नई दिल्‍ली: कान छिदवाने या कर्णभेद संस्‍कार को सनातन धर्म में 16 संस्‍कारों में से एक माना गया है. हालांकि लड़कियों के कान तो कमोबेस हर धर्म-जाति के लोगों में छिदवाए जाते हैं लेकिन लड़कों के कान छिदवाने की परंपरा कुछ ही जगहों पर निभाई जाती है. हालांकि अब फैशन के चक्‍कर में लड़कों में भी पियर्सिंग कराने का चलन चल पड़ा है. इस बीच यह जानना जरूरी है कि लड़कों का कान छिदवाना या शरीर के किसी अन्‍य अंग पर पियर्सिंग कराना कितना सही है. 


कान छिदवाने के शुभ-अशुभ असर 


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16 संस्‍कारों के तहत कान छिदवाने की परंपरा 9 वें नंबर पर आती है. यहां तक कि जब भगवानों ने अवतार लिया है, तब उनके भी कर्णभेद संस्‍कार हुए हैं. बल्कि पुराने समय में तो राजा-महाराजा समेत सभी पुरुषों का कर्णभेद संस्‍कार किया जाता था लेकिन अब ये परंपरा केवल कुछ ही जगहों पर निभाई जाती है. 


- कान छिदवाने से मस्तिष्क में रक्त का संचार सही तरीके से होता है और इससे व्‍यक्ति की बौद्घिक योग्यता बढ़ती है. इसलिए बचपन में ही कान छिदवा दिए जाते हैं ताकि शिक्षा शुरू होने से पहले ही बच्‍चे की मेधा शक्ति बढ़ जाए. 


- कान‍ छिदवाने से लकवा या पैरालिसिस नहीं होता है. पुरुषों के मामले में बात करें तो यह फर्टिलिटी के लिहाज से बहुत अच्‍छा होता है. 


- इसके अलावा कान छिदवाने से चेहरे पर ग्‍लो भी बना रहता है. 


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...लेकिन बॉडी पियर्सिंग है खतरनाक 


वहीं कान-नाक के अलावा शरीर के किसी अन्‍य हिस्‍से में पियर्सिंग कराना खतरनाक साबित हो सकता है. आजकल तो लोग जीभ, पेट, आईब्रो समेत शरीर के तकरीबन हर हिस्‍से में पियर्सिंग करा रहे हैं जो कि गलत है. इन जगहों पर पियर्सिंग कराना खून में संक्रमण का कारण बन सकता है. इसके अलावा किसी तरह की एलर्जी हो सकती है. नसों में यदि सुई चुभ जाए तो ढेर सारा खून बह सकता है. यहां तक कि पियर्सिंग के आसपास की तंत्रिकाओं को नुकसान पहुंचने से आसपास का हिस्‍सा हमेशा के लिए मृत हो सकता है, वहां बड़े दाग बन सकते हैं. 


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)