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नई दिल्ली: हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक स्टडी की है जिसमें एक भयावह खुलासा हुआ है. इस स्टडी में बताया गया है कि इस सदी के अंत तक यानी साल 2100 तक आर्कटिक सागर (Arctic Ocean) से सारी बर्फ गायब हो जाएगी और साथ ही वहां मौजूद सारे पोलर बीयर यानी ध्रुवीय भालू भी खत्म हो चुके होंगे. इसके अलावा ध्रुवीय भालू के साथ-साथ बर्फीली दुनिया से जुड़े कई जीव-जंतुओं के खत्म होने की पूरी आशंका है.
सैटेलाइट से मिली तस्वीरें बताती हैं कि 42 साल पहले आर्कटिक सागर में जितनी बर्फ थी, अब उतनी नहीं है. वहां पर बर्फ पिघल चुकी है. दरअसल आर्कटिक में एक इलाका है, जिसे लास्ट आइस एरिया (Last Ice Area) कहते हैं. यहां पर सबसे पुरानी और मोटी बर्फ की परत है. यह बर्फ की परत करीब 10 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली हुई है. यह इलाका कनाडा (Canada) के पश्चिमी तट से लेकर ग्रीनलैंड (Greenland) के उत्तरी तट तक फैला हुआ है. माना जाता है कि वहां की बर्फ 13 फीट मोटी है. इस इलाके का नाम लास्ट आइस एरिया इसलिए रखा गया, क्योंकि वैज्ञानिकों को उम्मीद थी कि यह बर्फ जल्दी नहीं पिघलेगी. लेकिन, अब ऐसा नहीं लग रहा है.
उम्मीद है कि वर्तमान में हो रहे जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और वैश्विक गर्मी (Global Warming) की वजह से साल 2050 तक आर्कटिक बर्फ की यह मोटी परत पिघल कर आधी से भी कम हो सकती है और आने वाले 50 सालों में इनके पूरी तरह से खत्म होने की भी संभावना है. इतने बदलाव के बाद वहां बसने वाले सभी जीव, (पोलर बीयर (Polar Bear), पेंगुइन्स (Penguins), वॉलरस (Walrus)) या तो कोई दुसरी जगह भागेंगे, या फिर इनकी प्रजाति पूरी तरह खत्म हो जाएगी.
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आर्कटिक से बर्फ पिघलने के मुद्दे पर चिंता जताते हुए कोलंबिया यूनिवर्सिटी (Columbia University) के लैमोंट-डोहर्टी अर्थ ऑब्जर्वेटरी (Lamont-Doherty Earth Observatory) के एक साइंटिस्ट रॉबर्ट न्यूटन ने बताया है कि इतनी तेजी से हो रहे इस बदलाव से सबसे ज्यादा खतरा ध्रुवीय भालू (Polar Bear) को है. जिसका जीवन बर्फ पर ही निर्भर है. अगर यह बर्फ न हो तो उसका जीवन खत्म हो जाएगा.
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रॉबर्ट न्यूटन ने बताया कि आर्कटिक की बर्फ हर साल बढ़ती और पिघलती है. गर्मियों में यह अपने न्यूनतम स्तर तक पहुंच जाती हैं. जबकि, सितंबर से फिर इसके बढ़ने की प्रक्रिया शुरु हो जाती है. मार्च तक बर्फ की परत अपने मैक्सिमम लेवल पर रहती है. लेकिन जिस तरह से कार्बन डाईऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन (Excretion) हो रहा है, उस हिसाब से वायुमंडल की गर्मी बहुत तेजी से बढ़ रही है. अब गर्मी ज्यादा दिनों तक रहने लगी है. जिस वजह से बर्फ अब ज्यादा पिघलने लगी है.
आपको बता दें कि पोलर बीयर को अपना खाना नहीं मिलने की स्थिति में वह समुद्री पक्षियों के अंडे भी खा लेता है. इससे पोलर बीयर को पर्याप्त ऊर्जा मिलती है. अगर ऐसे ही परिवर्तनों से खाने और बर्फ की दिक्कत होती रही तो पोलर बीयर जल्द खत्म हो जाएंगे या फिर ये कम ठंडे इलाकों में आकर ग्रिजली भालू यानी भूरे-काले रंग के भालुओं के साथ क्रॉसब्रीडिंग करेंगे. लेकिन ऐसी स्थिति में पोलर बीयर और ग्रिजली बीयर के मिलन से जो भालू पैदा होगा उसे पिजली बीयर (Pizzly Bears) के नाम से पहचाना जाएगा. लेकिन मिक्सड भालू की यह नई प्रजाति कितनी खतरनाक होगी, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है. क्योंकि इसमें हर तरह के पर्यावरण में रहने की क्षमता होगी. यह ठंडे से लेकर गर्म इलाकों तक शिकार करने लायक होगा जो कि अन्य जीवों के लिए खतरा है.
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