Vat Savitri Vrat: हिन्दू धर्म में ऐसे अनेक व्रत बताए गए हैं जिन्हें रखकर सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु के लिए कामना करती हैं. ऐसा ही एक व्रत है वट सावित्री का व्रत जिसके द्वारा सुहागिन महिलाएं अपने पति के लंबे आयुष्य की कामना करती हैं. वट सावित्री का व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को रखा जाता है. इस व्रत को महिलाएं अत्यंत श्रद्धा पूर्वक रखती हैं. ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा से रखने पर पति की लंबी आयु व संतान प्राप्ति फलित होती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत का संबंध सावित्री देवी से है, जिन्होनें अपने पति सत्यवान की मृत्यु पर अपने तपोबल के माध्यम से यमराज से हठ कर उन्हें वापस जीवन दान देने पर विवश किया था. वह ज्येष्ठ अमावस्या का ही दिन था और इसी दिन शनि जयंती भी मनाई जाती है. इस दिन शादीशुदा महिलाएं बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं, उसकी परिक्रमा करती हैं और उसके चारों ओर कलावा बांधती हैं. 


क्या है मान्यता?


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ऐसा माना गया है कि जो महिलाएं इस व्रत का सच्ची निष्ठा से पालन करती हैं, उन्हें न सिर्फ पुण्य की प्राप्ति होती है बल्कि उनके परिवार पर आई सभी विपदाओं का भी नाश हो जाता है. साल 2022 में वट सावित्री का व्रत मई महीने की 30 तारीख (Vat Savitri 2022 Date/Muhurat), सोमवार के दिन मनाया जाएगा. यह दिन अखंड सौभाग्य व संतान प्रदायक है. इस दिन पूजा-अर्चना करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है और सभी विपदाओं से मुक्ति मिलती है.  


वट सावित्री व्रत तिथि- सोमवार, 30 मई, 2022


अमावस्या तिथि प्रारंभ: 29 मई, 2022, दोपहर 02:54 बजे से 


अमावस्या तिथि का समापन: 30 मई, 2022, सांय 04:59 बजे


वट सावित्री व्रत की पूजा विधि


वट सावित्री के व्रत की संपूर्ण विधि (Vat Savitri Worship Method) का वर्णन स्कंद पुराण में किया गया है. स्कंद पुराण में बताया गया है कि कैसे देवी सावित्री अपने पति सत्यवान की मृत्यु होने पर उन्हें यमराज से वापस ले आई थीं. यह कथा अत्यंत सौभग्यप्रदायक है और इस दिन प्रत्येक सुहागिन को इस कथा को अवश्य सुनना चाहिए. इसलिए वट-सावित्री के व्रत के दिन बरगद के पेड़ के पास बैठकर इस कथा को पढ़ना चाहिए. इस व्रत में पूजन-सामग्री का अत्यंत महत्व है जिसके अभाव में यह व्रत पूर्ण फलदायी नहीं रहता.


पूजन सामग्री


बांस से बना पंखा


लाल और पीले रंग का कच्चा सूत


धूप और दीपक 


फूल व फल


कुमकुम 


लाल वस्त्र पूजा में बिछाने के लिए


पूजा के लिए सिन्दूर व सुहाग का सामान 


पूरियां या मीठे गुलगुले


जल से भरा कलश


पूजन विधि


इस दिन व्रत रखने वाली सुहागिनों को सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान के पश्चात लाल या पीली साड़ी पहन कर सोलह श्रृंगार करना चाहिए. पूजा का सारा सामान ढंग से व्यवस्थित कर, वट (बरगद) वृक्ष के नीचे के स्थान को साफ कर सावित्री-सत्यवान की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए. बरगद के पेड़ में जल अर्पित करें और साथ ही अक्षत, फूल और मिठाई भी चढ़ाएं. अब वृक्ष की परिक्रमा करते हुए उसके चारों ओर कच्चे सूत से बना रक्षा सूत्र बांधकर मनोकामना व्यक्त करें. उसके बाद वट सावित्री व्रत कथा पढ़ें.


वट सावित्री व्रत का महत्व 


जैसा कि बताया गया है कि वट सावित्री के व्रत से सुहागिनों के अखंड सौभाग्य की कामना पूर्ण होती है. इस व्रत (Significance Of Vat Savitri) से सभी विघ्न-बाधाएं दूर होती हैं और अकाल मृत्यु का खतरा टलता है. सभी असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है. जिन दम्पतियों की संतान नहीं है, इस दिन के व्रत से संतान की भी प्राप्ति होती है. अधिक जानकारी के लिए वट सावित्री क्या है पर क्लिक करें.


क्यों होती है बरगद की पूजा?


वट सावित्री के व्रत के दिन, सम्पूर्ण श्रद्धा व विधि-विधान के साथ बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है. हिन्दू मान्यताओं के अनुसार (Why We Worship Banyan Tree) बरगद के वृक्ष में सभी देवी-देवता वास करते हैं. माना गया है कि वट वृक्ष की जड़ों में ब्रह्मा, इसके तने में भगवान विष्णु एवं टहनियों में भगवान शंकर का निवास होता है. इस पेड़ की नीचे की ओर लटकती शाखाएं, देवी सावित्री को दर्शाती हैं. इसलिए इस वृक्ष की पूजा से हर मनोकामना शीघ्र पूर्ण होती है. यही कारण है कि सुहागिन महिलाएं व्रत वाले दिन बरगद के पेड़ की 7 बार परिक्रमा करती हैं और उस पर कच्चे सूत से बना धागा लपेटती हैं. इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा करने से पति की लंबी आयु होती है और घर में सुख-समृद्धि आती है. अधिक जानकारी के लिए www.vinaybajrangi.com पर click करें अथवा उनके नं. 09278555588, 9278665588 पर संपर्क करें.