भूलने को मत मानिए बीमारी, चौंकाने वाला किया गया दावा
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भूलने को मत मानिए बीमारी, चौंकाने वाला किया गया दावा

Why we forget: वैज्ञानिकों का कहना है कि इंसान के दिमाग में इतनी ताकत और क्षमता है जिसके ज्यादातर हिस्से का इस्तेमाल लोग जीवन के आखिरी समय तक भी नहीं कर पाते हैं. इस बीच भूलने की बीमारी (Alzheimer) और याददाश्त (Memory) के बीच एक नए कनेक्शन का खुलासा हुआ है. 

भूलना हर बार बीमारी नहीं (सांकेतिक तस्वीर)

नई दिल्ली: अक्सर लोग छोटी मोटी चीजें जैसे मोबाइल या चश्मा कहीं रख कर भूल जाते हैं. मान लीजिए अगर ऐसा न होता हो तो ये संभव है कि आप कुछ समय या घंटे भर बाद कोई काम या फिर अपना फेवरेट TV सीरियल देखना चाहते हों लेकिन आप किसी और झंझट में फंसने की वजह से भूल जाते हों.

  1. हम अक्सर क्यों कुछ भूल जाते हैं?
  2. छोटी बातें भूल जाना बीमारी नहीं
  3. सामने आया दिमाग और याददाश्त का असली कनेक्शन

'हर बात भूलना बीमारी नहीं'

OTT पर मूवी देखनी हो या पेपर वाले, प्रेस वाले, बिजली या राशन के बिल का भुगतान. बाजार जाना हो या कोई भी काम जिसे आप करना चाहते हैं लेकिन अक्सर भूल जाते हैं तो इस बात को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है. युवावस्था में अगर आपके साथ भी ऐसा कुछ होता हो तो इस बात के लिए भी घबराने की जरूरत बिलकुल नहीं है कि कहीं आप भूलने की बीमारी अल्जाइमर (Alzheimer) का शिकार तो नहीं हो रहे हैं.

दिमाग और याददाश्त का नया कनेक्शन

वैज्ञानिकों का दावा है कि 'भूलना' दरअसल सीखने का ही एक रूप है. वहीं भूलने का यह मतलब कतई नहीं है कि जो बातें इंसान भूल जाता है वो दोबारा याद नहीं आएगीं.

आप इसे यूं समझ सकते हैं कि भूलना (Forgetting) दिमाग को कुछ ज्यादा और अधिक महत्वपूर्ण जानकारी दिलाने  हासिल करने और उसे स्टोर करने में मददगार साबित होता है. ट्रिनिटी कॉलेज और टोरंटो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक भूली हुई यादें, दरअसल हमेशा के लिए नहीं खो जाती हैं बस इंसान किसी वजह से उन तक पहुंच नहीं पाता है.

'भूली बिसरी याद आना सामान्य प्रकिया'

अपने शोध में वैज्ञानिकों ने बताया कि दिमाग ही तय करता है हमें कौन सी चीजें और बातें यादें रखनी हैं. वो कौन सी बाते हैं जिन्हें हम भूल सकते हैं. समय के साथ यादों का कमजोर पड़ना भी कुछ नया सीखने की प्रकिया का हिस्सा है. उनके मुताबिक कुछ यादें स्थायी रूप से न्यूरॉन्स के सेट में संग्रहीत होती हैं. वो अवचेतन मन में स्टोर हो जाती हैं इसलिए वो बातें इंसान कभी नहीं भूलता है. यानी कौन सी बात या याद हमारे लिए ज्यादा जरूरी है और कौन सी नहीं यह भी दिमाग ही तय करता है और उसी हिसाब से वो यादों को स्टोर (जमा) और इरेज (साफ) करता रहता है.

इसी तरह बहुत पुरानी यादों का अचानक लौटना भी एक सामान्य प्रकिया है. समय के साथ यादों का कमजोर पड़ना भी कुछ नया सीखने की प्रकिया का हिस्सा है. 

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अल्जाइमर के रोगियों की बात अलग

वैज्ञानिकों के मुताबिक अल्जाइमर के मरीजों का केस अलग होता है. जिन्हें अल्जाइमर नहीं है वो सामान्य जीवन बिताते हैं. स्वस्थ इंसान का दिमाग उसे किसी भी परिवर्तन की स्थिति में या फैसले की घड़ी में गहराई से सोचने की ताकत और समझा देता है. 

हालांकि अल्जाइमर के रोगियों को दवा देकर उनकी हालत में कुछ हद तक सुधार किया सकता है. डॉक्टर रॉयन के मुताबिक, 'भूलना और भूलने की बीमारी होना दोनों में अंतर है. किसी शख्स में लगातार भूलने की स्थिति तब बनती है जब उसकी एनग्राम कोशिकाओं को एक्टिवेट नहीं किया जा सकता हो. अल्जाइमर के रोगियों का मामला कुछ ऐसा होता है कि उसकी यादें एक तिजोरी में जमा हो गई हों लेकिन मरीज उन्हें तिजोरी से निकालने का कोड भूल गया हो.'

 

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