‘पॉलिटिकल फंडिंग है नोएडा में भ्रष्टाचार की वजह’
राज्यसभा के पूर्व महासचिव योगेंद्र नारायण सियासी मामलों में अच्छी पकड़े रखते हैं। राज्य और देश में कई अहम पदों पर उन्होंने अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह किया है। उन्होंने देश के मौजूदा हालात, गुड गर्वनेंस सहित कई मुद्दे पर बेबाकी से अपनी राय ज़ी मीडिया के साथ रखी। इस बार सियासत की बात में राज्यसभा के पूर्व महासचिव योगेंद्र नारायण से ज़ी मीडिया के एडिटर (न्यूज़ ऑपरेशंस) वासिंद्र मिश्र ने लंबी बात की। पेश है बातचीत के कुछ महत्वपूर्ण अंश--
नमस्कार आज के खास कार्यक्रम में आपका स्वागत है। आज हमारे खास मेहमान हैं योगेंद्र नारायण जी। योगेंद्र नारायण जी राज्यसभा के सेकेट्रेरी जनरल रहे है। यूपी के मुख्य सचिव रहे है। देश के कैबिनेट सचिव रहे है, इसके अलावा देश के कई शैक्षिक संस्थाओं से भी जुडे रहे है। आज हम जानने की कोशिश करेंगे कि इस समय जो मौजूदा हालात है, गवर्नेंस को लेकर बड़ी-बड़ी बातें हो रही है। भ्रष्टाचार से कैसे निजात पाया जाए, किस तरीके से गुड गवर्नेंस को ग्राउंड लेवल पर लाया जाए।
वासिंद्र मिश्र: योगेंद्र जी सबसे पहले हम ये जानना चाहते हैं। गुड गवर्नेंस की बात हो रही है। 25 दिसंबर को अटल जी का जन्म दिन था इसको सरकार ने गवर्नेंस डे के रुप में मनाया है। आपकी नजर में महज नारा दे देने से, या बड़े-बड़े होर्डिंग लगा देने से या कुछ घोषणाएं कर देने से गुड गवर्नेंस ग्राउंड लेवल पर ले जाया जा सकता है ।
योगेंद्र नारायण: जी नहीं, मूल बात ये है कि हमारा राष्ट्र एक प्रजातांत्रिक राष्ट्र हैऔर हर 5 साल बाद बैलेट के जरिए सरकार का चुनाव होता है। उससे एक जिम्मेदारी प्रशासकों की रहती है वो जनता के लिए जवाबदेह होते है और इससे हम गुड गवर्नेंस की ओर बढ़ते है । अब हुआ क्या है कि पहले आप गवर्नेंस को ले तो इसके रुप बदलते रहे है। एक समय गवर्नेंस का मतलब ये होता था कि कानून व्यवस्था को आप ठीक रखे। अगर कही चोरी हो रही है तो क्रिमिनल को पकड़ ले, ये इफेक्टिव लॉ एंड ऑर्डर है, उसके बाद 1989 में वर्ल्ड बैंक ने सबसे पहले गुड गवर्नेंस की शुरूआत की, क्योंकि जो अफ्रीका के देश थे उनकी समीक्षा करते हुए कहा कि यहां गुड गवर्नेंस नहीं होती, तो पहली बार वहां से गुड गवर्नेंस शब्द आया । इसके बाद अब आ रहा है, ई-गवर्नेंस यानि टेक्नोलॉजी के साथ गवर्नेंस, इसका नया रूप आ जाएगा। गुड गवर्नेंस का, जहां की आम लोगों को बार-बार सरकारी कार्यालय में नहीं जाना होगाऔर ऑनलाइन सर्विस से सभी सेवाएं मिल जाएंगी । और अंत में ये होता है कि गर्वमेंट की सहभागिता हो जाती है आम जनता के साथ, जब आपकी सिविल सोसाइटी है, आम लोगों की सहभागिता रहे गुड गवर्नेंस में और एक उत्तर दायित्व प्रशासकों की सिविल सोसाइटी की ओर हो जाए तो ये है सबसे बेहतर गुड गवर्नेंस।
वासिंद्र मिश्र: हम पिछले तीन दशक की बात करें, जैसे आपने बोला कि 1989 के बाद उसकी नया नाम सामने आया, अगर हम तीन दशक में देखें जिस तरीके से सरकारें रही है । सरकारों के नीयत, इच्छाशक्ति औऱ प्राथमिकताएं बदलती रही है इस तरह से ब्यूरोक्रेसी रही है उसमें भी बदलाव देखने को मिला है और माना जाता है जो पॉलिटिकल ब्यूरोक्रेसी है । उसमें अच्छे लोग है, जो अपने पॉलिटिकल मास्टर को ठीक तरीके से सलाह देते है तो उस तरीके से डिलीवरी होती है और उस तरीके का एक्शन देखने को मिलता है । पिछले एक दशक से ये परंपरा ही खत्म हो गई है जो लॉ एंड ऑर्डर को लेकर, डेवलपमेंट को लेकर जो मीटिंग हुआ करती थी आप लोगों के जमाने में आप लोग किया करते थे जब डीएम थे तो आप शरीक हुआ करते थे, जब आप चीफ सेकेट्ररी थे खुद होल्ड किया करते थे , साल में एक-दो बार वो परंपरा अब खत्म हो गई । चाहे आप गवर्नेंस कहिए। गुड गवर्नेंस कहिए या ई-गवर्नेंस कहिए, जब तक नीयत ठीक नहीं रखेंगे, तब तक कुछ ठीक नहीं होगा। तो आप को नहीं लगता है कि उसमें गिरावट आई है और उसको ठीक करने की ज्यादा जरुरत है ।
योगेंद्र नारायण: देखिए एक चीज मैं आपको बताना चाहूंगा कि पिछले 45 साल मैं ही रहा प्रशासन में और शासन में, हर सरकार चाहती है गुड गवर्नेंस लाया जाया और हर सरकार को कुछ हद तक सफलता मिलती है और कुछ हद तक विफल रहती है । अब हम लोगों को याद है कि हमारे जमाने में इंदिरा गांधी ने 20 प्वाइंट प्रोग्राम चला था ।, जिनको घर नहीं है उनको घर मिले, जिनके पास पानी की सप्लाई नहीं है उनको पीने का पानी दिया जाए तो हर एक शासन में ये एक प्रयास तो रहता है, परन्तु अभी जो सरकार बनी है छह महीने पहले उसने एक महत्वपूर्ण बिंदु को सबसे ऊपर चढ़ा दिया वो है विकास, और विकास के साथ उन्होंने कहा कि हम गुड गवर्नेंस देंगे । तो गुड गवर्नेंस पर एक नया दौर चला गया, उसके मायने सिर्फ इतना होता है कि उसको प्रभावी तरीके से लागू किया जाए तो अब देखिए गवर्वेंस के भी कई पहलू हो गए है । पहले जैसे मैने बताया लॉ एंड ऑर्डर का था, ज्यूडिशियल गवर्नेंस की बात थी अब हो गया है इकॉनॉमिक गवर्नेंस, अब हो गया है सोशल गवर्नेंस तो अब तरह-तरह के गुड गवर्नेंस के रूप हो गए है । तो गुड गवर्नेंस हम कहते है कि जब सभी पहलूओं को हम उस ओर ले जाए जिसमे आम नागरिक ये महसूस करे कि अपने ही देश में सभी सुविधाएं मिल रही है । हम सुख पूर्वक रह रहे है । एक तरीक से रामराज्य है ।
वासिंद्र मिश्र: अभी आपकी बातचीत में ये टर्म आया कि गवर्नेंस और डेमोक्रेसी और अच्छा प्रजातंत्र वही है जिसमें सभी की भागीदारी हो, आप राज्यसभा के सेक्रेट्ररी जनरल रहे । राज्यसभा डेमोक्रेसी का महत्वपूर्ण अंग है और देश के महत्वपूर्ण कानून, बगैर राज्यसभा में ले गए ऑर्डिनेंस के जरिए बनाए जाएंगे या पुराने कानूनों को ऑर्डिनेंस के जरिए बदला जाएगा । तो राज्यसभा का और जो स्वच्छ प्रजातंत्र की बात हम करते है वो कितना प्रासंगिक रह जाएगा।
योगेंद्र नारायण: देखिए संविधान में ये लिखा है GOVERNMENT SHALL BE ACCOUNTABLE TO THE HOUSE OF PEOPLE, यानि लोकसभा के लिए उत्तरदायित्व है, लोकसभा में जिस पार्टी को मेजॉरिटी मिलती है वही सरकार बनाती है राज्यसभा एक संतुलन की फोर्स थी, लोकसभा में कभी-कभी जल्द कानून पास कर दें, तो राज्यसभा में शांत मन से समीक्षा करके अपनी राय देगा । ऑर्डिनेंस का रूट गलत नहीं है वो भी संविधान में है कोई असंवैधानिक चीज नहीं हो रही है, केवल ये हो रहा है कि लोकसभा में पास हो गया है उसके लिए शासन उत्तरदायित्व है उसका जो कैबिनेट है उत्तरदायित्व है लोअर हाउस को, पर राज्यसभा में भी कानून पास करना है वो भी संविधान में लिखा है- नॉन मनी बिल जिसमे पैसे की बात नहीं आती । फिर उन्होंने ये कहा है अगर राज्यसभा किसी कारणवश या किसी हाउस में मतभेद होता, एक हाउस पास कर देता है और दूसरा हाउस खारिज करता है या पास ही नहीं होने देता तो ज्वाइंट सेशन ऑफ पॉर्लियामेंट हो सकता है। और मेरी राय में सरकार की ये नीति हो रही है क्योंकि राज्यसभा में टकराव की स्थिति पैदा हो गई है कि हम हर चीज का विरोध करेंगे तो वो ऑर्डिनेंस का रुट लेकर वो ज्वाइंट सेशन पर पॉलियमेंट करेंके 5-6 बिल जिसमे मतभेद है राज्यसभा और लोकसभा में उसमें पास करा देंगे, जब वो पास हो जाएगा वो संवैधानिक होगा कोई भी चीज असंवैधानिक नहीं हो रही है लेकिन आप ठीक कह रहे है कि प्रजातंत्र में ये बेहतर होता कि बिल पर चर्चा हो और पास हो और लोकसभा में जो कि HOUSE OF PEOPLE है जिसपर शासक का एक उत्तरादायित्व है एक ओर उसे तो पास कर दिया पर राज्यसभा में चर्चा ही नहीं होती, ये अच्छा होता कि राज्यसभा में चर्चा करके रिजेक्ट कर देते वो बेहतर है लेकिन ये नजरिया कि हम बिल पर चर्चा ही नहीं करेंगे, वो प्रजातांत्रिक व्यवस्था नहीं है ।
वासिंद्र मिश्र: हम लोग बात कर रहे डेवलपमेंट अथॉरिटी के बारे में इस समय नोएडा, ग्रेटर नोएडा आजकल ज्यादा चर्चा में है चर्चा का कारण अच्छाई कम बुराई ज्यादा है। एक अधिकारी जिसने पूरे सिस्टम को पिछले 10-15 साल तक हाईजैक किया हुआ था उसके खिलाफ अभी भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है आपको क्या लगता है इसके पीछे कारण क्या है ? सब कुछ जानते हुए, सब कुछ क्रिस्टल क्लियर है एक्शन क्यों नहीं हो रहा है ।
योगेंद्र नारायण: मैं आपको बताना चाहूंगा कि डेवलपमेंट अथॉरिटी क्यों बनाई गई थी। डेवलपमेंट इस लिए बनाई गई थी कि एक क्षेत्र को लेकर जहां हमें संभावना लगती है जहां विकास तीव्र गति से हो सकता है या औद्योगीकरण तेजी से हो सकता है वहां पर हमने डेवलपमेंट अथॉरिटी बना दी । यूपी में काफी अथॉरिटी है नोएडा, ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेस जो की काफी चर्चा में है जिसने काफी अच्छा काम किया है मुझे याद है जब नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री थे तब इस क्षेत्र में ये भावना बनी थी कि दिल्ली के पास अगर हम एक इंडस्ट्रियल एरिया डेवलप करे तो बहुत सी उद्योग जिसे दिल्ली में जगह नहीं मिली है उन्हें हम यहां पर स्थापित कर सकते है । और हुआ भी ऐसा ही।आप के बहुत से उद्योग दिल्ली से यहां आ गए और यूपी में इसका फायदा हुआ । टैक्स कलेक्शन में फायदा हुआ और रोजगार में इसका फायदा हुआ और जैसे-जैसे इंडस्ट्री आएंगी, रोजगार बढ़ा है और इसमें रोजगार सृजन होगा और साथ ही साथ एजुकेशन स्किल भी बढ़ेंगे । और इस उद्देश्य से ही अथॉरिटी बनाई गई थी । हुआ ये कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा में जो जमीन किसानों से ली उसे रियल स्टेट को बेच दिया मेरा मानना ये है कि ये इंडस्ट्रियल अथॉरिटी थी तो ज्यादातर इंडस्ट्री आनी चाहिए थी । और अगर इंडस्ट्री आ जाती, जितनी हम उम्मीद कर रहे थे तो जो अभी जितना घोटाला चल रहा है, घपला चल रहा है वो नहीं होता क्योंकि रियल स्टेट में बहुत ब्लैक मनी है और इसका दूसरा कारण ये हुआ कि पिछले दशक से पॉलिटकल फंडिंग का स्तोत्र बन गया । कॉन्ट्रेक्ट दीजिए और एलॉटमेंट भी ले लीजिए । कॉन्ट्रेक्ट में एक फिक्स परसेंटेज जाना होता है और एलॉटमेंट में पर स्केवयर फिट के हिसाब से पैसा देना होता था और ये रियल स्टेट वाले ही दे सकते है इंडस्ट्री वाले नहीं दे सकते है लेकिन हुआ ये कि अब ये पॉलिटिकल फंडिंग का सोर्स बन गया है । सब काम पैसे देकर होने लगे । आप देखिए हर एक सरकारी मशीनरी में भ्रष्टाचार होता है ये मैं मान के चलूंगा । जहां पॉवर होगी वहां करप्शन होगा परन्तु पॉलिटिशियन भी जो कि प्रशासन का संचालन कर रहे है और नीतिय़ां बना रहे है लेकिन वो भी इसको एक स्त्रोत बना लेंगे पॉलिटिकल फंडिंग का वो बड़ा घातक है । और जब तक ये रुकेगा नहीं, तब तक हालात नहीं बदलेंगे। इसलिए मैं बहुत दिनों से प्रयास कर रहा हूं और राय भी दे रहा हूं कि हर जिले में एक जिला लोकपाल होना चाहिए और एक डिस्ट्रिक जज को लोकपाल बना दीजिए जो जितनी भी करप्शन की शिकायत हो निपटाए। ये आइडिया ठीक है कि राष्ट्रीय स्तर पर लोकपाल बनेगा और हर स्टेट में भी लोकपाल बनेगा । परन्तु इससे काम नहीं चलेगा, क्योंकि आम जनता शहरों, बस्तियों में रहती है तो हर शिकायत के लिए दिल्ली आना बहुत मुश्किल होगा, मेरा मानना कि हर जिले में लोकपाल होना चाहिए उसके पास जांच के लिए मशीनरी होनी चाहिए और इससे काफी हद तक भ्रष्टाचार पर अकुंश लग सकेगा ।
वासिंद्र मिश्र: अभी जो एक नया विवाद शुरू हुआ है चाहे लोकपाल हो, लोकायुक्त हो, जैसा आप सुझाव दे रहे कि हर जिले में लोकपाल नियुक्त किया जाए, यूपी में लोकायुक्त नाम की एक संस्था है जो काम कर रही है, लोकायुक्त पर भी एक गंभीर आरोप लग रहे है पिछले कुछ सालों से कि उनका एक्शन कुछ सलेक्टिव लोगों पर रहता है जहां उनका मन करता है उस तरह का फैसला होता है ज्यादातर उनके फैसले मेरिट के बजाए निजी पसंद और नापसंद पर होते हैं या अलग-अलग प्रभाव में आ जाते है तो क्या गारंटी है कि कोई जिला स्तर का लोकपाल होगा तो क्या वो इस तरह के लोगों से सिस्टम को मुक्त करा पाएगा ।
योगेंद्र नारायण: देखिए जो लोकयुक्त यूपी में है और जिस तरह की संभवानाएं व्यक्त की जा रही हैं। हर जिले में वो ज्यूडिशियल बैकग्राउंड का होना चाहिए, हमारे यूपी के लोकायुक्त है वो भी ज्यूडिशियल बैकग्राउंड के है। हाईकोर्ट के जज रह चुके है हम लोग विश्वास रखते है कि जो उन्होंने जो निर्णय लिए है और जो संस्तुतियां की है चाहे मंत्री हो या सीनियर ऑफिसर हो उनके खिलाफ पूरा अध्ययन करके संस्तुतियां दी है और बहुत से मंत्रियों को मुख्यमंत्री के द्वारा बर्खास्त किया गए जिनके खिलाफ शिकायत की गई थी । पर लोगों की ये भावना हो सकती है कि ये किसी के खिलाफ पक्ष लेकर काम कर रहे हैं। ये हर जज के लिए भी कहा जाता है लेकिन कही ना कही हमें विश्वास रखना पड़ेगा । कर्नाटक के लोकायुक्त का भी आपने 4-5 साल पहले पढ़ा होगा । उन्होंने बहुत अच्छा काम किया तो अगर कोई काम करना चाहता है तो लोकायुक्त कर सकता है और कर रहा है और मैं यूपी का उदाहरण देना चाहूंगा कि हमारे जो लोकायुक्त रहे है वो काफी एक्टिव रहे हैं और उसी के अनुरूप हम हर जिले में स्वतंत्र रूप से जिला लोकायुक्त बना दे तो ये काफी हद तक सिस्टम को साफ कर सकता है
वासिंद्र मिश्र:हम लोग डेवलपमेंट अथॉरिटी पर एक बार फिर से वापस आते है नोएडा से शुरू करते है आपको नहीं लगता है कि अथॉरिटीज़ में बदलाव हो तो इसके पूरे ढांचे को चेंज करना चाहिए ब्यूरोक्रेटिक स्ट्रक्चर को।
योगेंद्र नारायण: जहां ब्यूरोक्रेटिक स्ट्रक्चर नहीं है वहां भी उतनी ही शिकायतें है आप गुड़गांव में देख लीजिए और किसी डेवलपमेंट अथॉरिटी में देख सकते है और अबतक लोग संतुष्ट है कि कुछ ना कुछ तो कार्रवाई हो रही है और ऑफिसर्स स्वतंत्र काम कर रहे है और MP, MLA वो भी सुझाव देते रहते है और ब्यूरोक्रेटिक अथॉरिटी में जो व्यवस्था है वो सुचारू रुप से चल सकती है हमने पिछले साल नोएडा में नोएडा-ग्रेटर नोएडा यमुना अथॉरिटी एक्सप्रेसवे का एक सेमिनार किया था जिसमें मुख्य सचिव के साथ बड़े-बड़े अधिकारी भी आए थे उसमें हमने ये संस्तुति की थी यहां पर एक एडवाइजरी कमेटी बना दीजिए । जिसमें सीनियर सिटीजन, या प्रशासन में रह चुके या उद्योगों में रह लोग शामिल किए जाए जो अथॉरिटी में लोगों को एडवाइज़ करे और आप इसमें अलग अलग एडवाइजरी बॉडी ले लीजिए । इनफ्रास्ट्चर ,इंडस्ट्रलाइजेशन , ट्रांसपोर्ट की अलग-अलग एडवाइजरी बना लीजिए, सहभागिता आप जितनी ले लेंगे और पब्लिक से जितनी आप लेंगे उतनी ही अच्छी आप की गुड गवर्नेंस होगी ।
वासिंद्र मिश्र: ये जो मौजूदा घोटाला सामने आया है आप ये मानते है कि इसकी तह तक जाने के लिए सीबीआई जांच जरूरी है
योगेंद्र नारायण: मैं शुरू से ये कहा रहा हूं कि इस मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए। वही स्वतंत्र रूप से इसकी जांच कर सकती है ।
धन्यवाद