डियर जिंदगी : कितना सुनते हैं!
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डियर जिंदगी : कितना सुनते हैं!

जब हमें गुस्‍सा दिलाने के लिए अब शब्‍दों की जगह आंख भर से काम हो जाए तो हमें समझना होगा कि हम कितने गंभीर स्‍तर पर पहुंच गए हैं! हम अंदर से इतने उबल रहे हैं कि ‘तापमान’ में जरा सा बदलाव हमारे गुस्‍से को ज्‍वालामुखी में बदल देता है.

डियर जिंदगी : कितना सुनते हैं!

हम एक दूसरे को कितना सुन रहे हैं! सुनना तो दूर हम अनसुना करने के नए ‘रिकॉर्ड’ बनाते जा रहे हैं. ऐसा क्‍या है, जो हमें सुनने से दूर करता है. हम सबसे प्रिय सखा, मित्र, अभिभावक सबको सुनने से दूर निकलते जा रहे हैं. हम खुद अपने को कितना सुन पा रहे हैं, इस बारे में भी मन के भीतर बहुत दुविधा है.


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