सज़ा-ए-मौत देने के बाद जज क्यों पेन की निब तोड़ देते हैं?
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सज़ा-ए-मौत देने के बाद जज क्यों पेन की निब तोड़ देते हैं?

अपराधियों को उनके किए की सजा उनके अपराधों के हिसाब से तय होती है और जैसा अपराध वैसी ही सजा मिलने का प्रावधान है।भारत में फांसी की सज़ा को काफी रेयर माना जाता है और इसे दिया भी नहीं जाता है लेकिन जब भी फांसी की सज़ा होती है, जज साहब फैसला सुनाने के बाद  जिस पेन से फैसले को लिखा गया है, उस पेन की निब को तोड़ देते हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

 नई दिल्ली: अपराधियों को उनके किए की सजा उनके अपराधों के हिसाब से तय होती है और जैसा अपराध वैसी ही सजा मिलने का प्रावधान है।भारत में फांसी की सज़ा को काफी रेयर माना जाता है और इसे दिया भी नहीं जाता है लेकिन जब भी फांसी की सज़ा होती है, जज साहब फैसला सुनाने के बाद  जिस पेन से फैसले को लिखा गया है, उस पेन की निब को तोड़ देते हैं।

पेन की निब को तोड़ने के पीछे क्या राज है और इसके पीछे की वज़ह क्या है क्या कभी आपने ये जानने की कोशिश की है। आखिर जज ऐसा क्यों करते हैं।

संभवत: ये हैं वो कारण-

असल में ये माना जाता है कि किसी व्यक्ति के जीवन के फैसले को जिस पेन से लिख दिया जाता है, उस पेन का दुबारा कभी फिर से प्रयोग न हो।

इसके अलावा ये भी उम्मीद की जाती है कि कोई भी व्यक्ति इस तरह के जघन्य अपराध न करे। इसलिए पेन की निब तोड़ना एक प्रतीकात्मक कृत्य है।

जब फैसले में पेन से 'मौत' लिख दिया जाता है, तो इसी क्रम में पेन की निब को तोड़ दिया जाता है, ताकि उस इंसान के साथ-साथ पेन भी खत्म हो जाए।

इसके पीछे का मनोवैज्ञानिक पहलू ये भी माना जाता है कि शायद फैसले से अपने आप को अलग रखने या फैसले को लेकर होने वाले प्रायश्चित या अपराधबोध को लेकर जज पेन की निब तोड़ देते हैं।

कहा जाता है कि मौत की सजा किसी भी जघन्य अपराध के मुकदमों की प्रक्रिया का आखिरी कदम माना जाता है जिसे किसी भी अन्य प्रक्रिया द्वारा बदला नहीं जा सकता।

हमारे कानून में फांसी की सज़ा सबसे बड़ी सज़ा होती है, इसलिए जज इस सज़ा को मुकर्रर करने के बाद पेन की निब तोड़ देते हैं, ताकि उस पेन का इस्तेमाल भविष्य में न हो सके।

 

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