Dantewada Shiv Mandi ka Rahasya: छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर सैकड़ों साल बाद आज भी रहस्य बना हुआ है. यहां पर एक ऐसा शिवलिंग है, जो लगातार अपनी धुरी पर घूमता रहता है. आखिर इसका राज क्या है.
Trending Photos
Chhattisgarh Dantewada Shiv Temple Mystery: शिव हैं, तो जीव हैं, शिव हैं तो संसार है. शिव ही सत्य, शिव ही रहस्य हैं. सनातन की परंपरा में भगवान शिव को लेकर ये मान्यताएं हजारों साल पुरानी है. वैदिक ग्रंथों में भगवान शिव को परब्रह्म कहा गया है. यानी ब्रह्मांड से भी परे. इसके रचयिता माने जाने वाले ब्रह्मा से भी बड़े. आज की स्पेशल रिपोर्ट में भगवान शिव से जुड़े इस पूरे रहस्य को समझेंगे एक अद्भुत शिवलिंग की कहानी के साथ. कहानी 1 हजार साल पुरानी है, मगर इस शिवलिंग को स्थापित करते समय ब्रह्मांड की अनुमानित आकृति का ख्याल कैसे आया, ये बात आज भी हैरान करती है.
दो पत्थरों के घर्षण से नहीं आती कोई आवाज
‘स्वयंलिंग’ है आकाश और धरती उसका आधार है. ये सब शून्य से पैदा होकर उसी की लय में सबका विलय होगा. स्कंदपुराण बताता है, ब्रह्मांड में सब नश्वर है, एक शिवलिंग को छोड़कर. इसका कोई न तो आदि है, और ना ही कोई अंत. शिव और उनका प्रतीक शिवलिंग शाश्वत हैं. पुराणों में शिव की इसी अवधारणा की वजह से उन्हें, ब्रह्मांड का अंतिम सत्य माना जाता है.
जैसे ‘शिव शक्ति’ से बढ़ता है अनंत ब्रह्मांड, वैसे ही भोले की भक्ति से ये शिवलिंग भी घूमता है. आपने ऐसा शिवलिंग कहीं नहीं देखा होगा, जो पूरे एक वृत्त में 360 डिग्री घूमता है. शिवलिंग के घूमने के दौरान दो पत्थरों के बीच ना तो कोई घर्षण होता है और ना ही पूरी परिक्रमा के दौरान कोई आवाज आती है. जबकि दो पत्थरों से बना है पीठ और इस पर स्थापित है शिवलिंग.
आप सोचिए, 11वीं सदी में, यानी आज से 1 हजार साल पहले ऐसी कौन सी तकनीक अपनाई गई होगी, जो दो पत्थरों के घर्षण में भी आवाज नहीं आए. उस दौर में पनचक्की जैसा भी कोई आविष्कार नहीं था. लेकिन ये शिवलिंग घूमता है कुछ उसी तरह से है. हैरानी ये भी नहीं, कि ये शिवलिंग स्थापित होने के 1 हजार साल से इसी तरह घुमाया जा रहा है, लेकिन ना तो दोनों पत्थरों में से कोई भी घिसा और ना ही, इसमें कोई तकनीकी खराबी आई.
सिर्फ घूमता शिवलिंग ही नहीं, बल्कि 1 हजार साल से खड़ा भगवान शिव का ये पूरा मंदिर ही कई रहस्यों को समेटे हुए है. जैसे एक ही मंदिर में दो गर्भ गृह और दो शिवलिंग. एक शिवलिंग का नाम सोमेश्वर महादेव और दूसरे शिवलिंग का नाम गंगाधरेश्वर महादेव. दोनों का निर्माण 11वीं शताब्दी के नागवंशी राजाओं ने किया था.
छत्तीसगढ़ दंतेवाड़ा मंदिर का रहस्य
1 हजार साल का इतिहास समेटे ये मंदिर भले ही खंडहर की तरह दिखता है, लेकिन पुरातत्व विभाग ने इसकी अहमियत समझते हुए 16 साल पहले इसे संरक्षित घोषित किया. क्योंकि इस मंदिर और शिवलिंग की स्थापना में अपनाई गई तकनीक कहीं और नहीं दिखती.
ये रहस्यमयी शिव मंदिर है छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में. आज ये जिला देश के सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित इलाकों में गिना जाता है, लेकिन इस जिले में एक पौराणिक नगरी भी है- बारसूर. आज से 1 हजार साल पहले ये नगरी भगवान शिव के मंदिरों के लिए जाना जाता है. बारसूर राज्य के नागवंशी राजाओं ने अपनी धरती पर 147 शिव मंदिर बनवाए थे. उनमें से कई मंदिरों का आज नाम ओ निशान नहीं, लेकिन बारसुर राज का ये मंदिर, अपने बत्तीसा रूप के साथ आज भी साक्षात है.
32 खंभों पर खड़ा, ये शिव मंदिर. इन्हीं खंभों की वजह से इसे बत्तीसा मंदिर के रूप में शोहरत मिली. वर्ना इसमें स्थित दोनों शिवलिंगों के नाम अलग अलग है. शिवलिंग से अलग इन 32 खंभों का रहस्य और भी दिलचस्प है, जो इसे आकृति के रूप में भगवान शिव से जोडता है.
32 खंभे जो इस मंदिर को चतुर्भुज का आकार देते हैं, इसमें 1 दिशा में 8 खंबे हैं. इस तरह 4 दिशाओं को मिलाकर पूरे 32 खंबे हुए. इन 32 खंभों से बना चतुर्भुज आकार ज्यामितीय परिभाषा के हिसाब से सटीक है. अब इस चतुर्भुजी आकार का भगवान शिव की अवधारणा के साथ कनेक्शन समझिए. 4 बराबर रेखाओं से बने आकार को चतुर्भुज कहते हैं.
रहस्य बना हुआ है घूमता शिवलिंग
चतुर्भुजी आकार का हर कोण 90 डिग्री का होता है. इस तरह एक चतुर्भुज के सभी कोणों योग 360 डिग्री होता है. ज्योतिष में चतुर्भुज का इस्तेमाल ब्रह्मांडीय आकार की तरह होता है. यानी मंदिर का चतुर्भुजी कनेक्शन सीधे भगवान शिव और ब्रह्मांड की परिकल्पना से जोड़ता है. ज्योतिष में ब्रहमांड को एक पूर्ण वृत के आकार का माना जाता है, जो अपने केन्द्र से लगातार बड़ा होता जा रहा है. तो क्या ये घूमता शिवलिंग एक वृत के रूप में लगातार फैलते ब्रह्मांड का कोई प्रतीक चिन्ह है?
360 डिग्री के वृत में बढ़ता ब्रह्मांड, 306 डिग्री सर्किल में घूमता शिवलिंग!
1 हजार साल पहले नागवंशी राजाओं के दौर में भी ये घूमता शिवलिंग लोगों के आकर्षण का केन्द्र था. आज भी इसी की वजह से पूरे छत्तीसगढ़ में इसकी मान्यता है. मंदिर के निर्माण में जितनी तकनीकि डिटेल का ख्याल रखा गया है, उतनी ही इसके निर्माण की प्रक्रिया बेहद गुप्त रखी गई है. इसका ब्योरा नागवंशी राजाओं के किसी लिखित इतिहास में नहीं मिलता.
मंदिर में जो शिलालेख है, उस पर भी सिर्फ दो शिवलिंगों के नाम और 11वीं सदी में इनके निर्माण की बात लिखी हुई है. जबकि नागवंशी राज में ऐसे 147 मंदिरों का पूरा इतिहास मिलता है. हालांकि मंदिर का ये ढांचा बताता है, इसका निर्माण जब हुआ होगा, तब भी ये अपने आकार की वजह से अनूठा जरूर था, लेकिन दूसरे शिव मंदिरों के मुकाबले उतना भव्य नहीं होगा.
त्रिरथ शैली में बना है ये चतुर्भुजी मंदिर
आज भी ये वैसा ही दिखता है. त्रिरथ शैली में बना एक चतुर्भुजी मंदिर. इस पर 11वीं सदी की बारीक नक्काशी जरूर मिलती है. खासतौर पर दोनों शिवलिंगों के सामने बैठे नंदी की आकृति. अंदर ये सबकुछ इतना जीवंत है, कि घूमते शिवलिंग के साथ पूरा माहौल दिव्य हो जाता है. माना जाता है, कि इस रहस्यमी मंदिर के निर्माण के पीछे नागवंशी राजाओं कोई गुप्त ज्ञान था.
ये इंसान की बुनियादी फितरत है, जो जितना ही गुप्त है, उसके बारे में जानने समझने की जिज्ञासा उतनी ही बढ़ती है. ये बात पूरी तरह वैज्ञानिक अवधारणा पर आधारित है. विज्ञान को समझने वालों में अगर जिज्ञासा नहीं होती, तो ईश्वरीय आस्था से लेकर आज की आधुनिक तकनीक तक का विकास नहीं हुआ होता. ऐसी ही एक आस्था है धरती पर शिवलिंग का. माना जाता है, वैदिक ग्रंथों में जो शिव की पूरी परिकल्पना है, नागवंशी राजाओं ने उसे ही धरती पर सांकेतिक रूप में उतारने की कोशिश की. तो चलिए, स्पेशल रिपोर्ट के इस हिस्से में समझते हैं, शिवलिंग की उत्पत्ति का पौराणिक रहस्य.
पौराणिक मान्यताओं में शिवलिंग एक प्रतीक है. एक साक्षात संकेत शक्ति और प्रकृति के मेल का. भगवान शिव का यही रूप आज भी धरती पर सबसे ज्यादा पूजा जाता है. कैलाश से लेकर केदारनाथ और अमरनाथ तक, शिवलिंग अपने आप में एक अद्भुत आकार है. कैलाश एक पर्वत के रूप, तो अमरनाथ में बर्फ से बने आकार में, शिवलिंग का आकार प्रकृति से सीधा जुड़ा है.
भगवान विष्णु और ब्रह्मा के बीच श्रेष्ठता को लेकर बढ़ा विवाद
लिखित इतिहास में शिवलिंग की पूजा की परंपरा के संकेत ईसा पूर्व 3500 से 2300, यानी आज से करीब 5500 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता में मिलते हैं. इस दौर की हड़प्पा और कालीबंगा की खुदाई में कई शिवलिंगों का मिलना, इसी शिवभक्ति की तरफ इशारा करता है. इतिहास से पहले शिव की उत्पति की पौराणिक गाथाएं भी दिलचस्प है. एक कथा शिव पुराण की विधेश्वर संहिता के छठे अध्याय में मिलती है.
इसकी कथा के मुताबिक सृष्टि की रचना के बाद भगवान विष्णु और ब्रह्मा के बीच श्रेष्ठता को लेकर बढ़ा विवाद युद्ध तक पहुंच गया. इसी दौरान अंतरिक्ष में एक चमकीला पत्थर दिखा. भगवान विष्णु और ब्रह्मा के बीच गहराता युद्ध देख, दोनों के सामने ये शर्त रखी गई, कि जो भी इस चमकीले पत्थर का अंत देख लेगा, वो श्रेष्ठ माना जाएगा. लेकिन उस चमकीले पत्थर का अंत कोई नहीं ढूंढ पाया. तब युद्धरत दोनों देवों, ब्रह्मा और विष्णु ने उस पत्थर की पूजा करते हुए परब्रह्म के रूप में स्वीकार किया.
धरती पर शिव पूजा का पुराण
उसी पत्थर का जिक्र पुराणों में मिलता है. अथर्ववेद के एक स्त्रोत में एक स्तंभ को अनंत कहा गया है. उस स्तंभ का जिक्र अथर्ववेद में अनादि, अनंत के रूप में किया गया है. शिव पुराण में एक अग्निस्तंभ को ब्रह्मांडीय स्तंभ कहा गया है. लिंग पुराण के मुताबिक शिवलिंग निराकार ब्रह्म का वाहक हैं. माना जाता है धरती पर शिवलिंग की स्थापना और पूजा इन्हीं पौराणिक वर्णनों की वजह से शुरु हुई. आज पूरी धरती पर शिव के 12 ज्योतिर्लिंग हैं, जो शिव के ब्रह्मांडीय शक्ति के प्रतीक माने जाते हैं.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)