खेलों में जीत का सिलसिला यूं ही बना रहे इसलिए कुछ सवालों के जवाब जल्द खोजे जाएं
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खेलों में जीत का सिलसिला यूं ही बना रहे इसलिए कुछ सवालों के जवाब जल्द खोजे जाएं

अगर हम इतिहास पर नजर डालें तो भारत के मोहन घोष ने 1966 में किंग्सटन जमैका में हुए आठवें कॉमनवेल्थ गेम्स में वेटलिफ्टिंग में रजत पदक जीता. वेटलिफ्टिंग में भारत का पहला पदक था.

खेलों में जीत का सिलसिला यूं ही बना रहे इसलिए कुछ सवालों के जवाब जल्द खोजे जाएं

21वें कॉमनवेल्थ गेम्स की शुरूआत गोल्ड कोस्ट (ऑस्ट्रेलिया) में हो चुकी है. 218 खिलाडियों का भारतीय दल 17 खेलों में भाग लेने गया है. 90 के दशक के बाद से भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन इन खेलों में लगातार सुधरा है. जो यह दिखाता है कि विश्व खेल मंच पर हमारे खिलाड़ी अब केवल स्पर्धाओं में भाग लेने नहीं जाते बल्कि मेडल मंच तक पहुंचकर तिरंगे की शान सारे विश्व में बढ़ा रहे हैं. जिस तरह की शुरुआत इन खेलों में भारतीय खिलाड़ियों ने की है, उसे देखते हुए 2018 के इन राष्ट्रमंडल खेलों में खिलाड़ियों का प्रदर्शन क्या रहता है, इसके प्रति भी देशवासियों में अब जिज्ञासा बनी हुई है.

एक समय वह भी था, जब देशवासी किसी भी बड़े खेल आयोजन में मेडल टैली की ओर टकटकी बांधे देखते रहते थे कि कब कोई भारतीय खिलाडी पदक जीते. जिससे पदक तालिका में भारत का नाम वे देख सकें. लेकिन कुछ समय से परिस्थितियों में बहुत बड़ा बदलाव देखने को मिल रहा है. अब पहले जैसी बात नहीं रही. अब हमारे पास भी कई विश्व विजेता खिलाड़ी हैं, जो अपने प्रदर्शन के दम पर बड़े खेल आयोजनों में देश के पदक की उम्मीद बनते हैं.

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देश के खेल जगत में यह एक सुखद बदलाव है. अब आमजन भी खेलों की बातें करने लगा है. पहले चार दिनों में भारतीय खिलाडियों ने 11 पदक जीतकर देशवासियों को खुश कर दिया है. पहले 3 दिन तो सभी पदक देश के वेटलिफ्टरों ने दिलाये. इसमें 5  गोल्ड मेडल हैं. ग्लास्गो 2014 के राष्ट्रमंडल खेलों में भी हमारे वेटलिफ्टरों ने कुल 14 पदक हासिल किये थे. जिसमें 3 स्वर्ण पदक शामिल थे. हम अब तक उससे कहीं आगे निकल चुके हैं. 2018 के खेलों में भी हमारे वेटलिफ्टरों से अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद भी लगाई गई थी, जिस पर वे अभी तक खरे उतरे हैं.

वेटलिफ्टिंग में 1966 में जीता था पहला पदक
कर्णम मल्लेश्वरी के ओलंपिक में पदक जीतने के साथ ही वेटलिफ्टिंग खेल की ओर भी ध्यान गया है. जिसके माध्यम से हमारे वेटलिफ्टरों के भीतर भी बडे खेल मंच पर पदक जीतने की उत्कंठा बढ़ गई थी. हालांकि अगर हम इतिहास पर नजर डालें तो भारत के मोहन घोष ने 1966 में किंग्सटन जमैका में हुए आठवें कॉमनवेल्थ गेम्स में वेटलिफ्टिंग में रजत पदक जीता. वेटलिफ्टिंग में भारत का पहला पदक था. उसके बाद भारतीय खिलाड़ियों ने इस खेल में अपना लोहा मनवाया.

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हमारे कुछ एथलीटों के डोप में फंसने की वजह से सरकार का नजरिया उदासीन हो गया था. जो भारतीय खेल जगत के लिए बहुत ही शर्मसार होने वाली बात थी. इन खेलों में भाग लेने के पूर्व खेल मंत्रालय द्वारा खेल महासंघों के मध्य कुछ ऑफीशियल्स/सर्पोटिंग स्टाफ को ना भेजे जाने की वजह से दोनों के मध्य आपसी तालमेल की कमी स्पष्ट नजर आई थी. जो कि लगभग हर बड़े आयोजन के पूर्व नजर आती है. अब तो देश के खेल मंत्री भी ओलंपिक पदक विजेता खिलाडी ही हैं. तो ऐसे में वे भली प्रकार से जानते हैं कि बडे आयोजनों में किसकी क्या भूमिका होती है. उन्हें इस तरह की बातों का स्वतः ही हल निकालना चाहिये और वे यह काम अच्छी तरह से कर भी सकते हैं.

वहीं गोल्ड कोस्ट से जो खबरें आ रही है कि उसमें भी खिलाड़ी सहयोगी स्टाफ की कमी महसूस कर रहे हैं. जो जानकार अच्छा नहीं लगता है. एक खिलाड़ी विश्व के बड़े खेल आयोजन तक पहुंचने में उसकी वर्षों की मेहनत और बहुत से लोगों का सहयोग होता है. हम अभी भी खेलों में नई तकनीक विदेशियों से सीख रहे हैं. या यूं कहा जाए कि अभी भी हम खेलों में आगे आने के लिए दूसरों का अनुसरण कर रहे हैं.

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विश्व खेल जगत में अग्रणी देशों की तकनीक, उनके खेल ढांचे, उनके खिलाडियों के साथ वैज्ञानिक तकनीक का सहारा लिया जाना, खिलाड़ियों के प्रदर्शन को निरंतर बेहतर करने के लिए उनके देश में अपनाई जा रही बातें प्रमुख हैं. वही कई खेलों में हमारे खिलाड़ियों को विदेशी प्रशिक्षकों की भी आवश्यकता महसूस हो रही है. यही वजह है जब हमारे खिलाड़ी चाहते हैं कि उन विदेशी खिलाडियों की तरह उन्हें भी सुविधाएं मुहैया कराई जाएं तो वो उन्हें मिलनी चाहिये. लेकिन जब खिलाड़ियों को अंतिम समय पर मिलने वाली सुविधाओं से वंचित किया जाता है तो वे अत्यंत दुखी हो जाते है.

खेल मंत्रालय और खेल फेडरेशनों को इस ओर बहुत गंभीरता से विचार करना चाहिये. ताकि खिलाडियों को अच्छी सुविधाएं दिलाई जा सके और खिलाड़ियों के प्रदर्शन में निखार आ सके.

(लेखक खेल समीक्षक, कमेंटेटर हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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