैक्ट्री में काम करना शुरू कर दिया. लेकिन भारत-पाकिस्तान में हुए विभाजन के बाद भड़के दंगे के कारण फैक्ट्री बंद हो गई. अब उन्हें अपना सब कुछ छोड़कर शिमला आना पड़ा, जहां उनकी नई शुरुआत हुई.
पाकिस्तान के झेलम के रहने वाले मोहन सिंह ओबेरॉय के सिर से पिता का साया बहुत जल्द छूट गया. घर-परिवार की जिम्मेदारी इनके माथे पर आ गई. परिवार का पेट पालने के लिए उन्होंने शिमला के एक होटल में रिसेप्शनिस्ट की नौकरी कर ली. उनके काम से प्रभावित होकर उन्हें होटल के हिसाब-किताब की जिम्मेदारी सौंप दी गई, शिमला के सेसिल होटल में काम करते हुए उन्होंने होटल इंडस्ट्री को बहुत करीब से देखा.
होटल में कर्ल्क की नौकरी के दौरान उन्हें 50 रुपये की सैलरी मिलती थी. इसी सैलरी से घर परिवार भी चलाना था और सेविंग भी करनी थी. उन्होंने अपनी मेहनत, ऊर्जा और तेज दिमाग ने होटल के अंग्रेज मैनेजर पर गहरा प्रभाव डाला. उन्होंने ड्यूटी से आगे बढ़कर एक्स्ट्रा काम किया. यहीं उनकी सफलता की सीढ़ी बनी. कुछ साल बाद जब होटल के अंग्रेज मैनेजर ने एक छोटा होटल खरीदा, तो ओबेरॉय को अपने साथ काम के लिए बुला लिया. होटल की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी.
अपनी सेविंग, पत्नी के गहने बेचकर साल 1934 में मोहन सिंह ओबेरॉय ने उस होटल को खरीद लिया, जहां वो पहले काम करते थे, क्लार्क होटल को खरीदकर होटल कारोबार में कदम रखा. इसके बाद से उन्होंने अपनी पूरी जी-जान लगा दी और होटल से खूब मुनाफा कमाया. अपना पहला होटल ‘द क्लार्क होटल’ (The Clarkes Hotel) की कमाई से ही उन्होंने अपना पूरा कर्ज उतार लिया और कोलकाता में 500 कमरे का एक और होटल खरीदा. धीरे-धीरे उन्होंने एसोसिएटेड होटल्स ऑफ इंडिया (AHI) के शेयरों में निवेश किया. इस ग्रुप के पास शिमला, दिल्ली, लाहौर, मुर्री, रावलपिंडी और पेशावर में कई होटल थे. साल 1943 में उन्होंने इसपर कंट्रोल हासिल कर लिया और देश के सबसे बड़े होटल चेन के मालिक बन गए.
साल 1965 में दिल्ली में द ओबेरॉय इंटरकॉन्टिनेंटल और 1973 में मुंबई में 35-मंजिला ओबेरॉय शेरेटन बनाने के साथ उन्होंने नया मुकाम हासिल किया. आज उनका कारोबार 32 देशों में फैला है. भारत के अलावा चीन, यूएई, ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका के अलावा और भी कई देशों में ओबेरॉय होटल और रिसॉर्ट्स हैं. ओबेरॉय ग्रुप के फाउंडर को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. साल 2002 में 103 साल की उम्र में मोहन सिंह ओबेरॉय का निधन हो गया. अब ओबेरॉय के कारोबार को उनके बेटे देखते हैं. ओबेरॉय ग्रुप की दो लिस्टेड कंपनियां EIH लिमिटेड और EIH एसोसिएटेड होटल्स लिमिटेड है, जिसका कुल मार्केट कैप करीब 25,000 करोड़ रुपये है.
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