सबके लिए योग

योग का शाब्दिक अर्थ है जोड़ना या जुड़ना। अध्यात्म के क्षेत्र में योग का मतलब आत्मा को परमात्मा से जोड़ना, वहीं सांसारिक जीवन में योग का मतलब शारीरिक व्यायाम या कसरत से है। गीता में श्रीकृष्ण ने एक स्थल पर कहा है 'योग: कर्मसु कौशलम्' (कर्मो में कुशलता को योग कहते हैं)। योग भारतीय संस्कृति की अभिन्न पहचान है। योग का नाम लेते ही सभी के दिमाग में पहली छवि जो बनती होगी वह भारत की ही होती होगी।
सिर्फ भारतवासी ही नहीं बल्कि पूरे विश्ववासी 21 जून को जब वैश्विक स्तर पर योग दिवस मना रहे हैं तो बहुत सारे सवाल उठ खड़े हुए। क्या यह योग लोकतांत्रिक भावनाओं के अनुरुप है? इससे भी इतर एक और प्रश्न खड़ा होता है कि जो लोग आत्मा और परमात्मा में विश्वास ही नहीं करते तो दोनों को जोड़ने की बात कहां से पैदा होती है। इसलिए योग को लोकतांत्रिक भावनाओं के अनुरूप बनाना होगा और आत्मा-परमात्मा के बंधन से मुक्त करना होगा ताकि सभी जाति-धर्म और स्वतंत्र विचार रखने वाले लोग भी सहज तरीके से योग कर सकें। भारत सरकार ने लोकतांत्रिक भावनाओं का ख्याल रखने की भरसक कोशिश की है। अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस को कामयाब बनाने के लिए केंद्र सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी है। राजपथ पर करीब 35 हजार लोगों ने एक साथ योगासन किया। इस दौरान किसी धार्मिक धुन का प्रसारण नहीं हुआ। योग क्रियाओं में कुछ आसनों को लेकर मुस्लिम धर्म के लोगों के बीच एक विरोधाभास है, जिसे दूर करने के लिए आयुष मंत्रालय ने 'योग और इस्लाम' नामक किताब लॉन्च की है। इसमें बताया गया है कि योग का किसी धर्म विशेष से संबंध नहीं है। इसे सभी धर्मों के लोग कर सकते हैं।
योग तन-मन की सेहत को दुरुस्त रखने का एक कारगर माध्यम है। बहरहाल, इस विराट आयोजन की सफलता तभी मानी जाएगी जब हम योग के बहाने अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो जाएंगे।
प्रणव पुरुषोत्तम