Muharram: हुसैनी ब्राह्मण मनाते हैं मुहर्रम, कर्बला की लड़ाई में इमाम हुसैन के लिए लड़ी जंग
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Muharram: हुसैनी ब्राह्मण मनाते हैं मुहर्रम, कर्बला की लड़ाई में इमाम हुसैन के लिए लड़ी जंग

कर्बला की जंग हजरत इमाम हुसैन और बादशाह यजीद की सेना के बीच हुई थी. इस जंग में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी मोहियाल ब्राह्मणों ने जिन्हें हुसैनी ब्राह्मण भी कहा जाता है. 

मुहर्रम पर निकलते ताजिया (फोटो साभारः ANI)

नई दिल्ली: मुहर्रम का पाक महीना किसी त्योहार या खुशी का नहीं है, बल्कि बेहद गम से भरा है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक नए साल की शुरुआत मुहर्रम के महीने से ही होती है. इसे साल-ए-हिजरत (जब मोहम्मद साहब मक्के से मदीने के लिए गए थे) भी कहा जाता है. पैगंबर-ए-इस्‍लाम हजरत मोहम्‍मद के नाती हजरत इमाम हुसैन को इसी मुहर्रम के महीने में कर्बला की जंग (680 ईसवी) में परिवार और दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था. कर्बला की जंग हजरत इमाम हुसैन और बादशाह यजीद की सेना के बीच हुई थी. इस जंग में सबसे बड़ी भूमिका निभाई थी मोहियाल ब्राह्मणों ने जिन्हें हुसैनी ब्राह्मण भी कहा जाता है. 

कौन हैं हुसैनी ब्राह्मण 
हुसैनी ब्राह्मण मोहयाल समुदाय के लोग हैं जो हिंदू और मुसलमान दोनों से संबंध रखते हैं. मौजूदा समय में हुसैनी ब्राह्मण सिंध, पंजाब, पाकिस्तान, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली के अलावा अरब और भारत के अन्य हिस्सों में रहते हैं. हिस्ट्री ऑफ मुहियाल्स (History of muhiyals) नाम की किताब के अनुसार कर्बला के युद्ध के समय 1400 ब्राह्मण उस समय बगदाद में रहते थे. जब कर्बला का युद्ध हुआ तो इन लोगों ने याजिद के खिलाफ युद्ध में इमाम हुसैन का साथ दिया था. करीब 125 हुसैनी ब्राह्मणों का परिवार पुणे में रहता है, कुछ दिल्ली में रहते हैं और ये हर साल मुहर्रम भी मनाते हैं. 

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द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के वंशज 
हुसैनी ब्राह्मणों का संबंध महाभारत काल से माना जाता है और हुसैनी ब्राह्मण खुद को अश्वत्थामा का वंशज मानते है. ऐसी मान्यता है कि अश्वत्थामा महाभारत युद्ध में पांडवों के विजयी होने के बाद अपने प्राणों को बचाने के लिए इराक चले गए थे. अश्वत्थामा वहीं बस गए और उनके वंशज दत्त ब्राह्मण कहलाए जो अरब, मध्य एशिया और इराक में अपना साम्राज्य स्थापित करने में कामयाब हुए. आगे चलकर दत्त ब्राह्मण ही मोहियाल ब्राह्मण कहलाए. हजरत इमाम हुसैन के लिए मोहियाल ब्राह्मणों ने जंग में अपनी जान की बाजी भी लगा दी थी. 

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कर्बला की जंग 
मुहर्रम महीने का दसवां दिन सबसे खास माना जाता है. मुहर्रम के महीने में दसवें दिन ही इस्‍लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपने प्राणों को त्‍याग दिया था. इसे आशूरा भी कहा जाता है. इस दिन शिया मुसलमान इमामबाड़ों में जाकर मातम मनाते हैं और ताजिया निकालते हैं. भारत के कई शहरों में मुहर्रम में शिया मुसलमान मातम मनाते हैं और सुन्नी मुसलमान रोजा रखते हैं. मुहर्रम में खाया जाने वाला मुख्य पकवान खीचड़ा या हलीम है. इसके पीछे ये मान्यता है कि जब सारा भोजन समाप्त हो गया तो कर्बला के शहीदों ने आखिरी भोजन के तौर पर हलीम ही खाया था.

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