नई दिल्ली. 26 नवंबर यानी बृहस्पतिवार को देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi 2020) और तुसली विवाह (Tulsi Vivah) का पर्व मनाया जाएगा. यह पर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को धूमधाम से मनाया जाता है. देवउठनी एकादशी को देवोत्थान एकादश और हरिप्रबोधिनी एकादिशी के नाम से भी जाना जाता है.


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इस पर्व पर भगवान शालिग्राम (Shaligram Bhagwan) और माता तुलसी (Tulsi) का विवाह पूरे विधि-विधान के साथ किया जाता है. हिंदू धर्म में देवउठनी एकादशी और तुलसी विवाह की बेहद मान्यता है. मान्यताओं के अनुसार, जो कोई देवउठनी एकादशी के दिन भगवान शालिग्राम और माता तुसली का विवाह करवाता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं. 


इसलिए मनाया जाता है पर्व


शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु चार महीने के लिए रहने निद्रा में चले जाते हैं और फिर कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागते हैं. इस कारण इस दिन देवउठनी एकादशी मनाई जाती है. देवउठनी एकादशी के साथ ही मंगल कार्य भी शुरू कर दिए जाते हैं.


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पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु को तुसली का क्रोध झेलना पड़ा. तुलसी ने क्रोध में भगवान विष्णु को श्राप से पत्थर का बना दिया. इस श्राप से मुक्त होने के लिए ही भगवान विष्णु ने शालिग्राम का अवतार लेकर तुलसी संग विवाह रचाया था. तुलसी को मां लक्ष्मी का अवतार माना जाता है.


पूजा की सामग्री व विधि


देवउठनी एकादशी पर पूजा के स्थान को गन्नों से सजाते हैं. इन गन्नों से बने मंडप के नीचे भगवान विष्णु की मूर्ति रखी जाती है. साथ ही पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर भगवान विष्णु को जगाने की कोशिश की जाती है. इस दौरान पूजा में मूली, शकरकंदी, आंवला, सिंघाड़ा, सीताफल, बेर, अमरूद और अन्य मौसमी फल चढ़ाए जाते हैं.


इसके अलावा तुलसी के पौधे को आंगन के बीचों-बीच चौकी पर रखा जाता है. तुलसी जी को मेहंगी, फूल, चंदन, मौली धागा और सिंदूर जैसी सुहागी की चीजें चढ़ाई जाती है. इसके साथ ही पूजा के लिए चावल, मिठाई, मौसमी फल और पूजन सामग्री भी रखी जाती है.


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