Bhishma Pledge: विराट नगर में गायों को चुराने पर कौरव सेना के सामने मत्स्य नरेश के युवराज उत्तर के साथ अर्जुन के आने पर सेना के सभी महारथी चौंक गए. आचार्य द्रोण ने स्थितियों को समझने की बात कही तो कर्ण ने उनका प्रतिवाद किया, जिस पर पितामह भीष्म ने समझाया कि युद्ध काल में आपस की फूट नहीं होना चाहिए. पांडवों के 12 वर्ष का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास पूरा न होने पर संदेह व्यक्त किया तो भीष्म ने बताया कि पांडवों के वनवास का समय तेरह वर्ष से पांच महीने और 12 दिन अधिक हो गया है. उन्होंने कहा कि पांडव मृत्यु को गले लगा लेंगे,  किंतु असत्य कभी नहीं अपनाएंगे. अब चर्चा करने का समय नहीं है,  क्योंकि अर्जुन आगे बढ़ते हुए सामने ही आ गया है,  इसलिए दुर्योधन तुम्हें धर्मोचित या युद्धोचित में से जो उचित लगे, उसे तुरंत करो.


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दुर्योधन ने कहा पांडवों को राज्य नहीं देंगे, युद्ध करेंगे


दुर्योधन ने पितामह से साफ कहा कि मैं पांडवों को राज्य तो दूंगा नहीं, इसलिए युद्ध की तैयारी ही शीघ्रता से करनी चाहिए. इस पर पितामह भीष्म ने व्यूह रचना बनाते हुए दुर्योधन से कहा कि तुम चौथाई सेना लेकर हस्तिनापुर की ओर चले जाओ और दूसरी चौथाई भाग गायों को लेकर चला जाए. शेष आधी सेना के साथ हम अर्जुन का मुकाबला करेंगे. अर्जुन युद्ध करने के लिए आ रहा है तो हम, द्रोणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा और कृपाचार्य उससे युद्ध करेंगे. उन्होंने पूरे अधिकार के साथ कहा कि यदि पीछे से राजा विराट या स्वयं इंद्र भी आएंगे तो जिस तरह विशाल समुद्र को उसके तट रोकते हैं,  ठीक उसी तरह से मैं भी उन्हें रोक लूंगा.


भीष्म की बात सुन दुर्योधन ने वैसा ही किया


भीष्म पितामह की बात सभी को अच्छी लगी और सबने सहमति जताई तो कौरव राज दुर्योधन ने भी वैसा ही किया. भीष्म ने पहले तो दुर्योधन और गायों को विदा किया. मुख्य सेनानियों को लेकर व्यूह रचना तैयार की. उन्होंने द्रोण जी को बीच में खड़ा करते हुए बायीं ओर से अश्वत्थामा और दाहिनी ओर से कृपाचार्य को सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी. उन्होंने कहा कि कर्ण कवच धारण कर सेना के आगे खड़े हों और मैं खुद सेना के पीछे रहकर उसकी रक्षा करूंगा. 


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