Dharam: कैसे हुआ था श्रीराम के अयोध्या के युवराज बनने पर फैसला? दिलचस्प है कहानी
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Dharam: कैसे हुआ था श्रीराम के अयोध्या के युवराज बनने पर फैसला? दिलचस्प है कहानी

Ramayan Story In Hindi: भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह के बाद जब वे अयोध्या लौटे तो उनका भव्य स्वागत किया गया. साथ ही, राजा दशरथ के मन में श्रीराम को युवराज बनाने का ख्याल भी आया. इस रोमांचक कथा के बारे में जानिए.

फाइल फोटो

Raam Ji And Mata Sita: मिथिला में श्रीराम का सीता जी से विवाह हो गया और वे दोनों अपने भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे. तभी से पूरे नगर में नित नए मंगल उत्सव और आनंद के बधावे बजने लगे. पूरी अयोध्या नगरी श्री राम का चेहरा देख कर आनंदित हो उठी. राजा दशरथ खुद अपने बड़े पुत्र राम के रूप, गुण, शील और स्वभाव को देख-सुनकर प्रसन्न हो गए.

सफेद बालों ने दिया युवराज बनाने का संदेश

एक बार रघुकुल के राजा दशरथ ने शीशे (दर्पण) को अपने हाथ में लेकर चेहरा देखा तो कानों के पास के सफेद बाल दिखने लगे. उन्हें लगा मानों ये सफेद बाल उनसे कह रहे हैं, 'हे राजन! श्रीराम को युवराज का पद देकर अपने जीवन और जन्म का लाभ क्यों नहीं लेते.' बस फिर क्या था, महाराज के मन में यह विचार आते ही वे सीधे गुरु वशिष्ठ के पास जा पहुंचे और निवेदन किया, 'मुनिराज, श्रीराम अब सब प्रकार से योग्य हो गए हैं. सेवक, मंत्री और सभी नगरवासी और यहां तक कि हमारे शत्रु, मित्र या उदासीन, सभी को श्रीराम वैसे ही प्रिय हैं जैसे मुझे. अब मेरे मन में एक ही अभिलाषा है और वह भी आप ही के अनुग्रह से पूरी होगी.' 

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गुरु वशिष्ठ से अनुमति लेने पहुंचे राजा दशरथ

मुनिवर वशिष्ठ ने कहा, 'हे राजन! आपका नाम और यश सभी मनचाही वस्तुओं को देने वाला है. आपके मन में अभिलाषा करने के पहले ही फल उत्पन्न हो जाता है, फिर भी आप क्या चाहते हैं.' राजा दशरथ ने अपने मन की बात ऋषिवर के सामने प्रकट करते हुए कहा, 'हे नाथ! श्रीराम को युवराज बना दीजिए, कृपा करके आज्ञा दीजिए तो तैयारी हो जाए क्योंकि बिना आपकी आज्ञा के अयोध्या में कुछ नहीं होता. मैं चाहता हूं कि मेरे जीते जी सब हो जाए जिससे मेरे साथ सभी लोगों के नेत्र यह लाभ प्राप्त कर सकें. आपके आशीर्वाद से शिवजी ने सभी इच्छाएं पूरी कर दी हैं और केवल यही लालसा मन में रह गई है.'

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अयोध्या में शुरू हो गईं श्रीराम के राजतिलक की तैयारियां

राजा दशरथ की विनम्र वाणी सुनकर मुनि वशिष्ठ बहुत प्रसन्न हुए और बोले, 'हे राजन! सुनिए जिनसे दूर होकर लोग पछताते हैं और जिनके भजन बिना जी की जलन नहीं जाती है, वही लोकेश्वर श्रीराम जी आपके पुत्र हैं, जो पवित्र प्रेम के पीछे चलने वाले हैं और इसीलिए तो प्रेमवश वे आपके पुत्र हैं.' गुरुवर ने आगे कहा, 'हे राजन! अब देरी न कीजिए, शीघ्र सब सामान सजाइए. शुभ दिन और शुभ मंगल तभी है जब श्रीराम युवराज हो जाएं यानी उनका राज्याभिषेक करने के लिए हर दिन और हर समय शुभ और मंगल है.'

मुनिवर की आज्ञा पाकर राजा आनंदित होकर महल में आए और मंत्री सुमंत्र सहित सभी सेवकों को बुलवाया. सबके आने के बाद राजा ने कहा कि गुरुवर ने आज्ञा दे दी है और यदि आप सबको भी यह बात अच्छी लगे तो श्रीराम का राजतिलक कर दीजिए. इतना सुनते ही सभी ने हाथ जोड़ एक स्वर से कहा, 'राजन आपने जगत भर का भला करने वाला काम सोचा है, इस काम को शीघ्रता से कीजिए, अब और देरी नहीं होनी चाहिए”. इतना सुनते ही अयोध्या में राजतिलक की तैयारियां तेजी से शुरू हो गईं.'   

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)

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