Janmashtami: क्यों राधा के लिए बांसुरी बजाते चले आते हैं कन्हैया, माधुर्य भाव से पा सकते हैं कृष्ण को
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Janmashtami: क्यों राधा के लिए बांसुरी बजाते चले आते हैं कन्हैया, माधुर्य भाव से पा सकते हैं कृष्ण को

Krishna Janmashtami: राधा ने कृष्ण को पाया माधुर्य भाव से. मधुर भाव क्या है? अपनी समस्त सत्ता- शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक को एक बिंदु में प्रतिष्ठित करने तथा अपना समस्त आनंद इन कृष्ण से ही पाऊँ-इसी सोच का नाम है माधुर्य भाव.

Janmashtami: क्यों राधा के लिए बांसुरी बजाते चले आते हैं कन्हैया, माधुर्य भाव से पा सकते हैं कृष्ण को

Krishna Janmashtami 2022: परमपुरुष श्री कृष्ण की भक्ति के पीछे कई भाव हैं. मतलब तो उनको पाने से है. माता या पिता बनकर पुकारो, कृष्ण पुत्र बनकर दौड़े चले आएंगे. बस भाव सच्चा होना चाहिए, ढोंग नहीं. सबसे मुख्य है माधुर्य भाव और सखा भाव. उन्हें जिस भाव में देखना चाहते हो, प्रभु उसी भाव में दिखाई देते हैं. 

नंद-यशोदा ने कृष्ण को पाया वात्सल्य भाव से

भक्ति है आकर्षणी शक्ति, जो खींच कर मानव को प्रभु के निकट ले जाती है. यदि भक्ति नहीं है तो ईश्वर की निकटता नहीं मिल सकती. अपने–अपने संस्कार के अनुरूप ब्रज के कृष्ण को मनुष्य ने तीन दृष्टिकोण से अपनाकर देखा था. नंद-यशोदा, इन्होंने कृष्ण को लिया था वात्सल्य भाव से. परमपुरुष को अपनी संतान मानकर उसको प्यार करना और उसे लेकर ही मस्त रहना, इसका नाम है वात्सल्य भाव.  इस वात्सल्य भाव से कृष्ण के लौकिक पिता वासुदेव व लौकिक माता देवकी वंचित थे, उन्होंने तो पुत्र को बड़ा होने पर पाया. 

समस्त आनंद कृष्ण से ही पाऊँ, यही है राधा भाव

राधा ने कृष्ण को पाया माधुर्य भाव से. मधुर भाव क्या है? अपनी समस्त सत्ता- शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आध्यात्मिक को एक बिंदु में प्रतिष्ठित करने तथा अपना समस्त आनंद इन कृष्ण से ही पाऊँ-इसी सोच का नाम है माधुर्य भाव. यही है राधा भाव. 99 प्रतिशत भक्त इसी राधा भाव को लेकर रहते हैं. इससे पूर्व इतिहास में परमपुरुष को मधुर भाव में किसी ने कहीं नहीं पाया. प्रथम बार ब्रज के कृष्ण को मधुर भाव में पाया राधा ने. ब्रज के कृष्ण भी उसी प्रकार बांसुरी बजाकर उस माधुर्य की ओर अपने को बढ़ा देते हैं. यही है माधुर्य भाव. रस में सराबोर माधुर्य से मनुष्य पहली बार परमपुरुष को अनुभव करता है, पाता है ब्रज के कृष्ण के रूप में. 

ये कृष्ण कैसे हैं? ग्रीष्म के प्रचंड ताप के उपरान्त उत्तर-पूर्व कोने में यदि काले-कजरारे मेघ उमड़ आए, वैसे हैं श्री कृष्ण. मेघ जैसे मनुष्य के मन में विराट आश्वासन लेकर आते हैं,मेरे कृष्ण भी वेसे आश्वासनपूर्ण हैं, जिसे देखते ही मन स्निग्ध हो जाता है, आंखें तृप्त हो जाती हैं, मेरे कृष्ण वैसे ही हैं, मेरे कृष्ण जब मेरी ओर देख कर हंस देते हैं तो मुझे उसी से उनके होंठ रंगीन से प्रतीत होते हैं, उनकी मधुर हंसी उनके होठों को रंजित करती है. 

सख्य भाव से कन्हैया को पाकर धन्य हुए देवता

वात्सल्य रूप में जिसे पाकर यशोदा और नंद आनन्दित हुए, देवता जिन्हें सखा भाव में पाकर धन्य हुए और बाद में कहा कि तुम ही सब कुछ हो,तुम सखा तो हो ही, उससे भी अधिक हो, हे कृष्ण, हे ब्रज के कृष्ण, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं. ब्रज के गोपालक जिन्हें सख्य भाव में पाते हैं,राधा ने उन्हें पाया था माधुर्य भाव में.

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