Aurangzeb Grave: महाराष्ट्र से शुरू होने वाला 'औरंगजेब विवाद' अब देशभर में चर्चा का मुद्दा बन गया है. औरंगजेब ने औरंगाबाद (अब छत्रपति सांभाजीनगर) में अपनी जिंदगी के 37 साल गुजारे थे और यहीं पर उसने अपनी पत्नी के लिए 'बीबी का मकबरा' भी बनवाया था. जिसे 'दक्कन का ताज' भी कहा जाता है. आखिर में 87 साल की उम्र में मौत हो जाने के बाद औरंगजेब की कब्र भी यहीं पर बनी थी, जिसे हटाने को लेकर अब जमकर सियासत हो रही है.
कहा जाता है कि औरंगेजब को औरंगाबाद काफी पसंद थी. शायद यही वजह है कि उसने अपनी 87 साल की जिंदगी में 37 साल यहीं पर गुजारे थे. इस शहर में औरंगजेब की पीर कब्र भी मौजूद है.
अपने पीर और पत्नी की कब्र भी यहीं होने की वजह से शायद उसने यह भी कहा था कि भारत में कहीं भी मेरी मौत हो जाए, लेकिन मुझे दफन किया जाना चाहिए. उसने अपनी वसीयत में लिखा था कि मौत के बाद उसे उसके गुरु सूफी संत सैयद जैनुद्दीन के पास ही दफनाया जाए.
इसके अलावा यह भी है कि उसने अपनी वसीयत में कब्र पर 'सब्जे का छोटा पौधा' लगाने की बात कही थी. जिसके बाद जब औरंगजेब की मौत हुई तो उसे औरंगाबाद के खुल्दाबाद लाया गया, जहां उसके पीर के पास ही दफनाया गया.
यहीं पर उसके बेटे ने उसकी इच्छा के मुताबिक बहुत सादगी के साथ उसी की कमाई से उसका मकबरा तैयार करवाया. कहा जाता है कि यह मकबरा औरंगजेब की कमाए हुए पैसों से ही तैयार हुआ था, जो उसने टोपियां सिलकर कमाए थे.
औरंगजेब की कब्र पर तुलसी के पौधे का भी बार-बार जिक्र सुनने में आता है. इसके पीछे की वजह उसकी वसीयत है. जिसमें औरंगजेब ने कहा था कि उसका मकबरा बहुत सादा होना चाहिए. इसे 'सब्जे' के पौधे से ढका होना चाहिए और इसके ऊपर छत भी नहीं होनी चाहिए.
शायद उसकी वसीयत की वजह से यह मकबरा बहुत सादगी और सिर्फ मिट्टी का बना हुआ है. सिर्फ एक सफेद चादर से ढका रहता है. उसकी कब्र के पास एक पत्थर लगा हुआ है, जिस पर उसका पूरा नाम दर्ज है. औरंगजेब का पूरा नाम-अब्दुल मुजफ्फर मुहीउद्दीन औरंगजेब आलमगीर लिखा है.
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