नई दिल्ली: रक्षाबंधन भाई बहन के अटूट बंधन और असीमित प्रेम का प्रतीक है. रक्षाबंधन का त्‍यौहार हर साल सावन महा की पूर्णिमा को मनाया जाता है. इस बार रक्षाबंधन गुरुवार यानि 15 अगस्‍त के दिन हैं. इस दिन बहनें अपने भाईयों के हाथों में रक्षासूत्र बांधती हैं और उनकी लंबी उम्र, संपन्‍नता और खुशहाली की कामना करती हैं. ये पर्व की महिमा ही है, जो भाई-बहन को हमेशा-हमेशा के लिए स्‍नेह के धागे से बांध लेती है.


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जानें कैसे करें पूजा
रक्षाबंधन के दिन सुबह स्नान करके भाई-बहन साफ कपड़े पहनें. 
सबसे पहले राखी की थाली सजाएं. इस थाली में रोली, कुमकुम, अक्षत, दीपक और राखी रखें. 
इसके बाद भाई को तिलक लगाकर उसके दाहिने हाथ में राखी बांधें. 
राखी बांधने के बाद भाई की आरती उतारें और मिठाई खिलाएं.  
राखी बांधने के बाद भाइयों को इच्‍छा अनुसार बहनों को भेंट दें.
ब्राह्मण या पंडित जी भी अपने यजमान की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते हैं. 


इस मंत्र का करें उच्‍चारण 
ॐ येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।


ये हैं पौराणिक मान्‍यताएं


द्रौपदी और श्रीकृष्‍ण की कथा
महाभारत काल में कृष्ण और द्रौपदी का एक वृत्तांत मिलता है. जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई. द्रौपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उसे उनकी अंगुली पर पट्टी की तरह बांध दिया. यह श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था. श्रीकृष्ण ने बाद में द्रौपदी के चीर-हरण के समय उनकी लाज बचाकर भाई का धर्म निभाया था.


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सिकंदर और पुरू की कथा
सिकंदर की पत्नी ने पति के शत्रु राजा पोरस को राखी बांध कर अपना मुंहबोला भाई बनाया और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया. राजा पोरस ने युद्ध के दौरान सिकंदर को जीवनदान दिया. यही नहीं सिकंदर और पोरस ने युद्ध से पहले रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी. युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार के लिए हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रुक गए और उन्हें बंदी बना लिया गया. सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए उनका राज्य वापस लौटा दिया.


बादशाह हुमायूं और कमर्वती की कथा 
एक कथा हुमायूं और कमर्वती की भा प्रचलित है. मुगल काल में बादशाह हुमायूं चितौड़ पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ रहा था. ऐसे में राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूं को राखी भेजकर रक्षा वचन ले लिया. हुमायूं ने वचन निभाया और चितौड़ पर आक्रमण नहीं किया. यही नहीं आगे चलकर उसी राखी की खातिर हुमायूं ने चितौड़ की रक्षा के लिए बहादुरशाह के विरूद्ध लड़ते हुए कर्मवती और उसके राज्‍य की रक्षा की.