धर्म की रक्षा करने वालों में सबसे पहले आते हैं आदि शंकराचार्य, जानें उनके जीवन से जुड़ी अनसुनी बातें
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धर्म की रक्षा करने वालों में सबसे पहले आते हैं आदि शंकराचार्य, जानें उनके जीवन से जुड़ी अनसुनी बातें

आदि शंकराचार्य 8 वर्ष की आयु में चारों वेदों के ज्ञाता हो गए थे. 12 वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों में पारंगत हो गए थे और सोलह वर्ष की आयु में उन्होंने ब्रह्मसूत्र पर शंकरभाष्य की रचना कर विश्व को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया.

12 वर्ष की आयु में शंकराचार्य सभी शास्त्रों में पारंगत हो गए थे. (फाइल फोटो)

भगवान शिव का अवतार कहे जाने वाले जगतगुरु आदि शंकराचार्य (Adi Shankaracharya) की आज जयंती है. भारतीय संस्कृति के विकास और संरक्षण में आदि शंकराचार्य का योगदान अतुलनीय है. इन्होंने ही भारत में चार मठों की स्थापना की. 

  1. बचपन से ही शंकराचार्य का रुझान संन्‍यासी जीवन की तरफ था.
  2. अकेले पुत्र होने के कारण उनकी मां नहीं चाहती थीं कि वो संन्यासी बनें.
  3. 8 वर्ष की आयु में शंकराचार्य चारों वेदों के ज्ञाता हो गए थे.

आदि शंकराचार्य आठवीं सदी में भारत के दक्षिणी राज्‍य केरल के कालपी गांव में जन्मे थे. बहुत दिन तक शिव की आराधना करने पर इनके माता-पिता को पुत्र प्राप्ति हुई, इसीलिए इनका नाम शंकर रखा गया. लेकिन तीन साल की उम्र में ही शंकर ने पिता को खो दिया. 

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बचपन से ही शंकराचार्य का रुझान संन्‍यासी जीवन की तरफ था. लेकिन अकेले पुत्र होने के कारण उनकी मां नहीं चाहती थीं कि वो संन्यासी बनें. कहते हैं, एक दिन नदी किनारे एक मगरमच्छ ने शंकराचार्य का पैर पकड़ लिया था तब मौके का फायदा उठाते हुए शंकराचार्य ने अपनी मां से कहा कि मुझे सन्यास लेने की आज्ञा दें नहीं तो ये मगरमच्छ मुझे खा जाएगा. डरी हुई मां ने तुरंत आज्ञा दे दी. और जैसे मां ने आज्ञा दी वैसे ही मगरमच्छ ने शंकराचार्य का पैर छोड़ दिया. इसके बाद 8 वर्ष की उम्र में शंकराचार्य ने संन्यास ग्रहण किया. वो श्रीगोविन्द नाथ के शिष्य बने.

8 वर्ष की आयु में चारों वेदों के ज्ञाता हो गए थे. 12 वर्ष की आयु में सभी शास्त्रों में पारंगत हो गए थे और सोलह वर्ष की आयु में उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में ब्रह्मसूत्र पर शंकरभाष्य की रचना कर विश्व को एक सूत्र में बांधने का प्रयास किया.

उन्होनें तत्कालीन भारत में व्याप्त धार्मिक कुरीतियों को दूर कर अद्वैत वेदान्त की ज्योति से देश को आलोकित किया. सनातन धर्म की रक्षा और प्रचार के लिए उन्होंने भारत में चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की और शंकराचार्य पद की परंपरा शुरू की. शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद होता है. इन चारों मठों में शंकराचार्य पद पर उन्हंने अपने चार मुख्य शिष्यों को बैठाया. ये मठ हैं उत्तर में ज्योतिर्मठ, दक्षिण में श्रन्गेरीपीठ, पूर्व में गोवर्धन मठ और पश्चिम में शारदा मठ. 

32 साल की अल्पायु में उत्‍तराखंड के पवित्र केदार नाथ धाम में उन्होंने शरीर त्याग दिया. आदि शंकराचार्य को हर साल वैशाख शुक्ल पंचमी को श्रद्धांजलि देने के लिए श्री शंकराचार्य जयंती मनाई जाती है. 

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