हल्दीराम वो नाम है, जिसका नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है. जिस ब्रांड ने मिडिल क्लास को प्रीमियम होने का अहसास दिलाया. 5 और 10 रुपये के पैकेट से देश के आम लोगों तक अपनी पहुंच बनाई.
Haldiram deal: हल्दीराम वो नाम है, जिसका नाम सुनते ही मुंह में पानी आ जाता है. जिस ब्रांड ने मिडिल क्लास को प्रीमियम होने का अहसास दिलाया. 5 और 10 रुपये के पैकेट से देश के आम लोगों तक अपनी पहुंच बनाई. वो कंपनी जिसने गुलाम भारत से लेकर आजाद भारत में खुलकर सांसें ली, अब उसके बिकने की खबर आ रही है. मिठाई और नमकीन बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी हल्दीराम में हिस्सेदारी खरीदने के लिए एक और विदेशी कंपनी ने दिलचस्पी दिखाई हैं.
भारत के नमकीन ब्रांड हल्दीराम के बिकने की खबरें आ रही है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अब अमेरिका की टाइगर ग्लोबल मैनेजमेंट की यूनिट अल्फा वेव ग्लोबल ने हल्दीराम में हिस्सेदारी खरीदने के लिए दिलचस्पी दिखाई है. कंपनी की ओर से 1 अरब डॉलर का बाइंडिंग ऑफर दिया गया है. इससे पहले दो और विदेशी कंपनियों ने हल्दीराम में 15% से 20% हिस्सेदारी खरीदने का प्रस्ताव दिया था. ब्लैकस्टोन के अलावा अबु धाबी इनवेस्टमेंट अथॉरिटी , सिंगापुर स्टेट फंड जीआईसी ने भी बोली लगाई है. हालांकि आपको बता दें कि इस डील को लेकर हल्दीराम की ओर से कोई ऑफिशियल बयान जारी नहीं किया गया है.
देश की सबसे बड़ी पैकेटबंद स्नैक और मिठाई कंपनी Haldiram को खरीदने के लिए विदेशी कंपनियों में होड़ मची है. अब तक 3 कंपनियां हल्दीराम स्नैक्स फूड में 15 से 20% की हिस्सेदारी हासिल करने की दौड़ में शामिल हैं. Blackstone और Bain Capital के बाद अब Alfa Wave Global भी इस रेस में शामिल हो गई है. सिर्फ विदेशी ही नहीं देसी कंपनियों ने भी इसे खरीदने की कोशिश की. टाटा, पेप्सीको ने भी हल्दीराम से बात की, लेकिन वैल्यूएशन के मुद्दे पर बात आगे नहीं बढ़ सकी.
हल्दीराम के पास 150 से ज्यादा रेस्टोरेंट हैं. भारत के नमकीन और स्नैक्स कारोबार में उसकी बड़ी हिस्सेदारी है. यूरोमॉनिटर इंटरनेशनल के मुताबिक, 6.2 अरब डॉलर के भारतीय नमकीन बाजार में हल्दीराम की हिस्सेदारी लगभग 13% है. कंपनी के पास पुरानी विरासत के साथ आधुनिक पीढ़ी के साथ कदम चाल मिलाने की कला है. देश के दिग्गज स्नैक्स ब्रांड ने अपनी विरासत को बचाने के साथ-साथ तकनीक का समावेश किया है. कंपनी का वैल्यूएशन 66400 करोड़ से 70500 करोड़ रुपये तक पहुंच गई है.
लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि जब सब ठीक ठाक चल रहा है तो आखिर 87 साल पुरानी यह कंपनी बिक क्यों रही है? हालांकि इससे पहले बता दें कि इससे पहले भी हल्दीराम के बेचने की कोशिश हुई थी. टाटा, पेप्सीको जैसी कंपनियों ने इसे खरीदने की कोशिश की थी. लेकिन सहमति नहीं बन पाई. अब विदेशी कंपनियां हल्दीराम के स्वाद पर अपने स्वामित्व की कोशिश कर रही है.
हल्दीराम की शुरुआत 1937 में गंगा बिशन अग्रवाल ने बीकानेर में एक छोटी से दुकान की थी. बिशन अग्रवाल ने अपनी चाची से बेसन की भुजिया बनानी सीखी और वही गली के सामने अपनी छोटी सी दुकान खोल ली. धीरे-धीरे उनका स्वाद लोगों को पसंद आने लगा. बिशनलाल को उनकी दादी हल्दीराम कहकर बुलाती थी, जिसकी वजह से उन्होंने अपने नमकीन भुजिया का नाम भी हल्दीराम ही रखा.
सोन पापड़ी से लेकर सूखे समोसे, मठरी, नमकीन भुजिया, मिक्सचर, रेडी टू ईट, बिस्किट, कुकीज जैसे स्नैक्स और स्वीट्स बनाने वाली कंपनी परिवार की नई जेनरेशन आगे बढ़ाने में बहुत दिलचस्पी नहीं दे रही है. परिवार इस कारोबार को आगे बढ़ाने में दिलचस्पी नहीं दिखा रहा. अग्रवाल फैमिली की नई पीढ़ी ने खुद को कंपनी के डे टू डे ऑपरेशन से भी अलग कर लिया. कंपनी के सीईओ पद की जिम्मेदारी संभालने के बजाए केके चुटानी को नियुक्त कर दिया. बंटवारे के बाद हल्दीराम कंपनी एक नाम एक लोगो के साथ तीन हिस्सों में कारोबार करती है. एक फैक्शन कोलकाता से, एक दिल्ली और एक नागपुर से ऑपरेट होती है. दिल्ली का बिजनेस मनोहर अग्रवाल और मधुसूदन अग्रवाल संभालते हैं तो नागपुर का बिजनेस कमलकुमार शिवकिशन अग्रवाल के पास है. इस डील में यहीं दोनों हिस्से शामिल है. कोलकाता से आपरेट होने वाला हल्दीराम का रेस्टोरेंट बिजनेस इसमें शामिल नहीं है.
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