हमने किसी को अच्छी स्थितियों जैसे करियर में तरक्की, लक्ष्य तक पहुंचने, सोचे हुए के हो जाने पर यह कहते हुए कम ही सुना होगा कि मेरे साथ ही यह क्यों होता है. क्योंकि हम मानकर चलते हैं कि मैं तो इसके योग्य था ही. यह तो होना ही था.
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यह भारत में सबसे अधिक बोले जाने वाले वाक्यों में से एक है. खासकर तब जब कभी हम मुश्किल में होते हैं. जिंदगी में परेशानी, कठिनाई के मोड़ से गुजरते ही, कठिन पलों के आते ही इस तरह के वाक्य हमें घेर लेते हैं. असल में यह वाक्य ही नहीं एक किस्म का मानसिक रोग है. एक भ्रम की दुनिया है. जिसका अंत खुद को शोषित, पीड़ित, दुखी और दुर्भाग्यशाली मानने पर खत्म होता है.
हमने किसी को अच्छी स्थितियों जैसे करियर में तरक्की, लक्ष्य तक पहुंचने, सोचे हुए के हो जाने पर यह कहते हुए कम ही सुना होगा कि मेरे साथ ही यह क्यों होता है. क्योंकि हम मानकर चलते हैं कि मैं तो इसके योग्य था ही. यह तो होना ही था. हम अच्छा होने, यहां अच्छा से अर्थ उससे है, जो हम चाहते हैं. उससे नहीं जो असल में हमारे लिए हितकर है, या नहीं! इसकी एक बड़ी वजह यह होती है कि हम जो चुनते हैं, वह अधिकांश दुर्घटनावश होता है. हम भारतीय अक्सर निकलते कहीं के लिए हैं और कहीं पहुंच जाते हैं.
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हम निर्णयपूर्वक कुछ होना नहीं चुनते. हां अपने चुने/ हो गए के लिए 'गवाह' जरूर पैदा करते रहते हैं, ताकि अगर कुछ अप्रिय हो तो कह सकें कि इसके कारण हुआ. हमने तो यह नहीं चुना, बस किसी के कहने के कारण किया. यह एक प्रकार का मनोरोग है.
अमेरिका के टेनिस सितारे आर्थर ऐश ने इस बारे में बेहद खूबसूरत बात कही है. आर्थर एड्स की चपेट में आने वाले शुरुआती कुछ लोगों में से थे. जब उनसे रिपोर्टर ने पूछा कि 'कभी यह ख्याल नहीं आया कि आपके साथ ही ऐसा क्यों हुआ.' उन्होंने बेहद शांति, विनम्रता से कहा था, 'जब मैं दुनिया में वह सब हासिल कर रहा था जो दूसरों के लिए ख्वाब था, तो कभी इस बारे में नहीं सोचा. तो अब क्यों?'
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आर्थर यहां हमारी उस दुविधा को बहुत हद तक दूर करने की कोशिश कर रहे हैं, जो हर अप्रिय स्थिति पर हमारे दिमाग पर हावी हो जाती है. विशेषकर तब जब एक के बाद एक ऐसी घटनाएं हो जाती हैं जिनके लिए हम तैयार न हों. ऐसी स्थिति में होता यह है कि हमारे सोच-विचार और चेतना पर यह बात हावी हो जाती है कि हमारी नियति यही है. हम इसे अनजाने में शुभ-अशुभ और मेरे साथ ही ऐसा क्यों होता है, जैसी चीजों से जोड़ लेते हैं, जो आगे चलकर अवचेतन मन और वैज्ञानिक दृष्टि के निर्माण में गति अवरोधक का काम करते हैं. अगर परिवार के किसी बड़े सदस्य के साथ ऐसा हो जाए तो इसका दुष्परिणाम यह होता है कि उसकी छाया, नजरिया पूरे परिवार पर हावी होने लगता है.
इसलिए अपने साथ हो रही घटनाओं के बारे में स्वतंत्र नजरिया रखें. उसे शुभ-अशुभ और टोटके से जितना दूर रख सकेंगे, उतना ही जीवन आनंद से गुजरेगा. डियर जिंदगी के एक अंक 'यह भी गुजर जाएगा' में इस बारे में हमने विस्तार से बात की थी. आप चाहें तो फिर इस लेख से गुजर सकते हैं.
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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
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