Promethium: 80 साल पहले हुई थी दुर्लभ रेडियोएक्टिव तत्व की खोज, अब जाकर पता चले इसके सारे सीक्रेट
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Promethium: 80 साल पहले हुई थी दुर्लभ रेडियोएक्टिव तत्व की खोज, अब जाकर पता चले इसके सारे सीक्रेट

Promethium Element: प्रोमेथियम (एटॉमिक नंबर 61) पृथ्वी के बेहद दुर्लभ तत्वों में से एक है. आज से करीब आठ दशक पहले, 1945 में प्रोमेथियम की खोज हुई थी.

Promethium: 80 साल पहले हुई थी दुर्लभ रेडियोएक्टिव तत्व की खोज, अब जाकर पता चले इसके सारे सीक्रेट

 Promethium Chemical Element: वैज्ञानिकों ने बेहद दुर्लभ और रहस्यमयी रेडियोएक्टिव तत्व प्रोमेथियम के राज खोले हैं. प्रोमेथियम पर करीब 80 साल से रिसर्च चल रही थी. यह तत्व इतना दुर्लभ है कि पृथ्वी के क्रस्ट में किसी भी समय सिर्फ 500-600 ग्राम प्रोमेथियम ही मौजूद रहता है. इसके सभी आइसोटोप रेडियोएक्टिव होते हैं . यह पीरियॉडिक टेबल यानी आवर्त सारणी के निचले हिस्से में मौजूद 15 लैंथेनाइड तत्वों में से एक है.

लैंथेनाइड वे तत्व होते हैं जो पीरियॉडिक टेबल में लैन्थनम के बाद आते हैं. इन्हें दुर्लभ मृदा तत्व भी कहा जाता है. इन धातुओं में ताकतवर चुंबकत्व और अजीब प्रकाशीय विशेषताओं जैसे बेहद उपयोगी गुण होते हैं. लैंथेनाइड तत्वों का इस्तेमाल आज के दौर में इस्तेमाल होने वाली तमाम इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेज में होता है.

प्रोमेथियम की खोज करीब आठ दशक पहले, 1945 में हुई थी. वैज्ञानिक पहली बार इस रेडियोएक्टिव तत्व को दूसरे अणुओं से जोड़कर एक केमिकल 'कॉम्प्लेक्स' बनाने में सफल हुए हैं. इससे केमिस्ट्स को प्रोमेथियम के गुणों को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलेगी. किताबों में प्रोमेथियम के बारे में ज्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है.

Promethium : क्यों मुश्किल थी इस तत्व पर रिसर्च?

अमेरिका की ओक रिज नेशनल लैबोरेटरी (ORNL) के वैज्ञानिकों ने प्रोमेथियम को खोजा था. अब वहीं के वैज्ञानिकों ने यह सफलता भी हासिल की है. इस तत्व को समझ पाना इसलिए मुश्किल था क्योंकि सही सैंपल ही नहीं मिल पा रहा था. प्रोमेथियम का कोई स्थिर आइसोटोप नहीं है. चूंकि सारे आइसोटोप रेडियोएक्टिव होते हैं इसलिए समय के साथ उनका क्षय होता रहता है.

वैज्ञानिक प्रोमेथियम को एक फिशन प्रोसेस के जरिए हासिल करते हैं. ORNL ही प्रोमेथियम-147 का इकलौता उत्पादक है. यह ऐसा आइसोटोप है जिसकी अर्द्ध-आयु 2.6 साल होती है. पिछले साल विकसित किए गए तरीके से, वैज्ञानिकों ने न्यूक्लियर कूड़े की धाराओं से इस आइसोटोप को अलग किया. Nature जर्नल में छपी स्टडी के मुताबिक, यह सबसे शुद्ध सैंपल था.

फिर वैज्ञानिकों की टीम ने इस सैंपल को लिगैंड के साथ कंबाइन किया. लिगैंड खासतौर पर डिजाइन किया गया अणु है जिससे धातु के परमाणुओं को फंसाया जाता है. रिसर्चर्स ने प्रोमेथियम-147 और लिगैंड को जोड़कर पानी में एक जटिल कॉम्प्लेक्स बनाया. PyDGA नाम के कोऑर्डिनेटिंग अणु ने नौ प्रोमेथियम-ऑक्सीजन बॉन्ड बनाए, जिससे रिसर्चर्स को पहली बार प्रोमेथियम कॉम्प्लेक्स के बॉन्ड गुणों को एनालाइज करने का मौका मिला.

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खास तकनीक के सहारे बनाई परमाणुओं की तस्वीर

स्टडी के सह-लेखक और ORNL के वैज्ञानिक अलेक्जेंडर इवानोव ने Live Science को बताया कि प्रोमेथियम कॉम्पलेक्स का एनालिसिस भी आसान नहीं था. उन्होंने कहा, 'चूंकि प्रोमेथियम रेडियोएक्टिव है, यह क्षय होता रहता है. एक बार जब यह क्षय हो जाता है, तो यह निकटवर्ती तत्व, सैमरियम में बदल जाता है. तो आपको सैमरियम के रूप में थोड़ा संक्रमण मिलता है.'

इस चुनौती को ध्‍यान में रखते हुए, रिसर्चर्स ने खास तकनीक के सहारे प्रोमेथियम कॉम्प्लेक्स पर हाई-एनर्जी वाले फोटॉन्स की बमबारी की. इससे उन्हें परमाणुओं की पोजीशन और बॉन्ड्स की लंबाइयों का फोटो बनाने में मदद मिली. धातु-ऑक्सीजन बॉन्ड की लंबाइयों ने टीम को प्रमुख प्रोमेथियम-ऑक्सीजन बॉन्ड पर ध्यान गड़ाने दिया जिसमें सैमरियम का संक्रमण नहीं था.

इस जानकारी की मदद से वैज्ञानिक पहली बार प्रोमेथियम के गुणों की अन्य दुर्लभ मृदा कॉम्प्लेक्स से तुलना कर पाएंगे. अब ORNL की टीम इस तत्व के कोआर्डिनेशन वातावरण और रासायनिक व्यवहार की साफ तस्वीर बनाने के लिए पानी में प्रोमेथियम पर रिसर्च कर रही है.

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