Ganpati Bappa Morya: इंद्र की सेना समेत शिवजी के गण भी बहुत अधिक देर तक बालक गणेश के सामने नहीं टिक सके और जिसे जिस तरफ भी बचने का रास्ता मिला, उधर ही भाग खड़ा हुआ. सबके भागने के बाद भी स्वामी कार्तिकेय रणक्षेत्र में डटे रहे और गणेश जी से धैर्यपूर्वक लड़ते रहे. गणेश जी ने एक-एक करके उनके सभी शस्त्रों को काट दिया तो बिना शस्त्र के लड़ना व्यर्थ समझकर उन्होंने भी युद्ध भूमि छोड़ने का निर्णय लिया और वहां से हट गए. इस तरह युद्ध भूमि में एक बालक से परास्त होने से सभी योद्धा हीन भावना से ग्रस्त हो रहे थे और ऐसे में वह फिर से भगवान शिव की शरण में पहुंचे और पूरी आप बीती बताई. उन्होंने कहा कि हे प्रभु हमने बहुत से युद्ध देखे हैं और भाग भी लिया है, किंतु ऐसा विलक्षण युद्ध पहले कभी नहीं देखा कि एक छोटा सा बालक सबको नाकों चने चबवा दे. उसके पराक्रम की कोई सीमा ही नहीं है. वह बालक तो महाबली और महापराक्रमी है. अब आप ही कोई उपाय कर सकते हैं.


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शिवजी क्रोध में खुद ही युद्ध के लिए चल पड़े


देवताओं और अपने गणों का इतना करुण क्रंदन सुनकर भगवान शंकर को आश्चर्य भी हुआ और उससे अधिक क्रोध आया. उनके नेत्र लाल हो गए और भौहें चढ़ गईं तथा भुजाएं फड़कने लगीं. वे तुरंत ही उस बालक की तरफ चले तो सभी देवता और उनके गण भी पीछे-पीछे चलने लगे. देवताओं ने शिवजी को युद्ध के लिए तत्पर देखा तो स्वयं ही शिवजी के चरणों में प्रणाम कर युद्ध के लिए फिर से कूद पड़े, लेकिन यह क्या, युद्ध करते हुए विष्णु जी गणेश के सामने जा पहुंचे. युद्ध आरंभ हुआ तो गणपति की उस छड़ी के हमले से व्याकुल होकर वह युद्ध भूमि से हट गए. इधर शिवजी ने यह देखा कि विष्णु जी को पराजय का मुख देखना पड़ रहा है और इंद्र तो पहले ही अपना साहस छोड़ चुके हैं तो वह गहरे सोच में पड़ गए कि इस छोटे से बालक से कैसे निपटा जाए. कैसे इस पर विजय प्राप्त की जाए.



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