डियर जिंदगी : 'तेरे-मेरे सपने एक रंग नहीं हैं…'
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डियर जिंदगी : 'तेरे-मेरे सपने एक रंग नहीं हैं…'

सपनों के प्रति सतर्क रहें. उनके लिए पागल बनें. दूसरों के लिए उनको दांव पर न लगाएं, बल्कि उनके हिसाब से ‘दूसरी’ चीजें तय करें.

डियर जिंदगी : 'तेरे-मेरे सपने एक रंग नहीं हैं…'

कितना आसान, भला लगता है, जब कोई कहता है, 'मेरा और आपका सपना एक है!' लेकिन क्‍या ऐसा है. क्‍या दो लोगों के सपने एक हो सकते हैं? हम यहां टीम, प्रोफेशनल सपनों की बात नहीं कर रहे हैं. हम यहां विशुद्ध रूप से निजी जिंदगी के सपनों की बात कर रहे हैं.

खासकर, रिश्‍ते में शामिल दो व्‍यक्‍तियों की. 'डियर जिंदगी' को मिल रहीं प्रतिक्रियाओं, उसके संवाद में सबसे ज्‍यादा जिन चीजों की बात हो रही है, उनमें दंपति के रिश्‍ते, लिव-इन में एक-दूसरे के प्रति लगाव, तनाव सबसे आगे हैं.

धीरे-धीरे हम एक ऐसी दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं, जहां सुखद रूप से शिक्षा में भेद खत्‍म हो रहा है. लड़कियों की शिक्षा में अड़चनें कम हो रही हैं. वह उच्‍च शिक्षा के उतने ही नजदीक पहुंच रही हैं, जहां तक पहले लड़कों की पहुंच थी. अब शहर से दूर गांव तक इस मामले में जागरूक हो रहे हैं.

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लेकिन उसके आगे नहीं. बच्‍ची को उच्‍च शिक्षा, प्रोफेशनल शिक्षा मिलने के बाद उसके करियर का फैसला अभी भी शादी के समय तय न होकर परिवार की ‘प्रियोरिटी’ के आधार पर तय हो रहा है.

जोधपुर से हमें एक ईमेल मिला है. पेशे से पति-पत्‍नी दोनों चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं. बल्कि वह तो शादी के पहले ही सीए थीं. लेकिन शादी के बाद पति को उनका एक बड़ी कंपनी के लिए काम करना अलग-अलग कारण से खटकने लगा.

बकौल पत्‍नी, पति बेहद पारिवारिक, सज्‍जन, प्रेमी, देखभाल करने वाले व्‍यक्‍ति हैं. बस रिश्‍ते में एक ही पेच फंस रहा था, उनकी नौकरी. उन्‍होंने नौकरी छोड़ दी. आज से कोई पांच बरस पहले त्‍यागी इस नौकरी में उनकी सालाना आय दस लाख से अधिक थी. इससे उन्होंने क्‍या छोड़ा है, इसे आसानी से समझा जा सकता है. इस त्‍याग के प्रति सम्‍मान की भावना पर समय के साथ धूल गहरी होती जाती है. वहां तक स्‍मृति भी कुछ बरस बाद जाने से इंकार कर देती है.

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उन्‍होंने लिखा कि नौकरी छोड़ने के कोई पांच बरस बाद जिंदगी एकदम मजे में चल रही, लेकिन अब जबकि बच्‍चे होमवर्क, मोबाइल और पति ऑफि‍स टूर, मीटिंग में व्‍यस्‍त हैं, उनके भीतर इस बात का बोध गहरा हो चला है कि उनका और पति का सपना एक नहीं था. पति ने ही दो सपने देख लिए. एक अपने लिए, दूसरा पत्‍नी के लिए. पत्‍नी के लिए उन्होंने जो सपना देखा, उसका नाम परिवार था. इसे साझा सपने के नाम पर दिखाया गया. बाद में अहसास हुआ कि असल में इसकी पैकेजिंग इस तरह थी कि यह ग्‍लैमरस सपने की तरह हो, जबकि सच्‍चाई का इससे कोई वास्‍ता नहीं था.

लेकिन जब तक सपनों के अलग होने का बोध होता है. अवसर की रेल अक्‍सर सफर खत्‍म करने की कगार पर होती है. दूसरी पारी नामुकिन नहीं, लेकिन पहली जैसी आसान नहीं होती.

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असल में जीवनसाथी होते हुए भी सपने एक नहीं हो सकते!

यहां इस बात को सजगता से समझें कि परिवार सपना नहीं, जिम्‍मेदारी है. सपना तो वह है, जो बचपन, युवा आंखों से गुजरता है. नीद को पार करके पलकों तक पहुंचता है. हर सपना अलग है, इसलिए उसका ख्‍याल भी उतना ही रखना होगा. 

इसलिए सपनों के प्रति सतर्क रहें. उनके लिए पागल बनें. दूसरों के लिए उनको दांव पर न लगाएं, बल्कि उनके हिसाब से ‘दूसरी’ चीजें तय करें. प्राथमिकता सपने को दें. उसके साथ ऑफर में मिलने वाली ‘दूसरी’ चीजों के लिए नहीं. 

(लेखक ज़ी न्यूज़ के डिजिटल एडिटर हैं)

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