Mangla Gauri Vrat 2022: सावन सोमवार ही नहीं मंगलवार भी होता है बेहद खास! जानें व्रत-पूजा का तरीका और लाभ
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Mangla Gauri Vrat 2022: सावन सोमवार ही नहीं मंगलवार भी होता है बेहद खास! जानें व्रत-पूजा का तरीका और लाभ

Tuesday Fast: सावन सोमवार की तरह सावन महीने के मंगलवार भी बहुत अहम होते हैं. इस दिन मंगला गौरी व्रत रखा जाता है. सुहागिन महिलाओं को यह व्रत जरूर रखना चाहिए.

फाइल फोटो

Mangla Gauri Vrat Puja Vidhi: सावन के मंगलवार भी खूब मंगल करने वाले हैं. शादीशुदा महिलाओं के लिए तो जैसे यह मां गौरी का वरदान ही है. सुहागिनें इस दिन यदि मंगलागौरी के व्रत का भली-भांति पालन कर लें तो उनका सुहाग तो अमर होगा ही, पति पर आने वाली मुसीबतें भी आसपास नहीं फटकती हैं. यह व्रत विवाह के बाद 5 वर्ष तक करने का विधान है. विवाह के बाद पड़ने वाले पहले सावन में यह व्रत मायके में तथा अन्य 4 वर्षों में ससुराल में करने का विधान है. इस साल सावन का पहला मंगलवार आज यानी कि 19 जुलाई 2022 को है. 

ऐसे करें मंगला गौरी व्रत-पूजन

मंगला गौरी व्रत को विधि-विधान से करना बहुत जरूरी है. इसके क्लिष्ट मंत्रों का उच्चारण आसान नहीं है. इसे किसी विद्वान की देखरेख में ही करना चाहिए, क्योंकि व्रत से पहले संकल्प और बाद  में पारण आदि तमाम क्रियाएं जटिल हैं. 

यह है मंगला गौरी व्रत की कथा 

कुंडिन नगर में धर्मपाल नामक एक धनी सेठ रहता था. उसकी पत्नी सती, साध्वी एवं पतिव्रता थी. परंतु उनके कोई पुत्र नहीं था. इस कारण सब प्रकार के भौतिक सुख होने के बाद भी दंपती दुखी रहा करते थे. उनके यहां आए दिन भिक्षुक आया करते थे. एक बार सेठानी ने भिक्षुक की झोली में यह सोचकर कुछ सोना छिपाकर डाल दिया कि शायद इसी पुण्य से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हो जाए, परंतु परिणाम इसका उल्टा हो गया. भिक्षुक अपरिग्रह व्रती थे, उन्होंने अपना व्रत भंग जानकर सेठ-सेठानी को संतानहीनता का श्राप दे डाला. दंपती की अनुनय-विनय पर भिक्षुक के आर्शीवाद से उनके यहां पुत्र ने तो जन्म लिया, पर दुर्भाग्य ने अभी उनका पीछा नहीं छोड़ा था. 

किसी कारणवश गणेश जी ने बालक को सोलहवें वर्ष में सर्पदंश से मृत्यु का श्राप दे दिया. उस बालक का विवाह ऐसी कन्या से हुआ, जिसकी माता ने मंगला गौरी का  व्रत किया था. शादी के बाद में उस कन्या ने भी मंगला गौरी का व्रत किया. इसके प्रभाव से उसका पति शतायु हो गया. न तो उसे सांप ही डस सका और न ही सोलहवें वर्ष में यमदूत उसके प्राण ले जा सके. इसलिए यह व्रत प्रत्येक नव विवाहिता को करना चाहिए. काशी में इस व्रत को विशेष समारोह के साथ किया जाता है. 

व्रत का पूर्ण फल पाने को किया जाता है उद्यापन

4 वर्ष तक सावन के सोलह या 20 मंगलवारों का व्रत करने के बाद इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए, क्योंकि बिना उद्यापन के व्रत निष्फल होता है. व्रत करते हुए जब पांचवां वर्ष लगे तो सावन मास के किसी भी मंगलवार को आचार्य की देखरेख में उद्यापन करें. दूसरे दिन हवन पूजन, दान आदि करें. सास का भी सम्मान करके उन्हें सुहाग की पिटारी दें. अंत में सबको भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करें.

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