मां विंध्यवासिनी के दर्शन से सभी मनोकामना हो जाती है पूरी, यहां बना है देवी का मंदिर
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मां विंध्यवासिनी के दर्शन से सभी मनोकामना हो जाती है पूरी, यहां बना है देवी का मंदिर

भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है. इस देश में कई मंदिर ऐसे हैं जो अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं. इनमें से कई मंदिर तो सदियों पुराने हैं. शासक बदले, साम्राज्य बदला पर ये मंदिर उसी स्थान पर पूरी भव्यता के साथ खड़े रहे .

फाइल फोटो

मिर्जापुर: भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है. इस देश में कई मंदिर ऐसे हैं जो अपनी भव्यता और सुंदरता के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं. इनमें से कई मंदिर तो सदियों पुराने हैं. शासक बदले, साम्राज्य बदला पर ये मंदिर उसी स्थान पर पूरी भव्यता के साथ खड़े रहे . इन्हीं में से एक है यूपी के मिर्जापुर में बना मां विंध्यवासिनी का मंदिर.

  1. विंध्याचल की पहाड़ियों में बना है मां विंध्यवासिनी का मंदिर
  2. शिव के अपमान पर सती देवी आग में कूद गई थी
  3. विंध्यवासिनी मंदिर को जागृत पीठ भी कहा गया है

विंध्याचल की पहाड़ियों में बना है मां विंध्यवासिनी का मंदिर
पूर्वांचल में गंगा नदी के किनारे बसे मिर्ज़ापुर से 8 किमी दूर विंध्याचल की पहाड़ियों में मां विंध्यवासिनी का मंदिर है. मां विंध्यवासिनी का दरबार 51 शक्तिपीठों में से एक है. 51 शक्तिपीठों के बनने के बारे में जो पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं. उसके मुताबिक राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने सती के रूप में जन्म लिया और भगवान शिव से विवाह किया. लेकिन इस विवाह से सती के पिता दक्ष खुश नहीं थे. दक्ष ने एक यज्ञ किया जिसमें अपनी बेटी सती और भगवान शिव को छोड़कर सभी देवताओं को आमंत्रित किया. 

शिव के अपमान पर सती देवी आग में कूद गई थी
सती बिना बुलाए यज्ञ में चली गईं. यज्ञ में राजा दक्ष ने शिवजी के बारे  में अपमानजनक बातें कहीं. सती इसे सह न सकीं और सशरीर यज्ञ की वेदी में स्वयं को समर्पित कर दिया. दुख में डूबे शिव ने सती के जलते हुए शरीर को उठाकर विनाश नृत्य किया. इसे रोकने के लिए विष्णु ने सुदर्शन चक्र का इस्तेमाल कर सती की देह के टुकड़े कर दिए. जहां-जहां सती के शरीर के अंग गिरे, वो स्थान शक्तिपीठ बन गए. शक्तिपीठों के स्थानों और संख्या को लेकर ग्रंथों में अलग बातें कही गई हैं. कहीं 51 तो कहीं 52 शक्तिपीठों की बात कही गई है.

विंध्यवासिनी मंदिर को जागृत पीठ भी कहा गया है
इन्हीं शक्तिपीठों में से एक है उत्तर प्रदेश का विंध्यवासिनी मंदिर, जिसे जागृत शक्तिपीठ भी माना जाता है. शिव पुराण में मां विंध्यवासिनी को सती माना गया है तो श्रीमद्भागवत में नंदजा देवी कहा गया है. मां के अन्य नाम कृष्णानुजा, वनदुर्गा भी शास्त्रों में वर्णित हैं. शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं. विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां देवी के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं . शास्त्रों के अनुसार, अन्य शक्तिपीठों में देवी के अलग-अलग अंगों की प्रतीक रूप में पूजा होती है.

मां विंध्यवासिनी के दरबार में होती हैं 4 आरतियां
 विंध्याचल में मां विध्यावासनी की चार आरती सभी भक्तों की हर मनोकामना को पूर्ण करती है. माना जाता है कि बारह शक्ति पीठ में मां विन्ध्वासनी की चार आरती होती है. जबकि अन्य सभी पीठ में तीन आरती ही होती है. कहा जाता है मां विंध्यवासनी की होने वाली चारों आरती का अपना अलग ही महत्व है.. मां के इस चारों आरती के दर्शन करते ही सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है.  मां की होने वाली चारों आरती का स्वरूप अलग -अलग होता है. जिसमें मंगला आरती, दरबार आरती, राजश्री आरती और देव आरती है. इन चारों आरती के दर्शन करने के अलग-अलग महत्व है. आरती के समय मंदिर के कपाट बंद होने के कारण भक्तों को इसका दर्शन नहीं हो पाता.

धर्मग्रंथों में दर्ज है मां विंध्यवासिनी की महिमा
यहां साल के दोनों नवरात्रों में देश के कोने-कोने से यहां लाखों श्रद्धालु आते हैं. विध्यवासिनी मां की महिमा का उल्लेख धर्म ग्रंथों में मिलता है. जो त्रिकोण यन्त्र पर स्थित तीन रूपों को धारण करती हैं जो की महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली हैं. मिर्जापुर के विंध्‍य पर्वत पर बसी मां विंध्‍यवासिनी के दरबार की महिमा अपरंपार है. महाभारत हो या पद्मपुराण,  हर जगह मां के इस स्वरूप का वर्णन मिलता है. मान्यता है कि मां के ही आर्शीवाद से इस सृष्टि का विस्तार हुआ है. आदिशक्ति जगत जननी मां विन्ध्यवासिनी चमत्कार की ढेरों कहानियां अपने अंदर समेटे हुए हैं.

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भक्तों को तीन रूपों में मिलता है दर्शन
मां विन्ध्यवासिनी  एक-दो नहीं, बल्कि तीन रुपों में भक्तों को दर्शन देती हैं. पहला मां विन्ध्यवासिनी, दूसरा मां काली और तीसरा मां सरस्वती, जिन्हें अष्टभुजा के रुप में भी जाना जाता है. खास बात यह है कि मां के तीनों रुप एक त्रिकोण पर विराजमान है, जिनकी परिक्रमा  व विधि-विधान से पूजा कर लेने मात्र से भक्त न सिर्फ मोक्ष को प्राप्त होता है बल्कि लौकिक व अलौकिक सुखों को भोगता है. मंदिर पसिसर में ही स्थित हवन कुंड बारहों महीने अखंड ज्योति के रुप में जलता रहता है. मान्यता है कि यहां आने वाले लोगों के असंभव कार्य भी मां विंध्यवासिनी के दर्शन से पूरे हो जाते हैं. 

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