मां कात्यायनी वरदान फलदायिनी हैं. भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी. यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी.
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नवरात्रि में छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा की जाती है. कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती देवी दुर्गा मां अंबा की उपासना की. कठिन तपस्या की. उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो. मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया. इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं.
पंडित सकला नंद बलोदी कहते हैं कि मां का गुण शोधकार्य है. इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है. इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं. यह वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं.
मां कात्यायनी वरदान फलदायिनी हैं. भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी. यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी.
इसीलिए यह ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं. इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है. यह स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं. इनकी चार भुजाएं हैं. दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में. मां के बाँयी तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है. इनका वाहन भी सिंह है.
इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है. उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं. जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं. इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है.
मंत्र:
१-
चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना.
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
२-
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रुपेण संस्थिता
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः..
जिनको मोक्ष पाना है, विशेष कार्य फलीभूत करना है,डर मिटाना है वे मां कात्यायनी की पूजा आराधना अवश्य करें.