सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का सोर्स कहां है? विज्ञान ने खोज लिया ब्रह्मांड की इस पहेली का जवाब
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सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का सोर्स कहां है? विज्ञान ने खोज लिया ब्रह्मांड की इस पहेली का जवाब

Sun's Magnetic Field: वैज्ञानिक अभी तक मानते आए थे कि सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र उसके कोर में पैदा होता है. हालांकि, नई खोज बताती है कि मैग्नेटिक फील्ड का सोर्स सूर्य की सतह के काफी पास हो सकता है.

सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का सोर्स कहां है? विज्ञान ने खोज लिया ब्रह्मांड की इस पहेली का जवाब

Solar Magnetic Field Origin: हमारे सूर्य का चुंबकीय क्षेत्र बेहद शक्तिशाली है. उसी की वजह से सूर्य की सतह पर विस्फोट होते हैं और सौर तूफान आते हैं. इस महीने सूर्य काफी सक्रिय रहा है तो उसके पीछे यह चुंबकीय क्षेत्र ही है. लेकिन सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र की उत्पत्ति आखिर कहां हुई? यह सवाल खगोलविदों को सदियों से परेशान करता आया है. अभी तक यह माना जाता रहा कि सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का सोर्स तारे में बेहद गहराई पर है. हालांकि, Nature जर्नल में छपी एक स्टडी में रिसर्चर्स ने अलग ही खोज का दावा किया है. उनका कहना है कि सूर्य का चुंबकीय उसकी सौर सतह की सबसे बाहरी परतों में प्लाज्मा में अस्थिरता से पैदा होता है. वैज्ञानिकों ने जटिल कंप्यूटर मॉडलों का इस्तेमाल करते हुए यह खोज की है. इस रिसर्च से वैज्ञानिकों को सौर ज्वालाओं और सौर तूफानों की भविष्यवाणी करने में मदद मिल सकती है.

सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का सोर्स

रिसर्च टीम ने दिखाया हे कि चुंबकीय क्षेत्र सूर्य की सतह के लगभग 32,100 किलोमीटर नीचे बन सकते हैं. बाकी मॉडल्स यह जाहिर करते थे कि ऐसा काफी गहराई (करीब 2 लाख किलोमीटर नीचे) में होता है. सूर्य वास्तव में प्लाज्मा का एक गोला है जिसके आवेशित आयन घूमते शक्तिशाली चुंबकीय क्षेत्र बनाने के लिए घूमते हैं. घूमते और बहते प्लाज्मा के इस क्षेत्र को 'कंवेक्शन जोन' कहा जाता है. यह जोन सूर्य की सतह से करीब दो लाख किलोमीटर नीचे तक फैला हुआ है.

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सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का यह नजारा NASA की सोलर डायनेमिक्स ऑब्जर्वेटरी ने जेनरेट किया था.

वैज्ञानिकों ने बनाया सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र का मॉडल

सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र की रेखाएं देख पाना बड़ा मुश्किल हैं. ये सूर्य के वायुमंडल में किसी लूप की तरह नाचती हैं और एक जाल जैसा खड़ा कर देती हैं. पृथ्‍वी का चुंबकीय क्षेत्र सूर्य के आगे कुछ भी नहीं. इस‍ वजह से वैज्ञानिक गणितीय मॉडल्स का सहारा लेते रहे हैं. 3D कंप्यूटर सिमुलेशंस भी यूज हुए लेकिन वे बेहद सरल थे. पहली बार मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) में रिसर्चर्स ने हेलिओसिज़्मोलॉजी नाम की फील्ड से लिए गए डेटा का रुख किया. इसमें अंदर की संरचना का अनुमान लगाने के लिए सूर्य की बाहरी सतह पर कंपन के ऑब्जर्वेशंस का यूज होता है.

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वैज्ञानिकों ने सतह के कंपनों का एक मॉडल तैयार किया और नतीजों ने दिखाया कि सूर्य की सतह के टॉप 5% से 10% तक प्लाज्मा के फ्लो में बदलाव बाहर से देखे गए चुंबकीय क्षेत्रों से सबसे अधिक मेल खाता है. जब सूर्य की आंतरिक परतों के संभावित प्रभावों को इस मॉडल में जोड़ा गया तो तस्वीर काफी धुंधली हो गई.

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