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नई दिल्ली: पर्यावरण में हो रहे बदलाव और इंसानों की बढ़ती गतिविधियों की वजह से कई जीवों को अपना घर छोड़ना पड़ता है और कई विलुप्तता के कगार पर हैं. ऐसा ही कुछ हुआ जब उत्तरी ध्रुव के ठंडी वाले आर्कटिक इलाके में रहने वाला वॉलरस 4325 किलोमीटर दूर आयरलैंड के तट के पास दिखाई पड़ा. इस दुर्लभ नजारे को देखने के बाद पर्यावरण वैज्ञानिक काफी चिंतित हैं. वो इसे बड़े बदलाव की निशानी बता रहे हैं. कोई जीव इतनी दूर अपना घर छोड़कर आ जाए तो ये प्रकृति की तरफ से बड़ी चेतावनी है.
एक स्थानीय शख्स और उसकी पांच साल की बेटी ने आयरलैंड के काउंटी केरी इलाके के तट पर एक युवा वॉलरस (Walrus) को देखा. इसके बाद उन्होंने स्थानीय प्रशासन को ये सूचना दी. दरअसल आयरलैंड में वॉलरस का दिखना अत्यधिक दुर्लभ है. यह वॉलरस आर्कटिक से आया था. इस स्थान से आर्कटिक की दूरी 4300 किलोमीटर से ज्यादा है. ऐसे में ये नजारा वाकई अद्भुत था.
स्थानीय प्रशासन ने कहा कि ये जीव आयरलैंड के आसपास के समुद्र में पाया ही नहीं जाता है. इसके बाद वैज्ञानिकों को इसकी जानकारी दी गई है. WWF में आर्कटिक और मरीन लाइफ के सीनियर एडवाइजर टॉम अर्नबोम (Senior Advisor Tom Arnbom) ने कहा कि इस इलाके में वॉलरस का दिखना दुर्लभ है.
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टॉम ने बताया कि इस वॉलरस का यहां तक आना प्रकृति में लगातार हो रहे बदलाव की निशानी है. वॉलरस का इतनी दूर आना काफी बहुत बड़ी बात है. इसका आकार एक बड़े बैल की तरह है. स्थानीय लोगों ने बताया कि यह पहले काउंटी केरी के वैलेंशिया आइलैंड (Valencia Island County Kerry) के तट पर पत्थर पर चढ़ा. फिर कुछ देर के लिए समुद्र में गायब हो गया. इसके बाद जब ये वापस आया तो दो-तीन घंटे तक उसी पत्थर पर लेटा रहा.
An arctic walrus has come ashore on #Valentia Island in #Kerry, after drifting from #Geeenland over several weeks. #Dingle-based Marine Biologist Kevin Flannery has appealed to people not to interfere with the walrus. Pics courtesy birthday boy Micheál Lynch. @rtenews pic.twitter.com/NKQHo8ITZb
— Paschal Sheehy (@PaschalSheehy) March 14, 2021
मरीन बायोलॉजिस्ट केविन फ्लैनेरी (Marine biologist Kevin Flannery) कहते हैं कि यह पहली बार हुआ है जब आर्कटिक सर्किल (Arctic circle) से आयरलैंड तक कोई वॉलरस आया हो. द आयरिश व्हेल एंड डॉल्फिन ग्रुप (IWDG)के अनुसार 1999 से अब तक यह तीसरी बार है जब वॉलरस आयरलैंड तक आया है. ऐसा भी हो सकता है कि वह किसी आइसबर्ग (Iceberg) पर सोया हो और बहते हुए यहां तक आ गया हो.
टॉम अर्नबोम का के मुताबिक, वॉलरस खाने या प्रजनन की तलाश में यहां तक आया हो सकता है. कई बार ये छिछले पानी की तरफ चले जाते हैं. जहां 100 से 200 मीटर की गहराई हो. यहां पर ये मसेल्स (Mussels) या क्लेम्स खाते हैं. ये एक दिन में हजारों क्लेम्स खाने की क्षमता रखते हैं. इनके विशालकाय शरीर में पचाने की क्षमता बहुत ज्यादा होती है.
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टॉम अर्नबोम कहते हैं कि ये भी संभव है कि ये अपने समूह से अलग हो गया हो. अगर ऐसा हुआ है तो ये वॉलरस ज्यादा दिन जीवित नहीं रह सकेगा. हालांकि ये वॉलरस तस्वीरों में बीमार नहीं दिख रहा है. ऐसा संभव है कि ये वॉलरस अपने घर का रास्ता ढूंढ कर वापस चल जाए लेकिन फिलहाल ये नजारा अत्यधिक दुर्लभ है.
गौरतलब है कि उत्तरी अटलांटिक में 20 हजार से ज्यादा वॉलरसों का घर है. लेकिन पर्यावरण में हो रहे भयानक परिवर्तन और जहाजों के आने-जाने के मार्ग की वजह से इनके घर टूट रहे हैं. ये अपना घर और रहवास वाला इलाका छोड़ने को मजबूर हो गए हैं. ऐसे में इस प्रजाति के जीवन पर खतरा भी मंडरा रहा है. ऐसी विपरीत परिस्थिति में ये जीव विलुप्त भी हो सकते हैं.
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क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल वार्मिंग और इंसानी गतिविधियों की वजह से प्रशांत महासागर, अलास्का के पास, उत्तर-पूर्वी रूस में हजारों स्तनधारी और समुद्री जीव मर चुके हैं. वॉलरस एक ऐसा जीव है जो क्लाइमेट चेंज को तो बर्दाश्त कर सकता है लेकिन खाने और प्रजनन के लिए उसे जगह बदलनी ही पड़ेगी. क्योंकि जहां वह रहता है उस इलाके में इंसानी गतिविधियां बहुत ज्यादा बढ़ गई हैं.
वॉलरस (Walrus) एक मांसाहारी जीव है जो उत्तरी ध्रुव के नजदीक आर्कटिक सर्किल या अटलांटिक सागर के आसपास रहता है. इसके मांस, फैट, स्किन, टस्क और हड्डियों के लिए इनका शिकार भी होता है. इस जानवर का वजन 2000 किलोग्राम तक हो सकता है. वहीं इसकी इसकी लंबाई 16 फीट तक हो होता है.
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