डियर जिंदगी- परीक्षा पार्ट 4: बच्चों से अधिक तनाव अभिभावकों में है!
जिस तनाव की नदी में हम बच्चों को जबरन तैरने के लिए फेंक रहे हैं, उससे जो भी वह हासिल करेंगे, उसका सबसे अधिक असर हम पर ही होगा. इसलिए, इस पागलपन को छोड़िए. अपने बच्चों और खुद को अपेक्षा के खारे पानी से बाहर निकालिए.
परीक्षा के दिनों में बच्चों और माता-पिता में से अधिक तनाव किसे होता है, यह कहना हर दिन मुश्किल होता जा रहा है. बच्चे से कहीं तनाव में परिवार है, क्योंकि उसने अपने भीतर प्रतिष्ठा का सिंड्रोम पैदा कर लिया है. मेरे बच्चे से बेहतर दूसरे का बच्चा कैसे हो सकता है. यह तुलना तनाव से कहीं अधिक अवसाद का रूप लेती जा रही है.
स्कूल बच्चों के भीतर एक-दूसरे से प्रतियोगिता की भावना कुछ ऐसे विकसित कर रहे हैं कि लगता है, मानो एक-दूसरे के लिए दुश्मनी पैदा कर रहे हैं. एक बार बच्चे के मन में जो बातें भर दी जाती हैं, उनका उस पर ताउम्र असर रहता है. बचपन के विचारों और आदतों से पार पाना असंभव नहीं तो बहुत मुश्किल तो है ही.
यह भी पढ़ें- डियर जिंदगी- परीक्षा पार्ट 3: जीवन नकद है, उधार नहीं!
बच्चों के कोमल मन में प्रतिस्पर्धा की जो भावना स्कूल पहली कक्षा से भरना शुरू करते हैं, वह जिंदगी भर उनका पीछा करती है. 'दूसरे से अधिक' की चाह! इससे खतरनाक जिंदगी में कुछ हो ही नहीं सकता. यह एक किस्म का मनोरोग है. लेकिन हम ऐसे मनोरोगी तैयार करने का काम दोगुने उत्साह से करते जा रहे हैं.
बड़ा होकर भी बच्चा तुलना और दूसरे से आगे निकलने की हसरत में लगा रहता है. क्या यही बेहतर मनुष्य तैयार करने की योजना है! हम ऐसी दुनिया बना रहे हैं, जिसके दिमाग में स्नेह, प्रेम और सह-अस्तित्व की जगह केवल मैं है. हमें नहीं चाहिए ऐसे स्कूल जो मनुष्यता को मिटाने का काम कर रहे हैं.
यह भी पढ़ें- डियर जिंदगी - परीक्षा-2 : प्रेम ही सबकुछ नहीं, जो कुछ है केवल प्रेम है...
हम बच्चों को सहज बनाए रखने में उनकी मदद करने की जगह उन्हें अधिक से अधिक नंबर लाने के लिए प्रेरित करने में जुटे हैं. हमने अपना फोकस बच्चे की जगह उसके ऐसे कथित करियर पर फोकस कर दिया है, जिसकी कोई स्क्रिप्ट हमारे पास नहीं है.
एक ऐसे समय में जब इंटरनेट को दुनिया की खिड़की कहा जा रहा है, हम स्कूल, शिक्षा और बच्चों की परवरिश के मामले में दुनिया से कुछ नहीं सीख रहे हैं. फिनलैंड जैसे छोटे देश में बच्चों में स्कूल प्रवेश की उम्र से लेकर, सिलेबस तक में अहम बदलाव किए जा रहे हैं. यूरोप में बच्चों को अधिक उम्र में स्कूल भेजने के बारे में विमर्श हो रहा है. ब्रिटेन में बच्चों और युवाओं में तनाव को लेकर गंभीरता से रिसर्च हो रही हैं. वहां अवसाद की समस्या को इतना अहम माना जा रहा है कि अकेलेपन (Loneliness) से निपटने के लिए मंत्री (Minister for Loneliness) नियुक्त किए जा रहे हैं. ब्रिटेन की प्रधानमंत्री अकेलेपन और उदासी कोइतनी गंभीरता से ले रही हैं. वहां समाज को एक-दूसरे के प्रति स्नेह, आत्मीयता के उपाय बढ़ाने को कहा जा रहा है तो दूसरी ओर हम जो एक समाज के रूप में ऐसे खतरों से दूर थे, अब नए खतरे गढ़ रहे हैं.
यह भी पढ़ें- डियर जिंदगी: प्रेम की खुराक दोगुनी करें, क्योंकि 'परीक्षा' का मौसम आ गया है...
जब तक हम यह नहीं समझेंगे कि बच्चे हमारे साथी हैं, संपत्ति नहीं. तब तक यह संकट बढ़ता ही रहेगा. हम बच्चों को उनके लिए नहीं अपने लिए तैयार करने की जिद में हर दिन दोगुनी गति से बढ़ रहे हैं. बच्चा कहता है उसे शिक्षक की बात समझ में नहीं आ रही. वह गणित में लाख कोशिश के बाद भी बेहतर नहीं कर पा रहा तो हम इसे कितनी गंभीरता से लेते हैं. गंभीरता तो दूर हम अनेक अवसरों पर इसे खुद की प्रतिष्ठा से जोड़ लेते हैं. यह समझते हुए कि अरे! हमारा बच्चा गणित में कैसे कमजोर है. अरे! हमारे बच्चे को समझ में कैसे नहीं आता! ऐसा करने वाले भूल रहे हैं कि उनके अपने स्कूल के दिन कैसे थे. अगर आप कक्षा में प्रथम नहीं आते थे तो इससे जिंदगी में क्या आप पिछड़ गए और अगर आप हमेशा प्रथम आते थे तो इसका जिंदगी को क्या फायदा मिला.
परेशानी यही है कि हम खुद से कठिन सवाल नहीं पूछते. स्वयं के लिए सहूलियतों का संसार रच देते हैं तो दूसरी ओर बच्चे के लिए कदम-कदम पर कड़ी परीक्षा. बच्चा अगर अच्छा नहीं कर रहा है तो उसे दूसरे गुणों को खोजने, सहेजने की जगह अक्सर तुलना के जंगल में भटकने के लिए छोड़ दिया जाता है.
यह भी पढ़ें- डियर जिंदगी : काश! सुसाइड करने वाले बच्चे समझ पाते, 'लोग कुछ नहीं कहते...'
जो आज अपने बच्चे को संतान से अधिक निवेश मानकर तैयार कर रहे हैं. उन्हें ऐसी खबरों पर जरूर ध्यान देना चाहिए जो यह बता रही हैं कि कैसे संपन्न, अत्यधिक संपन्न परिवारों के बच्चे अपने माता-पिता को अकेला छोड़, घरों में कैद रखकर दुनिया 'जीत' रहे हैं.
इसके बहुत से कारण है. लेकिन एक अहम कारण यह भी है कि जब बच्चा आपसे प्रेम, स्नेह और आपका साथ मांग रहा था तो आपने अपने सपने बुनने के फेर में उसे अकेला छोड़ दिया. अब जब वह सबकुछ हासिल कर चुका है, तो आपके पास क्यों आएगा. उसके लौटने में आत्मीयता कैसे होगी. कहां से आएगी. क्योंकि उसे आपने आगे बढ़ने की ललक में इतना झोंक दिया कि बाकी किसी भावना के लिए उसके पास 'स्टॉक' ही नहीं रहा.
जिस तनाव की नदी में हम बच्चों को जबरन तैरने के लिए फेंक रहे हैं, उससे जो भी वह हासिल करेंगे, उसका सबसे अधिक असर हम पर ही होगा. इसलिए, इस पागलपन को छोड़िए. अपने बच्चों और खुद को अपेक्षा के खारे पानी से बाहर निकालिए. यहीं से होकर मनुष्य का वह रास्ता जाता है, जिसकी गली में ही हमारा जीवन संवरेगा.
सभी लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें : डियर जिंदगी
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
(https://twitter.com/dayashankarmi)
(अपने सवाल और सुझाव इनबॉक्स में साझा करें: https://www.facebook.com/dayashankar.mishra.54)