डियर जिंदगी : जब ‘सुर’ न मिलें…
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डियर जिंदगी : जब ‘सुर’ न मिलें…

भरपूर विविधता के बाद भी हमारी अंतर्यात्रा, अवचेतन के सुर कहीं न कहीं मिलते ही हैं. अपरिचितों के यही सुर जब आपस में मिल जाते हैं, तो वह 'मिले सुर मेरा तुम्‍हारा' से होते हुए, ‘हमारा’ सुर बन जाते हैं. इससे ही जिंदगी प्रिय होगी.

 डियर जिंदगी : जब ‘सुर’ न मिलें…

‘मिले सुर मेरा तुम्‍हारा’ तो आपको याद ही होगा! दूरदर्शन पर प्रसारित किए गए इस गीत को देखने, सुनने में जो मजा उस समय था, आज भी वैसा ही है. इसके हर दृश्‍य में भारत के हर कोने की आवाज को एक सूत्र में पिरोने का काम किया गया. पंद्रह अगस्‍त 1988 से निरंतर हमें ऊर्जा देता हुआ यह हमारी स्‍मृतियों में तैर रहा है.


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