अगर कहीं खट्टर सरकार ने वाड्रा-हुड्डा केस को भ्रष्टाचार का मुहावरा बनाकर जन समर्थन अपनी तरफ खींच लिया और सैनी ने कांग्रेस के गैर जाट वोट में सेंध लगा दी तो खट्टर की डगमगाती नैया पार लग सकती है.
Trending Photos
हरियाणा में विधानसभा चुनाव वैसे तो लोकसभा चुनाव के बाद होना है, लेकिन यहां की सियासत में जिस तरह का उबाल आ रहा है, उससे लगता है कि यहां कुछ बड़ी सियासी खिचड़ी पक रही है. एक खबर तो यह है कि बीजेपी के सांसद राजकुमार सैनी ने बीजेपी सांसद रहते हुए ही अपनी अलग पार्टी ‘लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी’ की स्थापना कर ली. यह काम उन्होंने पानीपत में बाकायदा रैली कर किया. लेकिन न तो उन्होंने पार्टी छोड़ने की जेहमत उठायी और न ही पार्टी उन्हें हटाने को उत्सुक नजर आ रही है. दूसरी तरफ बीजेपी की मनोहरलाल खट्टर सरकार ने रॉबर्ट वाड्रा और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले की फाइल फिर खोल दी. तीसरी चीज यह हो रही है कि राहुल गांधी के करीबी कांग्रेस नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला लगातार हरियाणा में बड़ी रैलियां कर रहे हैं. इस तरह वह हरियाणा कांग्रेस की जाट राजनीति में खुद को हुड्डा के विकल्प के तौर पर पेश कर रहे हैं.
चौथी चीज यह है कि हरियाणा की जाट राजनीति के शिखर पुरुष चौधरी देवीलाल के जेल में बंद पुत्र ओम प्रकाश चौटाला और पौत्र अजय सिंह चौटाला को लेकर कुछ अलग सोचा जा रहा है. पिछले कुछ महीनों से अजय चौटाला को पहले की तुलना में आसानी से पेरोल मिलने लगी है. इस महीने चौधरी देवीलाल की जयंती भी आ रही है और उस दिन इंडियन नेशनल लोकदल (आइएनएलडी) बड़ी रैली की योजना बना रहा है. यानी विधानसभा चुनाव से कहीं पहले से यहां की राजनीति को बड़ी तेजी से मथा जा रहा है. दरअसल, इस बार हरियाणा की राजनीति जिस तरफ जा रही है, उसमें अगला विधानसभा चुनाव जाट बनाम गैर जाट के मुद्दे पर होने की पूरी संभावना है.
यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि हरियाणा की राजनीति में शुरू से ही जाटों का दबदबा है और ज्यादातर मुख्यमंत्री इसी जाति से बने हैं लेकिन बीजेपी ने जब पिछला विधानसभा चुनाव जीता तो उसका खेवनहार गैर जाट वोट ही था. पार्टी पिछले चार साल में अपनी इस गैर जाट राजनीति को मजबूत करती रही है. मनोहरलाल खट्टर इस राजनीति का चेहरा बनकर उभरे हैं. दूसरी तरफ सैनी ने खुद को मुखर जाट विरोधी नेता के तौर पर स्थापति किया है. खासकर जाट आंदोलन के दौरान उन्होंने पार्टी के रुख के खिलाफ जाकर जाटों से अदावत बढ़ाई थी.
अब हरियाणा में सियासत वहां पहुंच गई है, जहां भाजपा चाहती है कि जाट वोट एकजुट होने के बजाय बिखर जाएं. उधर, कांग्रेस की कोशिश है कि गैर जाट वोट एकजुट न हों, क्योंकि उसे जाट और नॉन जाट दोनों के वोट मिल सकते हैं. पार्टी के पास जाट और गैर जाट दोनों तरह के कद्दावर नेता हैं और वह किसी को भी मुख्यमंत्री बना सकती है. जबकि चौटाला परिवार की राजनीति जाट एकजुटता पर टिकी है. ऐसे में बीजेपी की मंशा है कि कांग्रेस की तरफ से हुड्डा और इनेलो की तरफ से चौटाला इतने मजबूत हो जाएं कि दोनों के बीच जाट वोट बंटे. शायद इसीलिए चौटाला का पेरोल ज्यादा आसान हो गया है.
उधर कांग्रेस गैर जाट वोट बिखराव की बाट जोह रही है. ऐसे में सैनी का गैर जाट पार्टी बनाना कांग्रेस की रणनीति के अनुकूल लगता है. हालांकि अभी यह किसी को नहीं पता कि अंतत: सैनी अकेले चुनाव लड़ेंगे या अंत में बीजेपी के पक्ष में बैठ जाएंगे. यह भी कोई नहीं जानता की कहीं वे कांग्रेस के ही गैर जाट वोट में सेंध लगा दें और भाजपा को फायदा पहुंचाएं. सारी स्थिति बहुत जटिल है. लेकिन अगर कहीं खट्टर सरकार ने वाड्रा-हुड्डा केस को भ्रष्टाचार का मुहावरा बनाकर जन समर्थन अपनी तरफ खींच लिया और सैनी ने कांग्रेस के गैर जाट वोट में सेंध लगा दी तो खट्टर की डगमगाती नैया पार लग सकती है.
हरियाणा की चुनावी राजनीति को ऊपर से फिलहाल यहीं तक बूझा जा सकता है. आगे बूझने के लिए पार्टियों के भीतर चल रही गुटों की राजनीति की पर्तें उघाड़नी होंगी, जो फिलहाल इतनी साफ नहीं है. लेकिन सभी दल जान रहे हैं कि अगर कहीं चुनाव तय समय से पहले लोकसभा चुनाव के साथ हो गए तो उनके पास तैयारी का ज्यादा वक्त नहीं होगा. इसीलिए हरियाणा की राजनीति में अभी से इतनी जटिलता और उठापटक शुरू हो गई है.
(लेखक पीयूष बबेले जी न्यूज डिजिटल में ओपिनियन एडिटर हैं)
(डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)