बीते दिनों ऑनलाइन माध्यम से मेरी मुलाकात वृंदावन के एक ऐसे दंपत्ति से हुई जो इंटर पास अपने इकलौते मेधावी बच्चे की आगे की पढ़ाई को लेकर परेशान था. मैंने पति-पत्नी को सुना और इस नतीजे पर पहुंचा कि उच्च शिक्षित यह दंपत्ति एक अनजाने भय से परेशान है.
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बीते दिनों ऑनलाइन माध्यम से मेरी मुलाकात वृंदावन के एक ऐसे दंपत्ति से हुई जो इंटर पास अपने इकलौते मेधावी बच्चे की आगे की पढ़ाई को लेकर परेशान था. मैंने पति-पत्नी को सुना और इस नतीजे पर पहुंचा कि उच्च शिक्षित यह दंपत्ति एक अनजाने भय से परेशान है. उन्हें डर है कि मेरा बेटा विदेश पढ़ने जाए और फिर वहीं का होकर न रह जाए.
मां-बाप बच्चे के दूर जाने की आशंका से डरे
उच्च शिक्षित इस परिवार के बच्चे का उद्देश्य स्पष्ट है. उसके मन में कोई भ्रम नहीं. उस बच्चे ने अपनी सारी तैयारी उसी हिसाब से कर रखी है. उसे विदेश जाना है. कॉलेज उसने तय कर रखा है. विदेश के दो विश्वविद्यालय उसे अपने यहां प्रवेश देने को तैयार भी हैं लेकिन घर पर सहमति नहीं बन पा रही है. बच्चा परेशान है और घर के सभी सदस्य भी. दोनों ही पक्षों की परेशानी के कारण अलग-अलग हैं. उसके मम्मी-पापा और बाकी घर के सदस्य चाहते हैं कि बेटा देश में कहीं रहकर पढ़ाई करे. ऐसा होने पर इस बात की संभावना ज्यादा बनेगी कि बच्चा अपने पास ही रहेगा. बाहरी दुनिया से उसका संपर्क उस तरह नहीं बनेगा, जैसे बाहर पढ़ाई करने से.
बच्चा अपने करियर को लेकर परेशान
बच्चा अपने करियर को लेकर परेशान है. उसका अपना स्वार्थ है और मम्मी-पापा का अपना. दोनों ही अपना और परिवार का हित चाहते हैं. लेकिन सोचने का तरीका अलग-अलग है. घर के सदस्यों को लगता है कि देश में पढ़ाई करने के अवसर बहुत अच्छे हैं और बच्चे को लगता है कि उसने इतनी मेहनत करके दो-दो विदेशी विश्वविद्यालयों में प्रवेश की अहर्ता पूरी कर ली है, ऐसे में उसे वही चाहिए, जो वह चाहता है.
शुरुआत से हॉस्टल में पढ़ा है बच्चा
यह नौजवान क्लास थर्ड से ही हॉस्टल में है. परीक्षाएं समाप्त होने के बाद ही लौटा है. मतलब नौ वर्ष से वह घर से दूर है. वह किसी भी तरह से होम सिकनेस का शिकार नहीं है. उसे तो केवल और केवल अपना करियर दिख रहा है. अभी तो उसके मन में यह बात भी नहीं है, जो घर के काफी सदस्यों के मन में चल रही है. संभव है कि यह नौजवान पढ़ाई करके वापस आए और यह भी हो सकता है कि अच्छा अवसर मिलने पर वहीं रह जाए.
बच्चे का करियर बनाने की सोचें पैरंट्स
वह विदेश में बस जाएगा, इस आशंका मात्र से क्या यह उचित है कि उसे अभी विदेश भेजने से बचना चाहिए. मेरा जवाब होगा कि अगर आर्थिक संकट नहीं है तो उसे हर हाल में भेजना चाहिए. अगर यह बच्चा अपनी उचित मंशा के अनुरूप नहीं जा पाएगा तो उसके मन में गांठ बनेगी. घर की बातें भी उसे देर-सबेर पता चल ही जाएंगी. फिर वह मम्मी-पापा समेत परिवार के सभी सदस्यों को अलग नजर से देखना शुरू कर देगा. फिर बहुत कुछ ऐसा होगा, जो घरवालों को भी पसंद नहीं आएगा.
आर्थिक स्थिति सही है तो विदेश भेजने से न हिचकें
इस पूरे मामले को देखें तो लगता है कि दोनों पक्ष सही हैं लेकिन मेरी नजर में नौजवान सही है. अगर घर की वित्तीय स्थिति ठीक है. जैसा कि मैं पूर्व में लिख चुका हूं तो उसे विदेश जाना चाहिए. अगर वित्ती स्थिति ठीक नहीं है तो निश्चित उसे देश में ही पढ़ाई करनी चाहिए. कारण, इस नौजवान ने विज्ञान से मैट्रिक किया है. विदेश जाने की कोशिशों की वजह से ही अपने देश के इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश की कोई कोशिश नहीं की. देश में उसकी पढ़ाई के लिए उसे अलग कोर्स में दाखिला दिलाए जाने की बात हो रही है. विदेश में उसका प्रवेश इंजीनियरिंग में ही हो रहा है. अब देखना होगा कि इस मामले में सहमति कहां बनती है लेकिन मैं इस नौजवान के साथ हूं.
स्वार्थी न बनें, बच्चे की सुने
प्रवेश का सीजन चल रहा है. इस तरह का भ्रम किसी भी अभिभावक के सामने हो सकता है. ऐसे में मैं सिर्फ यही कहूंगा कि बच्चे के मन की सुनें. किसी भी तरह का भय आपको कमजोर बनाएगा. ध्यान रहे, आपने बहुत कम उम्र में उसे हॉस्टल भेज दिया था, तब जब उसे आपकी ज्यादा जरूरत थी और आज वह जाने पर आमादा है तो आप भयभीत हैं. यह ठीक नहीं. न आपके लिए और न ही बच्चे के लिए. उड़ने दीजिए उसे और यकीन मानिए लौटकर घर ही आएगा. बच्चे पर शक करने का मतलब है, खुद पर शक करना. हमें ऐसा किसी सूरत में नहीं करना है.
(लेखक सीनियर जर्नलिस्ट, काउंसलर और लाइफ कोच हैं.)
(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं.)
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