Govatsa Dwadashi: कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी को गोवत्स द्वादशी के रूप में मनाया जाता है. इस दिन गौमाता की उसके बछड़े के साथ पूजा करने का विधान है. धार्मिक मान्यता के अनुसार पुत्र की लंबी उम्र के लिए इस व्रत को रखा जाता है और सायंकाल जब गाय और बछड़े चर कर वापस आते हैं तो बछड़े वाली गाय की पूजा करके कथा सुनने के बाद प्रसाद ग्रहण करना चाहिए. इसे बच्छ बारस या वसु द्वादशी भी कहा जाता है. इस बार यह व्रत 09 नवंबर दिन गुरुवार को होगा. 


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भोजन में इन चीजों को लेने की न करें भूल 
गोवत्स द्वादशी के दिन प्रातःकाल स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद रोली, अक्षत, पुष्प और जल का पात्र रख कर देवता, ब्राह्मण, गुरुजन, परिवार के बड़े-बूढे, माता और यदि घर में घोड़े आदि पले हों तो उनकी आरती करने से अक्षय फल प्राप्त होता है. इस दिन व्रत करने वाले को गाय का दूध, दही, घी, छाछ, खीर तथा तेल में बनी हुई भुजिया, पकौड़ी आदि, गेहूं और चावल आदि का सेवन नहीं करना चाहिए. यहां तक कि चाकू से कटे हुए खाद्य पदार्थों का सेवन भी वर्जित है. अंकुरित मोठ, मूंग तथा चने आदि का ही भोजन में उपयोग किया जाता है और इन्हीं चीजों से बने हुए प्रसाद को चढ़ाया जाता है. 


गौमाता में है समस्त देवी देवताओं का वास
गौमाता के प्रत्येक अंग में देवी देवताओं का वास है, इसीलिए विभिन्न अवसरों पर गोमाता की पूजा की जाती है. गाय के मुख में चारों वेदों का वास माना गया है, सींगों में भगवान शिव और विष्णु जी हमेशा विराजमान रहते हैं. सींगों के अगले हिस्से में इंद्र का वास माना गया है. गाय के पेट में कार्तिकेय, मस्तक में ब्रह्मा जी, ललाट पर रुद्र, दोनों कानों में अश्वनी कुमार, नेत्रों में सूर्य और चंद्र, दांतों में गरुण, जीभ में सरस्वती आदि का वास माना जाता है.


(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्‍य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE NEWS इसकी पुष्टि नहीं करता है.)