Shri Nirvani Ani Akhara: अयोध्या राम मंदिर के लिए मुगलों-अंग्रेजों से टकराए, साधु नहीं मांगते भिक्षा; जानें श्री निर्वाणी अणि अखाड़े के बारे में
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Shri Nirvani Ani Akhara: अयोध्या राम मंदिर के लिए मुगलों-अंग्रेजों से टकराए, साधु नहीं मांगते भिक्षा; जानें श्री निर्वाणी अणि अखाड़े के बारे में

Shri Nirvani Ani Akhara Ayodhya Tradition: प्रयागराज में होने जा रहे महाकुंभ में श्री निर्वाणी अनी अखाड़ा (अयोध्या) के साधु-संत भी हिस्सा लेंगे. इस अखाड़े का राम मंदिर आंदोलन से गहरा संबंध रहा है.

Shri Nirvani Ani Akhara: अयोध्या राम मंदिर के लिए मुगलों-अंग्रेजों से टकराए, साधु नहीं मांगते भिक्षा; जानें श्री निर्वाणी अणि अखाड़े के बारे में

When was Shri Nirvani Ani Akhara Ayodhya Established: यूपी के प्रयागराज में अगले साल 13 जनवरी से शुरू होने जा रहे महाकुंभ में आज से साधुओं के अखाड़ों ने अपने शिविरों में प्रवेश करना शुरू कर दिया है. सनातन परंपरा से 13 प्रमुख अखाड़े जुड़े हुए हैं, जो भारतीय संस्कृति की पताका पूरे देश-दुनिया में फहरा रहे हैं. अपनी अखाड़ों की सीरीज में हम इन अखाड़ों की स्थापना, इतिहास, परंपराएं और उनसे जुड़े प्रमुख साधु-संतों से अवगत करवा रहे हैं. आज हम बात करेंगे श्री निर्वाणी आनी अखाड़ा (अयोध्या) की. 

अयोध्या में श्री निर्वाणी अणि अखाड़ा का आश्रम

श्री निर्वाणी अणि अखाड़ा (अयोध्या) का प्रमुख मठ अयोध्या के हनुमान गढ़ी में हैं. इस मठ के श्रीमहंत धर्मदास हैं. वहीं गुजरात के सूरत में दूसरा मठ बना हुआ है, जिसके श्रीमहंत जगन्नाथ दास हैं. हनुमानगढ़ी के प्रसिद्ध हनुमान मंदिर पर इसी अखाड़े का अधिकार है. इस अखाड़े में अणि का अर्थ समूह है. 

राम मंदिर आंदोलन से रहा है गहरा संबंध

जानकारी के मुताबिक श्री निर्वाणी अणि अखाड़ा (अयोध्या) की स्थापना संत अभयरामदास जी ने की थी. इस अखाड़े में साधुओं के चार विभाग हैं. जिनके नाम हरद्वारी, वसंतिया, उज्जैनिया और सागरिया हैं. अपनी स्थापना के समय से ही यह अयोध्या का शक्तिशाली अखाड़ा रहा है. अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन से इस अखाड़े का गहरा संबंध रहा है. 

संस्कृत भाषा में लिखा गया अपना इतिहास

श्री निर्वाणी अणि अखाड़े का अपना संविधान और नियम कायदे हैं, जिसे 1825 में संस्कृत भाषा में लिखा गया था. देश के आजाद होने के बाद वर्ष 1963 में उसका हिंदी अनुवाद किया गया. इस अखाड़े में साधु बनने के लिए लोगों को कड़ी तपस्या करनी पड़ती है. शुरुआत में उन्हें अयोध्या के हनुमानगढ़ी पहुंचने पर यात्री के रूप में सेवा करनी होती है. इस दौरान अगर उनका आाचार-व्यवहार अखाड़े की मर्यादा के अनुरूप होता है तो उन्हें मुरेठिया का दर्जा दे दिया जाता है. 

बहुत कठिन है साधु बनने की प्रक्रिया

इसके बाद वे फिर कई दिनों तक सेवा करते हैं. तत्पश्चात उनका नाम नए सदस्य भिक्षु के रूप में मंदिर के रजिस्टर में दर्ज कर लिया जाता है. इस अवधि के गुजरने पर उन्हें 'हुड़दंगा' नाम दे दिया जाता है. वे मंदिर में शास्त्रो-पुराणों की शिक्षा ग्रहण करते हैं. साथ ही आश्रम के संतों को भोजन-प्रसाद वितरित करने समेत अन्य सेवा करते हैं. समय के साथ-साथ वे वरिष्ठ संतों की श्रेणी में आ जाते हैं. 

धार्मिक विद्वानों के मुताबिक अयोध्या के हनुमानगढ़ी में प्रत्येक 12 वर्ष के बाद नागापना समारोह किया जाता है. जिसमें सांसारिक दुनिया छोड़कर अखाड़े की शरण में आए लोगों को साधुओं की दीक्षा दी जाती है और धर्म प्रचार का संकल्प करवाया जाता है. इस अखाड़े के साधु कहीं भिक्षा मांगने नहीं जाते बल्कि उनके लिए भोजन-प्रसाद की तमाम व्यवस्था आश्रम की ओर से ही की जाती है. 

अपना खुद का न्यायिक तंत्र

श्री निर्वाणी अणि अखाड़े (अयोध्या) का अपना स्वयं का न्यायिक तंत्र भी है. संतों के बीच में किसी भी तरह का विवाद होने पर हनुमानगढ़ी में लोकतांत्रिक परंपरा के तरह उसका निपटारा कर दिया जाता है. इसमें अखाड़े के श्रीमहंत की अहम भूमिका होती है. श्रीमहंत की गद्दी भी वंशानुगत नहीं होती बल्कि हर 12 वर्ष बाद महाकुंभ के अवसर पर लोकतांत्रिक तरीके से नए श्रीमहंत को चुना जाता है. 

कहा जाता है कि इस अखाड़े से देशभर में करीब 60 हजार साधु-संत जुड़े हुए हैं, जो सफेद या केसरिया रंग के वस्त्र धारण करते हैं. उनके गले में कंठी माला और उलझे केश खास पहचान हैं. सनातन धर्म और संस्कृति का प्रचार-प्रसार करने को अखाड़े के साधु अपना परम कर्तव्य मानते हैं और इस दिशा में लगातार प्रयासरत रहते हैं.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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