Chhath Puja 2020: छठ पर इस वजह से भरते हैं कोसी, जानें इसका महत्व
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Chhath Puja 2020: छठ पर इस वजह से भरते हैं कोसी, जानें इसका महत्व

जब कोई व्रती छठ पूजा (Chhath Puja) के मौके पर सूर्यदेव और छठ मैया से कोई मन्नत मांगता है और वह पूरी हो जाती है, तो उसे अगली छठ पर कोसी भरनी पड़ती है. 

छठ फाइल फोटो

नई दिल्ली. छठ पूजा (Chhath Puja) का पावन पर्व देशभर में मनाया जा रहा है. यह पर्व कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है. छठ पर्व चार दिनों तक मनाया जाता है. इसमें पहले दिन नहाय-खात, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन षष्ठी को शाम में डूबते सूर्य को अर्घ्य और चौथे दिन सप्तमी को सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. इस पर्व को बिहार, झारखंड और यूपी के लोग मुख्य रूप से मनाते हैं. माना जाता है कि सूर्यदेव और छठ की पूजा करने से उनकी कृपा सदैव आप पर बनी रहती है. आप हम आपको बताएंगे कि कैसे छठ पर्व की शुरूआत हुई और कोसी (Kosi) क्यों भरी जाती है.

  1. मनोकामना पूरी होने पर भरी जाती है कोसी
  2. सूर्यदेव और छठ मैया की करते हैं पूजा
  3. जानें कोसी भरने की विधि

महाभारत में है छठ पर्व का उल्लेख
महाभारत में छठ पर्व को लेकर उल्लेख है कि जब पांडव अपना सारा राजपाट कौरवों के हाथों हार गए थे, तब माता द्रौपदी ने राजपाट को वापस पाने के लिए षष्ठी मैया का चार दिन का व्रत किया था. उसके बाद पांडवों को उनका राजपाट वापिस मिल गया था. तब से ही छठ पर्व मनाया जाता है.

कोसी भरने की वजह 
छठ पूजा पर कोसी भरने की प्राचीन परंपरा है. दरअसल जब कोई व्रती छठ के मौके पर सूर्यदेव और छठ मैया से कोई मन्नत मांगता है और वह पूरी हो जाती है, तो उसे अगली छठ पर कोसी भरनी पड़ती है. एक तरह से यह सूर्यदेव और छठ मैया का आभार प्रकट करने का तरीका होता है. कोसी षष्ठी पर शाम को सूर्य के अर्ग्घ देने के बाद घर जाकर भरी जाती है. कोसी में लाल कपड़ में ठेकुआ, फल और केराव को रखकर सात गन्नों से बांधकर एक छत्र बनाया जाता है. उसके अंदर एक घड़ी में हाथी की मूर्ति को रखा जाता है और फिर उसके चारों तरफ दीये जलाकर पूजा की जाती है.

कोसी भरने की विधि
कोसी भरते समय सबसे पहले मिट्टी के हाथी को सिंदूर लगाया जाता है. फिर घड़े में फल, ठेकुआ. अदरक, सुथनी व अन्य सामग्री रखी जाती है. इसके बाद कोसी के चारों तरफ दीये जलाए जाते हैं. उसके बाद अर्घ्य की सामग्री से भरा सूप, डलिया, मिट्टी के ढक्कन व तांबे को बर्तन को रखकर दीये जलाए जाते हैं. फिर अग्नि में धूप डालकर हवन किया जाता है और छठी मैया की पूजा-अर्चना कर माथा टेका जाता है. उसके बाद यही प्रक्रिया सप्तमी की सुबह सूर्य को अर्ग्घ देते समय दोहराई जाती है. इस दौरान महिलाएं घाट पर छठ मैया के गीत गाती हैं.

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