स्वामी श्रील प्रभुपाद के 150वीं जन्मोत्सव में PM मोदी होंगे शामिल, जानें ISKCON की स्थापना में क्या था इनका योगदान
Swami Srila Prabhupada: 9 फरवरी 2024, शुक्रवार के दिन दिल्ली के प्रगति मैदान में श्रील प्रभुपाद के 150वीं जन्मोत्सव पर विश्व सम्मेलन का आयोजन होने जा रहा है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होने जा रहे हैं. जानें कौन हैं स्वामी श्रील प्रभुपाद और इस्कॉन की स्थापना में इनका क्या है हाथ.
स्वामी श्रील प्रभुपादा जन्मोत्सव
स्वाम श्रील प्रभुपाद को देशभर में कृष्ण भक्त के नाम से जाना जाता है.दरअसल, इन्होंने ही दुनियाभर में हरे-कृष्ण आंदोलन की शुरुआत की थी. इतना ही नहीं, इन्होंने ही अमेरिका-यूरोप तक कृष्ण भक्ति की लहर दौड़ायी. 9 फरवरी को श्रील प्रभुपाद के 150 वें जन्मोत्सव के मौके पर विश्व वैष्णव सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है.
सिक्के और डाक टिकट का होगा विमोचन
बता दें कि ये सम्मेलन तीन दिवसीय है और इसका मुख्य उद्देश्य विश्वभर के वैष्णव भक्तों को मानव कल्याण और चैतन्य महाप्रभु के उपदेशों का समाज में आगे बढ़ाना है. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शामिल होंगे. साथ ही, सिक्के और डाक टिकट का विमोचन करेंगे.
कौन हैं स्वामी श्रील प्रभुपाद
बता दें कि स्वामी श्रील का जन्म 1 सितंबर 1896 को कोलकता में हुआ था. उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के संदेश को लोगों तक पहुंचाने के लिए इस्कॉन की स्थापना की. इस्कॉन की स्थापना 1966 में न्यूयॉर्क में की गई थी और वहीं पर दुनिया का पहला इस्कॉन मंदिर बना था और स्वामी श्रील का निधन 14 नवंबर 1977 को भगवान श्री कृष्ण की नगरी मथुरा के वृंदावन में हुआ था.
दुनिया में हैं 500 से ज्यादा केंद्र
ऐसा बताया जाता है कि इस्कॉन के दुनियाभर में 500 से ज्यादा केंद्र हैं. इस्कॉन गौड़ीय-वैष्णव संप्रदाय से संबंधित है. इसे वैदिक या हिंदू संस्कृति के भीतर एकेश्वरवादी परंपरा बताया जाता है. यह भगवत गीता, भगवत पुराण और श्री मद भगवत पर आधारित है. बता दें कि इस्कॉन भक्त महा-मंत्र के रूप में भगवान श्री कृष्ण के नामों का ही जाप करते हैं.
सिर्फ 2 घंटे सोते और 22 घंटे करते थे सेवा
श्रील प्रभुपाद मे कुछ ही सालों में 6 महाद्वीपों में 108 मंदिर बनवा दिए थे. अपने शिष्यों से चिट्ठी लिखकर के बात किया करते थे. 12 साल में उन्होंने पूरी दुनिया का 15 बार भ्रमण कर लिया था. बढ़ती उम्र के साथ वे कृष्ण भक्ति पर खूब किताबें लिखना चाहते थे. ताकि उनके जाने के बाद लोगों तक कृष्ण भक्ति पहुंचे. वे 22 घंटे सेवा करते और सिर्फ 2 घंटे सोते थे. बताया जाता है कि मृत्यु से पहले भी वे बोल-बोल कर भागवत गीता ट्रांसलेट कर रहे थे. ताकि अपने गुरु का आदेश पूरा कर सकें.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)