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नई दिल्ली: हिंदू धर्म में हर अमावस्या और अश्विन माह में आने वाले पितृ पक्ष (Pitru Paksha) में पितरों की शांति के लिए पिंड दान या श्राद्ध (Shardh) किया जाता है. इससे पितरों की आत्मा को शांति मिलती है. इस साल 20 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हो रहा है. अश्विन माह के पूरे कृष्ण पक्ष को पितृ पक्ष कहा जाता है. यह 15 दिन तक चलेगा. 2 अक्टूबर को यह समाप्त होगा. इन 15 दिनों के दौरान पूर्वजों का आशीर्वाद पाने के लिए पिंडदान और तर्पण कर्म किया जाता है. साथ ही ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है.
पितृ पक्ष भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से शुरु होकर आश्विन महीने की अमावस्या (Ashwin Month Amavasya) को खत्म होते हैं. इस दौरान पूर्वजों के निधन की तिथि के दिन तर्पण किया जाता है. पूर्वज का पूरे साल में किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की तिथि के दिन निधन होता है, पितृ पक्ष की उसी तिथि के दिन उनका श्राद्ध किया जाता है. भाद्रपद पूर्णिमा के दिन सिर्फ उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन पूर्णिमा (Purnima) तिथि के दिन हुआ हो.
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यदि पूर्वजों के निधन की तिथि पता न हो तो शास्त्रों के मुताबिक उनका श्राद्ध अमावस्या के दिन करना चाहिए. वहीं किसी अप्राकृतिक मौक जैसे आत्महत्या या दुर्घटना का शिकार हुए परिजन का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है, इससे उनकी आत्मा को शांति मिलती है. श्राद्ध करने से पूर्वज (Ancestor) आशीर्वाद देते हैं ओर श्राद्ध करने वाले व्यक्ति का सांसारिक जीवन खुशहाल होता है. इसके अलावा मरने के बाद उसे मोक्ष मिलता है. यदि श्राद्ध न किया जाए तो पितृ भूखे रहते हैं और वे अपने सगे-संबंधियों को कष्ट देते हैं.
(नोट: इस लेख में दी गई सूचनाएं सामान्य जानकारी और मान्यताओं पर आधारित हैं. Zee News इनकी पुष्टि नहीं करता है.)