Science News: वैज्ञानिकों की एक टीम को लगता है कि विलुप्त हो चुके ज्वालामुखी हमारी भविष्‍य की ऊर्जा जरूरतों को पूरा कर सकते हैं. वे एक विलुप्त ज्वालामुखी का सिमुलेशन रन करने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं. ऑस्ट्रेलियाई और चीनी वैज्ञानिकों की इस टीम के अनुसार, विलुप्त ज्वालामुखी अपने भीतर दुर्लभ मृदा तत्वों का भंडार जमा किए बैठे हैं. उन ज्वालामुखियों को 'विलुप्त' कहा जाता है जिनसे लावा फूटते मानव ने नहीं देखा. ये हजारों-लाखों साल से निष्क्रिय पड़े हैं.


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क्यों इतने दुर्लभ हैं ये तत्व?


Geochemical Perspectives Letters में छपी स्टडी के मुताबिक, ज्वालामुखियों के भीतर दबे ठोस लौह-समृद्ध मैग्मा में दुर्लभ मृदा तत्व (REEs) पाए जाते हैं. ये वे धातुएं होती हैं जो आजकल की तकनीक वाली जिंदगी के लिए अहम हैं. स्मार्टफोन से लेकर इलेक्ट्रिक वाहन, विंड टर्बाइन जैसी हाई-टेक इंडस्ट्रीज के लिए दुर्लभ मृदा तत्व अहम हैं. जैसे-जैसे दुनिया फॉसिल फ्यूल (जीवाश्‍म ईंधन- कोयला, कच्चा तेल इत्यादि) से दूर हो रही है, इन दुर्लभ मृदा तत्वों की मांग बढ़ती जा रही है.


सबसे बड़ी चुनौती ऐसी चट्टानों को ढूंढना है जिनमें ये धातुएं इतनी अधिक मात्रा में हों कि उनका निष्कर्षण (extraction) आर्थिक दृष्टि से व्यवहार्य (economically viable) हो. स्टडी के सह-लेखक और ANU के डॉ. माइकल एनेनबर्ग ने कहा, 'दुर्लभ मृदा तत्व इतने भी दुर्लभ नहीं हैं. वे सीसे (lead) और तांबे (copper) की तरह प्रचुर मात्रा में हैं. लेकिन इन धातुओं को उनके खनिजों से तोड़ना और निकालना बेहद चुनौतीपूर्ण और महंगा है.


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विलुप्त ज्वालामुखी की परिभाषा


अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे (USGS) के अनुसार, उन ज्वालामुखियों को 'विलुप्त ज्वालामुखी' कहा जाता है जो फिर कभी नहीं फटेंगे. विलुप्त ज्वालामुखी वे हैं जो मानव इतिहास में कभी नहीं फटे हैं. अमेरिका के ओरेगन में माउंट थिएलसन एक विलुप्त ज्वालामुखी है. आज जो पर्वत है, वह उस ज्वालामुखी का अवशेष मात्र है. इसका अंतिम विस्फोट लगभग 300,000 साल पहले हुआ था.


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नई रिसर्च बताती है कि ऐसे विलुप्त ज्वालामुखियों में दुर्लभ मृदा तत्व भारी मात्रा में मौजूद हो सकते हैं. यह रिसर्च ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी (ANU) और यूनिवर्सिटी ऑफ द चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज (CAS) के वैज्ञानिकों ने की है.


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