Shri Krishna Bhagwan: शास्त्रों के अनुसार इस दिन जो व्यक्ति विधि विधान से उपवास करता है, उसके समस्त पाप मिट जाते हैं व सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. इस दिन यम-नियमों का पालन करते हुए निर्जला व्रत रखने का भी विधान है किंतु व्रत सदैव स्वास्थ्य की अनुकूलता के आधार पर रखना चाहिए.
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देश ही नहीं विदेशों में भी कई स्थानों पर भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी श्रद्धा और धूमधाम से मनाया जाता है. भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन मनाया जाने वाला उत्सव इस बार निर्णय सागर पंचांग के अनुसार 18 व 19 अगस्त को पड़ेगा. 18 अगस्त को स्मार्त यानी गृहस्थ और 19 को वैष्णव लोग मनाएंगे.
इस तरह किया जाता है पूजन
शास्त्रों के अनुसार इस दिन जो व्यक्ति विधि विधान से उपवास करता है, उसके समस्त पाप मिट जाते हैं व सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है. इस दिन यम-नियमों का पालन करते हुए निर्जला व्रत रखने का भी विधान है किंतु व्रत सदैव स्वास्थ्य की अनुकूलता के आधार पर रखना चाहिए. घरों और मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण सुंदर झांकी सजाने के साथ ही भजन, कीर्तन और लीलाओं का आयोजन भी किया जाता है. संध्या के समय झूला बनाकर लड्डू गोपाल यानी बाल कृष्ण को झुलाया जाता है. रात्रि में आरती के बाद दही, माखन, पंजीरी, फल मेवा मिष्ठान आदि का भोग लगाकर बांटा जाता है. कुछ लोग रात में ही पारण करते हैं और कुछ दूसरे दिन ब्राह्मणों को भोजन करा कर पारण करते हैं.
यह है श्री कृष्ण के जन्म की कथा
द्वापर युग में मथुरा नगरी में राजा उग्रसेन का राज्य था, उनका पुत्र कंस प्रतापी होने के साथ अत्यंत निर्दयी भी था. उसने अपने को भगवान घोषित कर पूजा करवाने के लिए प्रजा पर अत्याचार शुरू किए. यहां तक कि अपने पिता को भी जेल में डाल दिया. उसके अत्याचारों से दुखी होकर देवताओं ने पहले ब्रह्मा जी फिर उनके कहने पर विष्णु जी से प्रार्थना की. विष्णु जी ने कहा कि “मैं जल्द ही ब्रज में वसुदेव की पत्नी और कंस की बहन देवकी के गर्भ से जन्म लूंगा, आप भी ब्रज में जाकर यादव कुल में अपना शरीर धारण कर लें.“ जब वसुदेव और देवकी का विवाह हो चुका तो विदाई के समय आकाशवाणी हुई, अरे कंस, तेरी बहन का आठवां पुत्र ही तेरी मृत्यु का काल बनेगा. कंस ने यह सुनते ही क्रुद्ध होकर उन्हें जेल में डलवा दिया. देवकी की सात संतानों को कंस ने मरवा डाला.
श्री कृष्ण के जन्म लेते ही दिव्य प्रकाश फैल गया
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी की रात्रि 12 बजे जब भगवान विष्णु जी ने कृष्ण के रूप में जन्म लिया तो चारों ओर दिव्य प्रकाश फैल गया और उसी वक्त आकाशवाणी हुई कि शिशु को गोकुल ग्राम में नंद बाबा के घर भेजकर उसकी कन्या को कंस को सौंपने की व्यवस्था करो. वसुदेव ने जैसे ही बालक को उठाया, उनकी बेड़ियां खुल गईं. पहरेदार सो गए और कारागार के सातों दरवाजें अपने आप खुल गए.
वसुदेव ने ब्रज में जाकर नंद गोप की सोती हुई पत्नी यशोदा के निकट श्रीकृष्ण को रखा और उनकी नवजात कन्या को वापस कारागार ले आए. वसुदेव के अंदर आते ही सारे दरवाजे अपने आप बंद हो गए, पैरों में पुनः बेड़ियां पड़ गई और पहरेदार जाग गए. कंस को आठवीं संतान का समाचार सुना, तो वह कारागार पहुंचा. देवकी की गोद से कन्या को छीनकर उसे मारने के लिए जैसे ही उठाया, वह छूटकर आकाश में उड़ गई और कन्या ने कहा, दुष्ट कंस, तेरा संहार करने वाला तो पैदा हो चुका है. उसने पता लगा लिया कि गोकुल में नंद गोप के यहां कृष्ण पल रहा है. उसका वध करने के लिए उसने कई प्रयास किए पर, सब बेकार. बड़े होने पर कृष्ण ने कंस का वध करके प्रजा को भय और आतंक से मुक्ति दिलाई. अपने माता-पिता को कारागार से छुड़ाया और नाना उग्रसेन को फिर से राजगद्दी पर बैठाया.
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