अपनी मंद हंसी से ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाली मां कुष्मांडा सृष्टि का आदि स्वरूप हैं. कहते हैं जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था. चारों ओर घना अंधेरा छाया था. तब देवी कुष्मांडा ने अपने हाथों से इस सृष्टि की रचना की थी.
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नई दिल्लीः नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है. आज नवरात्रि का चौथा दिन है और इस दिन मां दुर्गा के चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा की पूजा की जाती है. अपनी मंद हंसी से ब्रह्माण्ड का निर्माण करने वाली मां कुष्मांडा सृष्टि का आदि स्वरूप हैं. कहते हैं जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था. चारों ओर घना अंधेरा छाया था. तब देवी कुष्मांडा ने अपने हाथों से इस सृष्टि की रचना की थी. अष्टभुजा रूप में मां कुष्मांडा का रूप आठ दिशाओं को दर्शाता है.
शास्त्रों में कहा गया है कि जो क्षमता अन्य देवी-देवताओं में नहीं है, वह सभी मां कूष्मांडा में हैं. वह सूर्यलोक में वास करती हैं. मां कूष्मांडा अष्टभुजा धारी हैं. इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा हैं. आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है. मान्यता है कि मां कूष्मांडा की पूजा से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परिवार की कलह से भी मुक्ति मिलती है.
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मां कूष्मांडा की पूजा विधि
सबसे पहले घर में स्थापित कलश और गणपति की पूजा करें, इसके बाद माता के साथ अन्य देवी-देवताओं की पूजा करें. इनकी पूजा के बाद देवी कूष्मांडा की पूजा शुरू करें. सबसे पहले हाथों में फूल लेकर मां कूष्मांडा को प्रणाम करें. इसके बाद पूजन और व्रत का संकल्प लें और वैदिक और सप्तशती मंत्रों से मां कूष्माण्डा सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें. धूप-दीप, फल, पान, दक्षिणा, चढ़ाएं और मंत्रोपचार के साथ पुष्पांजलि अर्पित करें. इसके बाद माता को प्रसाद अर्पित करें और आरती करें. इसके बाद परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों को यह प्रसाद वितरित कर दें.
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मां कूष्मांडा उपासना मंत्र
वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्.
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना.
हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे॥
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मां कुष्मांडा को लगाएं इसका भोग
पुराणों में कहा गया है कि माता के चौथे स्वरुप को मालपुए अति भाते हैं. ग्रंथों में कहा गया है कि मालपुए का भोग लगाने से माता प्रसन्न होती हैं और मनुष्य को कष्टों और दुखों से मुक्ति मिलती है.