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Mahakumbh 2025 Niranjani Akhara: धर्म-नगरी प्रयागराज महाकुंभ को लेकर पूरी तरह से तैयार है. 12 वर्षों में एक बार लगने वाला महाकुंभ अबकी बार 13 जनवरी 2025 से शुरू होकर 26 फरवरी तक चलेगा. महाकुंभ में प्रमुख अखाड़ों का एक दिव्य और भव्य नजारा देखने को मिलता है. अखाड़ों की सिरीज में आज हम बात कर रहे हैं श्री पंचायती निरंजनी अखाड़े की. यह सभी प्रमुख 13 अखाड़ों में से एक है. इस अखाड़े के इष्टदेव शिवजी के पुत्र कार्तिकेय हैं. जबकि, इस अखाड़े का मुख्यालय प्रयागराज में है जहां इस बार महाकुंभ मेले का आयोजन होना है. श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा के महामंडलेश्वर और महंथ दिगंबर साधु होते हैं. आइए अब विस्तार से श्री पंचायती निरंजनी अखाड़े के बारे में जानते हैं.
कब हुई स्थापना
श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा की स्थापना 726 ईस्वी (विक्रम संवत् 960) में गुजरात के मांडवी में हुई थी. उस वक्त महंथ अजि गिरि, मौनी सरजूनाथ गिरि, पुरुषोत्तम गिरि, हरिशंकर गिरि, रणछोर भारती, जगजीवन भारती, अर्जुन भारती, जगन्नाथ पुरी, स्वभाव पुरी, कैलाश पुरी, खड्ग नारायण पुरी, स्वभाव पुरी ने मिलकर इस अखाड़े की नींव रखी.
कैसे पड़ा श्री पंचायती निरंजनी अखाड़ा नाम?
श्री पंचायती निरंजनी अखाड़े में हजारों की संख्या में संत-महात्मा शामिल हैं. इसके अलावा इस अखाड़े में लाखों की संख्या में नागा साधु-सन्यासी हैं. इस अखाड़े में सभी के इष्ट सिर्फ भगवान कार्तिकेय हैं जिन्हें निरंजन के नाम से पुकारा जाता है, इसलिए इस अखाड़े का नाम 'निरंजनी' अखाड़ा पड़ा.
पंच परमेश्वर लेते हैं बड़ा फैसला
पंचायती अखाड़े में पंच परमेश्वर होते हैं. इसके साथ ही इसमें 8 महंथ और इतने ही उप महंथ भी होते हैं. इसके अलावा इस अखाड़े में चार प्रमुख सचिव होते हैं जो हर प्रकार के फैसले लेने के लिए स्वतंत्र होते हैं. पंच परमेश्वर की अनुमति से ही हर के फैसले पर मुहर लगती है.
कुंभ में मिलती है स्थायी दीक्षा
श्री निरंजनी अखाड़े में स्थाई और अस्थायी दोनों तरह से दीक्षा प्रदान की जाती है. अस्थायी सन्यास दीक्षा उन लोगों की दी जाती है जो गृहस्थ परिवार से आते हैं. अस्थायी सन्यास दीक्षा देने से पहले सन्यास लेने वालों की आधी चोटी काटकर देखा जाता है कि उनके अंदर सन्यास जीवन जीने के गुण हैं या नहीं. अगर किसी का मन ने लगे तो उन्हें पूर्ण संन्यास-दीक्षा देने से पहले घर वापस भेज दिया जाता है.जबकि, जिनके भीतर साधु-सन्यासी की तरह जीवन जीने के लक्षण देखे जाते हैं तो उन्हें कुंभ मेले के दौरान पूर्ण संन्यास की दीक्षा दी जाती है.
कुछ ऐसी शाही स्नान की है परंपरा
महाकुंभ के दौरान सबसे आगे पंचायती अखाड़ा श्री महानिर्वाणी अटल अखाड़े के साथ सबसे आगे शाही राजसी स्नान करने जाता है. उसके बाद पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी आनंद अखाड़े के साथ शाही स्नान करने जाता है. इसी क्रम में जूना अखाड़ा आवाहन और अग्नि अखाड़े के साथ शाही राजसी स्नान करने जाता है. जिसके बाद उदासीन और वैष्णव अखाड़े स्नान करने जाएंगे. महाकुंभ के मुख्य स्नान पर्व पर अखाड़े के साधुओं शिव समान नागाओं के साथ सभी 33 कोटि देवी-देवता गंगा, यमुना और सरस्वती की पावन त्रिवेणी में स्नान करने के लिए आते हैं. कहा जाता है कि इसी वजह से संगम का जल अमृत के समान हो जाता है.