Amazon Vs Flipkart: कौन बनेगा ई-कॉमर्स मार्केट का 'किंग'
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Amazon Vs Flipkart: कौन बनेगा ई-कॉमर्स मार्केट का 'किंग'

भारत में डिजिटल क्रांति के साथ ई-कॉमर्स सेक्टर की एंट्री हुई, जिसने उपभोक्ताओं के हर तरह के सामान खरीदने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया. फ्लिपकार्ट और एमेजॉन इस सेक्टर की अगुवाई करने वाले दिग्गज बनकर उभरे हैं.  

Amazon Vs Flipkart: कौन बनेगा ई-कॉमर्स मार्केट का 'किंग'

भारत में डिजिटल क्रांति के साथ ई-कॉमर्स सेक्टर की एंट्री हुई, जिसने उपभोक्ताओं के हर तरह के सामान खरीदने के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया. इस सेक्टर ने पिछले एक दशक में उतार-चढ़ाव के अपने दौर को देखा है, जिसमें भारी छूट और विक्रेता एकाधिकार के बारे में नीतिगत बदलाव के रूप में सबसे कम अंक शामिल रहे और सरकार की ओर से एफडीआई निवेश में 100% तक की छूट का सबसे ऊंचा स्तर रहा. हालांकि उद्योग की ग्रोथ पिछले साल के मध्य में धीमी हो गई थी, लेकिन आखिरकार ये फिर अपनी लय में लौट आई और दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में इस सेक्टर ने बढ़त बनाई. फ्लिपकार्ट और एमेजॉन इस सेक्टर की अगुवाई करने वाले दिग्गज बनकर उभरे हैं. उनकी क्षमता के बारे में बारीकी से देखने पर हमें इस पूरी इंडस्ट्री के बारे में बहुत कुछ पता चल सकता है.

हाइपर-लोकल होने की दौड़
पिछले साल दोनों कंपनियों ने बाजार की हिस्सेदारी के प्रमुख हिस्से को हथियाने के लिए एक दूसरे को कड़ी टक्कर दी. एमेजॉन फ्रेश ने फूड और किराने के सामान की डिलिवरी स्पेस में प्रवेश किया तो फ्लिपकार्ट ने अपने नए कार्यक्रम, FarmerMart की घोषणा की ताकि एमेजॉन को टक्कर दी जा सके. हालांकि ये कार्यक्रम अभी तक लॉन्च नहीं किया गया है, जो कि पहले से ही मौजूदा ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए एक बड़ा खतरा है जो एक ही जगह पर काम करते हैं, जैसे कि लिस्शियस (Liscious) और फ्रेशटूहोम (FreshToHome) क्योंकि इसकी मांस उत्पादों को भी बेचने की योजना है. 

साफ है कि इन पेशकश के जरिए, दोनों ब्रांड हाइपर-लोकल मार्केट में घुसने का इरादा रखते हैं, जिन पर फिलहाल स्विगी, ग्रोफर्स और बिगबास्केट जैसे कंपनियों का कब्जा है, ताकि वो दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों और उससे आगे के बाजारों में भी जा सकें. इसके अलावा, एमेजॉन ने फ्यूचर ग्रुप के फ्यूचर कूपन का एक हिस्सा खरीदा है, जो बिग बाजार और ईजी डे जैसी सुपरमार्केट चेन का संचालन करता है, इससे साफ है कि कंपनी का इरादा उन ऑफलाइन ग्राहकों तक पहुंचना है जो दूसरे और तीसरे दर्जे के शहरों में रहते हैं. इसका फायदा ये है कि ब्रांड अपने बनाए एक अनोखे सुरक्षा जाल में रहेगा- अगर ये अपने ई-कॉमर्स वेंचर के जरिए टियर II और टियर III उपभोक्ताओं को पकड़ने में नाकाम रहता है, तो ये निश्चित रूप से ब्रांड के साथ जुड़े डिजिटल सुपरमार्केट चेन के जरिए ऐसा कर सकता है जिन्हें उपभोक्ता पहले से जानते हैं और उन पर भरोसा करते हैं.

भारत के ओटीटी बाजार में कब्जा जमाना
एमेजॉन के प्राइम वीडियो ने ऑरिजिनल कंटेंट के साथ साथ बहु-भाषी ऑन-डिमांड कंटेंट के जरिये देशभर के दर्शकों को अपनी ओर खींचा है, जिसकी वजह से ये भारत में सबसे लोकप्रिय ओटीटी प्लेटफॉर्म में से एक बन गया है. ओटीटी इंडस्ट्री अभी भी अपनी शुरुआती स्टेज में है, जबकि पीडब्ल्यूसी का अनुमान है कि ये 2023 तक 11,970 करोड़ रुपये की इंडस्ट्री हो जाएगी, यही वजह है कि महज तीन साल में हमारे सामने 30 से ज्यादा नए प्लेटफॉर्म खड़े हो गए हैं. इस बाजार में नया नाम फ्लिपकार्ट का है, जिसने एमेजॉन के आगे हार नहीं मानने का संकल्प लेते हुए इस साल अपने ओटीटी प्लेटफॉर्म को शुरू करने की घोषणा की, और दर्शकों को बताया कि वो डिज्नी और बालाजी से लाइसेंस्ड कंटेंट की स्ट्रीमिंग करेगा.

अपने ई-कॉमर्स ऐप में एक अलग वीडियो टैब लॉन्च करने के बाद, फ्लिपकार्ट ने एमेजॉन (जिसका एक अलग प्राइम वीडियो ऐप है) की तुलना में एक अलग अप्रोच अपनाई है. इससे ये फायदा हो सकता है कि अभी एकदम नया होने की वजह से यूजर्स को ऐप में ही इसे खोजने में आसानी होगी. मुझे उम्मीद है कि फ्लिपकार्ट 2020 में ओटीटी के लिए एक अलग ऐप लॉन्च करेगा, विशेष रूप से स्मार्ट टीवी और फेसबुक वॉच जैसे डिवाइसेज इकोसिस्टम के लिए. 

इससे निश्चित रूप से दोनों ब्रांड के बीच इस स्पेस के भीतर अधिक बाजार शेयर पाने के लिए मुकाबला बढ़ेगा. फ्लिपकार्ट का कंटेंट प्लेटफॉर्म फ्री होने से निश्चित तौर पर इससे बड़ी संख्या में दर्शक जुड़ेंगे. हालांकि, आखिर में शो की क्वालिटी पर ही ये निर्भर करेगा कि दर्शक प्राइम वीडियो के लिए भुगतान करना पसंद करता है या फ्लिपकार्ट पर 300 कॉइन जुटाकर लॉयल्टी प्रोग्राम में एंट्री कर उसके शो देखना पसंद करता है. अब तक, हाल ही में लॉन्च की गई पॉडकास्ट ऐप ऑडिबल सुनो के जरिये हिंदी और अंग्रेजी में ऑरिजिनल कंटेंट परोस कर एमेजॉन निश्चित रूप से दो अलग-अलग कंटेंट प्लेटफॉर्म अपने पास रखने के मामले में सबसे आगे है.

रेवेन्यू की रेस में फ्लिपकार्ट आगे 
यूं तो 2019 में दोनों ब्रांड का सफर एक जैसा रहा था, लेकिन उस साल फ्लिपकार्ट ने एमेजॉन की तुलना में अधिक रेवेन्यू हासिल किया. हालांकि, दूसरी तरफ, एमेजॉन को 82% की ग्रोथ रेट का फायदा मिला जबकि फ्लिपकार्ट ने इस दौरान केवल 47% की ग्रोथ देखी. फ्लिपकार्ट ने बजट फोन सेगमेंट के लिहाज से भी स्मार्टफोन बाजार में अपना वर्चस्व कायम किया है, जबकि एमेजॉन ने प्रीमियम स्मार्टफोन के मामले में आगे रहा है.

अड़चनें
इन सब घटनाक्रमों के बावजूद, 2019 ई-कॉमर्स इंडस्ट्री के लिए एक अच्छा साल नहीं था. ट्रेड मिनिस्ट्री ने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के कारोबार को नियंत्रित करने के लिए नए नियम कायदे बनाए. इस कारण उस साल काफी मुश्किलों भरी शुरुआत रही थी. ई-टेलर्स को अपने ही ब्रांड के ऑफर किए गए उत्पादों को बेचने से रोकना जैसे विशेष नियमों ने एमेजॉन को अपने ऑनलाइन कैटलॉग को बदलने के लिए मजबूर कर दिया. क्लाउडटेल उसका सबसे बड़ा वेंडर है, जो उसका अपना है. एक ही वेंडर से 25% से ज्यादा सामान खरीदना, भारी छूट देना और वेंडर्स या ब्रांड्स दोनों के साथ एकाधिकार जमाने से रोकने के लिए बनाए गए नियमों की वजह से, एमेजॉन और फ्लिपकार्ट दोनों को अपने बिजनेस मॉडल को फिर से डिजाइन करना पड़ा, साथ ही और स्थिर नीतियों के लिए मांगें भी उठाईं.

ई-कॉमर्स इंडस्ट्री के लिए 2020 के मायने
भारत सरकार ने सीमा पार डेटा फ्लो को रोकने, टैक्स को नियंत्रित करने, डिजिटल इकॉनमी की ग्रोथ को बढ़ावा और उत्पादों की जालसाजी पर रोक लगाने के लिए एक नया फ्रेमवर्क तैयार किया है. इस साल दोनों ब्रांड्स को काफी लचीला होना पड़ेगा. हालांकि, उन्होंने पहले से अपने ऑपरेशंस और सेट-अप में अहम बदलाव करने पड़े थे, पर अब फिर से उन्हें इसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है. हाइपर-लोकल डिलीवरी, ओटीटी प्लेटफॉर्म, ई-वॉलेट जैसे और भी कई सेक्टर में फैलने के लिए उन्हें डेटा प्राइवेसी पॉलिसी का पालन करना होगा, तभी वो दुनिया के सबसे बड़े ई-कॉमर्स मार्केट में से एक भारत में एक दूसरे को टक्कर दे सकेंगे.

हालांकि 2020 में इन बदलावों के रूप में कुछ उथल-पुथल देखने को मिल सकती है, लेकिन ये पूरा दशक ई-कॉमर्स सेक्टर के लिए पूरी तरह से सकारात्मक खबरें लेकर आएगा, क्योंकि अभी उन बाजारों में जाना है, जो अभी तक इस्तेमाल नहीं हुए हैं. इसमें सबसे बड़ी चुनौती रिलायंस के ई-कॉमर्स वेंटर से मिल सकता है, क्योंकि कंपनी निश्चित रूप से अपनी देर से एंट्री की भरपाई करने के लिए भारी भरकम फंड लगाएगी ताकि वो तेजी से इस मार्केट का बड़ा हिस्सा हासिल कर सके.

(लेखक रोहित चड्ढा Zee में CEO-डिजिटल पब्लिशिंग हैं)

(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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