Raja Marthanda Bhairava Tondaiman Love Story: भारत की धरती पर कई ऐसी प्रेम कहानियां हैं जो दिल को छू जाती हैं. कोई अपने प्यार के लिए पहाड़ों को पार कर जाता है, कोई उसे ताजमहल जैसी इमारत में अमर कर देता है. इसी कड़ी में राजा मार्तंड तोंडियन की कहानी भी शामिल है, जिन्होंने विदेशी महिला से शादी की और अपने प्यार के लिए कई कठिनाइयों का सामना किया. उनका इश्क़ और संघर्ष आज भी लोगों के लिए प्रेरणादायक है.
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विलियम शेक्सपियर ने कहा था कि सच्चे प्यार का मार्ग कभी आसान नहीं होता. यह बात भारत के एक महाराजा पर पूरी तरह सच साबित हुई. यह कहानी है तत्कालीन पुदुकोट्टई रियासत (वर्तमान तमिलनाडु) के राजा मार्तंड भैरव तोंडाइमान (1875-1928) की है, जिन्हें भारत के पहले ऐसे राजा के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने एक विदेशी महिला से शादी करने के लिए राज-सिंहासन का त्याग कर दिया. उन्होंने प्रेम में अपना सब कुछ खो दिया और इसकी कीमत इतनी बड़ी थी कि उनकी मृत्यु के बाद उन्हें अपनी मातृभूमि की मिट्टी तक नसीब नहीं हुई. यह अद्भुत प्रेम कहानी आज भी इतिहास के पन्नों में दबी हुई है.
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राजा मार्तंड भैरव तोंडाइमान का राज्याभिषेक महज 11 वर्ष की आयु में ही हो गया था. चूंकि वह नाबालिग थे, इसलिए रियासत की बागडोर दीवान ए. शेषाचार्य शास्त्री के नेतृत्व में एक रीजेंसी संभाल रही थी. आखिरकार, वर्ष 1894 में, मद्रास के गवर्नर लॉर्ड वेनलॉक ने उन्हें पूर्ण रूप से शासन की शक्तियां सौंप दीं. युवा राजा ने गद्दी तो संभाल ली, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि नियति ने उनके लिए एक ऐसा रास्ता चुना है जो उन्हें राज-पाट से दूर ले जाएगा.
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वर्ष 1915 में, राजा तोंडाइमान ऑस्ट्रेलिया की यात्रा पर गए और मेलबर्न के होटल मैजेस्टिक में ठहरे. यहीं उनकी मुलाकात एस्मे मैरी सोरेट फिंक से हुई, जिन्हें मौली पिंक के नाम से जाना जाता था. गोल्डेन बालों, नीली आंखों और आकर्षक व्यक्तित्व वाली मौली को देखते ही राजा उन्हें दिल दे बैठे. जल्द ही यह मुलाकात प्यार में बदल गई.
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राजा ने मेलबर्न में सरकारी सांख्यिकी कार्यालय में मौली से शादी कर ली. हालांकि, इस विवाह को ऑस्ट्रेलियाई प्रेस ने कठोरता से लिया. भारत में कार्यरत ब्रिटिश सरकार ने तो इस शादी को मान्यता देने से साफ इनकार कर दिया. नतीजतन, मौली पिंक को 'महारानी' या 'हर हाइनेस' का पदनाम देने की अनुमति नहीं दी गई.
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शादी को आधिकारिक मान्यता न मिलने के कारण राजा और मौली कुछ ही महीनों तक भारत में रह पाए और वर्ष 1916 में ऑस्ट्रेलिया लौट गए. उसी साल जुलाई में, मौली ने उनके बेटे मार्तंड सिडनी को जन्म दिया. ऑस्ट्रेलिया में अपने 'स्व-निर्वासित निर्वासन' के दौरान, राजा मेलबर्न और सिडनी के रेसिंग जगत में प्रमुख हो गए. उनके घोड़े ने कई प्रतियोगिताओं में बड़ी जीत हासिल की और उन्हें काफी वित्तीय सफलता मिली.
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जैसे-जैसे समय बीतता गया, यह साफ हो गया कि ब्रिटिश अधिकारी राजा के बेटे मार्तंड सिडनी को रियासत का कानूनी वारिस घोषित नहीं करेंगे. इस राजनीतिक गतिरोध को समाप्त करने के लिए राजा ने एक बड़ा फैसला लिया. उन्होंने रीजेंसी को स्वीकार करते हुए, स्वेच्छा से अपना सिंहासन छोड़ने का फैसला किया. इसके बदले में, उन्हें अच्छा-खासा वित्तीय मुआवज़ा और वार्षिक भत्ता दिया गया. इसके बाद वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ फ्रांस चले गए.
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अपने जीवन के आखिरी वर्षों में राजा मार्तंड भैरव तोंडाइमान अपनी पत्नी और बेटे के साथ फ्रांस और लंदन में ही रहे. उनका निधन लंदन में हुआ. उनकी आखिरी इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों से हो, लेकिन दुखद बात यह रही कि मौली और उनके बेटे को भारत आने की अनुमति नहीं मिली. इस तरह, भारत के पहले ऐसे राजा को, जिसने प्रेम के लिए सब कुछ त्यागा, मौत के बाद भी वतन की मिट्टी नसीब नहीं हो पाई और उन्हें लंदन में ही अग्नि दी गई.
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