सियासी दलों में अपना बनाने की होड़
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सियासी दलों में अपना बनाने की होड़

आजकल अपने पराये होते जा रहे हैं और पराये अपने से लगते हैं क्योंकि कहीं न कहीं आज हर व्यक्ति स्वार्थ सिद्धि में लगा हुआ है। नेतागण जो सिर्फ चुनाव के दौरान झुग्गी- झोपड़ियों में गरीब, कंगाल लोगों को गले लगाने से नहीं हिचकते। पर वही गरीब जब अपनी समस्या लेकर मंत्री या नेता के पास जाता है तो उसे अनगिनत घंटों का इंतजार करना पड़ता है। इसके बावजूद भी शक की सूई उस गरीब के माथे पर चलती रहती है कि क्या मुलाकात हो पायेगी ? तब नेता जी की प्राइआरिटी बदल जाती है।

सियासी दलों में अपना बनाने की होड़

आजकल अपने पराये होते जा रहे हैं और पराये अपने से लगते हैं क्योंकि कहीं न कहीं आज हर व्यक्ति स्वार्थ सिद्धि में लगा हुआ है। नेतागण जो सिर्फ चुनाव के दौरान झुग्गी- झोपड़ियों में गरीब, कंगाल लोगों को गले लगाने से नहीं हिचकते। पर वही गरीब जब अपनी समस्या लेकर मंत्री या नेता के पास जाता है तो उसे अनगिनत घंटों का इंतजार करना पड़ता है। इसके बावजूद भी शक की सूई उस गरीब के माथे पर चलती रहती है कि क्या मुलाकात हो पायेगी ? तब नेता जी की प्राइआरिटी बदल जाती है।

इसी तरह आजकल की राजनैतिक पार्टियां लोगों के अंदर झांकने की बजाय उन्हें मात्र अपने फ्रेंड लिस्ट में ज्यादा से ज्यादा लोगों को शामिल करने की, अपना बनाने की होड़ में जुट गयीं हैं। जिस तरह सोशल साइट्स पर जिस व्यक्ति के जितने फ्रेंड्स होते हैं उसका रुतबा उतना ज्यादा। ठीक उसी तरह आजकल राजनीतिक पार्टियां सदस्यता अभियान चलाकर ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी पार्टी से जोड़ लेना चाहती हैं। वैसे इसकी खुले आम शुरुआत आम आदमी पार्टी ने की थी। हाल ही में बीजेपी ने सबसे बड़े दल होने का गौरव हासिल कर लिया। तो वहीं जिस तरह मोदी ने पूरे देश को अचम्भे में डालकर प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल की। अब कांग्रेस भी खुद में नवसंचार की कामना लिए सदस्यता अभियान चलाकर अधिक से अधिक जनसंख्या अपनी ओर खींचना चाहते हैं।

सवाल यह उठता है कि क्या आज राजनैतिक पार्टियां सदस्यचा अभियान इसलिए चला रहीं हैं कि वोट बैंक अगले चुनाव में जुटाना न पड़े। काम किया हो या न किया हो घर के लोग तो समर्थन करेंगें ही। पूरा देश एक घर हो जाय तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। पर पार्टियां यहां देश को घर बनाने में नहीं बल्कि अपना जोश, अपना वेग और अपने प्रभुत्व का ढिंढ़ोरा पिटवाना चाहती हैं। पर, इससे जनता को कितना लाभ होगा। क्या सरकार जनता की हो जायेगी। शासक, शासक के रुप में नहीं वरन् घर के रखवाले के रुप में पेश आने लगेंगे। घर का हर सदस्य पेट भरकर भोजन कर पायेगा, बच्चे स्कूल जा पायेंगें। भष्टाचार का अंत हो जायेगा। हर घर में खुशहाली आ जायेगी। राम राज्य सा देश का माहौल बन जायेगा। कानून सबके लिए बराबर होगा। पार्टियों की हुल्लड़बाजी खत्म हो जायेगी। महिलायें सर्वत्र सुरक्षित महसूस करेंगी।

यह तमाम सवाल हैं जो जेहन में कौंधते हैं कि सदस्यता अभियान चलाकर ये राजनीतिक दल क्या साबित करना चाहते हैं कि पूरा देश अब उनका है। कोई विरोधी आवाज़ अब नहीं उठेगी क्योंकि अब आप उनके अपने हो। यदि विरोधी आवाज उठे तो देश उसका जवाब देगा। आज हर पार्टी ज्यादा से ज्यादा संख्या बढाना और बनाना चाहती है। देश को मोदी जैसे यह संदेश देना चाहते हैं कि देश उनकी आवाज सुन रहा है और उनके साथ ही चलना चाहता है।पर क्या देश सचमुच यही चाहता है? या दिल्ली चुनाव की तरह कुछ और चाहता है।

मोदी देश से 11 बजे किसी न किसी रविवार को अपने मन की बात रेडियो के जरिये कर तो लेते हैं पर सुन नहीं पाते जो लोग उनसे कुछ कहना चाहते हैं। मोदी ने जो वायदे किये थे जनता से देश उसकी बांट जोह रहा है। उसे पूरा होते देखना चाहता है। कागजी खुशबु से जनता का मन अब बहलने वाला नहीं। सिर्फ कागज पर सदस्यता संख्या बढाने से कुछ नहीं होगा। अथवा हर घर राजनीति से त्रस्त आपस में ही शतरंज की बिसात बिछाने लगेगा। जीवन की आस्था विश्वास कौंधकर कर मर जायेगा क्योंकि कौन से लोग जुड़ रहे हैं आपके साथ आप नहीं जानते प्रधानमंत्री जी। आपको जन सैलाब के अलावा कुछ सरोकार नहीं है इन सदस्यों से।

सदस्यता अभियान का असली मकसद सिर्फ संख्या बढ़ाना नहीं बल्कि पार्टी को एक ऐसा सशक्त आधारशिला देनी चाहिए जिसके सभी कायदे कानून से लेकर अभिमान विहीन नेतागण होने चाहिए। जिनसे सदस्य सामान्य रुप से पार्टी में अपनी बात रख सकें, मिल सकें, परिवारिक अनुभूति हो। ऐसी सोच मस्तिष्क में न कौंधे कि- हाय यह क्या ज्वाइन कर लिया। जनता से सरकार अगर वादाखिलाफी करती है तो सरकार से जनता भी करती है। यह बात पार्टी के वरिष्ठ और कनिष्ठ सदस्यों को ध्यान में रखना चाहिए। जनता ऐसी परिस्थति में कितनी समझदारी से काम लेती है।

किसी पार्टी की बनकर रहने में अपनी शान समझना चाहती है या तटस्थ रहकर समाज और देश को एकाग्रता से चलाने में विरोधी और पक्षधर दोनों बनकर समय समय पर देश की सहायता करेंगें। प्रत्येक नागरिक को स्वार्थ से उपर उठकर यह बताना आवश्यक हो गया है कि स्वार्थ और राजनीति से परे देश और समाज के लिए एक नियम एक कानून ही हर नागरिक के जीवन में खुशहाली ला पायेगा। सिर्फ राजनीतिज्ञों को ही नहीं हर व्यक्ति को राजनीति की राजनीति से परे स्वार्थ से उपर उठना होगा। तभी सबके बच्चे चाहे गरीब हो या अमीर स्कूल जाकर विद्दाध्ययन कर पायेंगें। कोई भूखा नहीं सोयेगा और भयमुक्त जीवन एक इंसान इंसान की तरह जी पायेगा।    

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