नासा की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स और उनके सेहकर्मी लगभग 9 महीने बाद धरती पर वापस आ रहे हैं. लंबे समय तक स्पेस में रहने के बाद वापस लौटना एक बड़ी चुनौती हो सकती है. क्योंकि लंबे समय तक बिना गुरुत्वाकर्षण के रहने की वजह से शरीर में कई तरह के बदलाव हो सकते हैं. शरीर को दोबारा पृथ्वी पर नॉर्मल होने में हफ्तों और महीनों का समय लग सकता है. एस्ट्रोनॉट्स को धरती पर आने के बाद थकान, चलने में दिक्कत और कमजोरी जैसी समस्या हो सकती है. एस्ट्रोनॉट्स के पृथ्वी पर आने के बाद नासा उन्हें ट्रेनिंग और मेडिकल सहायता देता है ताकि वह जल्दी नॉर्मल हो सकें.
स्पेस में शरीर को वजन सहने की जरूरत नहीं होती है जिस वजह से मांसपेशियां और हड्डियां कमजोर हो जाती है. खासकर पैर, गर्दन और पीठ की मांसपेशियां कमजोर पड़ सकती है. वापसी के बाद कई बार एस्ट्रोनॉट को खड़े होने, चलने और संतुलन बनाने में दिकक्त आ सकती है. पृथ्वी पर आने के बाद एस्ट्रोनॉट को फिजिकल थेरेपी करनी पड़ती है.
स्पेस से आने के बाद एस्ट्रोनॉट चक्कर, वर्टिगो और मोशन सिकनेस हो सकता है. इसके अलावा एस्ट्रोनॉट को लगता है कि दुनिया घूम रही है, वहीं जब वह अपना सिर हिलाएंगे तो उनका मस्तिषक पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से तालमेल बैठाने में कुछ हफ्ते का समय लें सकते हैं.
कुछ एस्ट्रोनॉट्स के साथ स्पेसफ्लाइट-एसोसिएटेड न्यूरो-ऑक्यूलर सिंड्रोम हो सकता है. जिस वजह से आंखों की रोशनी धुंधली हो सकती है. आस-पास की चीजों में फोकस करने में भी दिक्कत हो सकती है.
स्पेस से आने के बाद एस्ट्रोनॉट्स को कई बार इमोशन चुनौतियों का भी सामना करना पड़ सकता है. दरअसल स्पेस में महीनों बिताने के बाद पृथ्वी की रोशनी, आवाज, गंध और लोगों की भीड़ से वह खुद को असहज महसूस कर सकते हैं. इतना ही नहीं उनकी नींद पर भी इसका असर पड़ सकता है.
नासा एस्ट्रोनॉट्स की इन समस्याओं और परेशानियों से निपटने के लिए स्पेशल ट्रेनिंग और रिहैबिलेटेट प्रोग्राम चलाता है. इस प्रोग्राम में उन्हें मेडिकल, फिजिकल और मानसिक रूप से मजबूत बनाने की ट्रेनिंग और मदद की जाती है.
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