संकोच, लिहाज और 'न' नहीं कह पाने के कारण हम चीजों को ढोते रहते हैं. उनमें शामिल होने को तैयार रहते हैं, न चाहते हुए भी वही करते हैं, जिसे नहीं चाहते.
Trending Photos
जिंदगी इन दिनों टीवी प्रोग्राम जैसी हो गई है. जैसे प्रोग्राम के बीच विज्ञापन आते हैं. उसके बाद फिर प्रोग्राम आता है. सबकुछ तय होता है. एक-एक पल का हिसाब. यह बात अलग है कि कई बार सीरियल पूरा होते ही हम सिर पकड़ लेते हैं कि इतना वक्त बर्बाद हो गया. अब कुछ किया नहीं जा सकता. यह बात अलग है कि कुछ दिन बाद, कई बार उसी दिन हम अपना वक्त ऐसे ही किसी दूसरे प्रोग्राम को देखने में जाया कर देते हैं.
कुछ यही हाल हमारी जिंदगी का हो गया है. हम सोचते हैं, अरे! यह काम ठीक नहीं हुआ. समय बेकार की चीजों और चिंतन में बीत गया. इसके कुछ दिन बाद, कई बार उसी दिन हम वैसी ही चीजों में शामिल हो जाते हैं. इस तरह जिंदगी में अक्सर हम उन चीजों के इर्द-गिर्द भटकते, घूमते रहते हैं, जिनसे हम नाखुश रहते हैं.
यह भी पढ़ें- डियर जिंदगी: 'अहिंसक' प्रेम की ओर!
मजेदार पहेली है. हमें काम पसंद नहीं है. किसी के घर जाना, मिलना पसंद नहीं. कुछ भी ऐसा करना जो अच्छा नहीं लगता. लेकिन हम अपने-अपने कारणों, वजहों से ऐसा करते रहते हैं. संकोच, लिहाज और 'न' नहीं कह पाने के कारण हम चीजों को ढोते रहते हैं. उनमें शामिल होने को तैयार रहते हैं, न चाहते हुए भी वही करते हैं, जिसे नहीं चाहते.
एक बार आप इस प्रक्रिया का हिस्सा बन गए तो उसके बाद पूरी जिंदगी इस चकरघिन्नी में कब बीत गई, पता ही नहीं चलता. ऐसा होता आया है, ऐसे ही किया जाएगा. यह सबसे खराब लत है, जो एक बार लग गई तो इससे मुक्त होने में जीवन लग जाता है. हम उन्हीं कथित आदतों, संगतों के साथी बने रह जाते हैं, जिनके फेर में हमें एक बार किसी कारणवश डाल दिया गया.
यह भी पढ़ें- डियर जिंदगी: सवालों के 'जंगल' में खोए जवाब
अगर आप ध्यान से देखें तो तंबाकू खाने की लत ग्रामीण जीवन में एक लत के रूप में शामिल होती है. इसकी शुरुआत बच्चे से डिबिया मंगाने से लेकर उसे तंबाकू तैयार करने के आदेश से होती है. धीरे-धीरे वह तंबाकू तैयार करना सीख जाता है. जब वह ऐसा करना सीख जाता है, तो बड़े कहते हैं, देखो खाना नहीं है. लेकिन तब तक बच्चे का मन, मस्तिष्क तंबाकू के स्वाद के लिए तैयार हो चुका होता है. अब क्या करें. उसके बाद वह धीरे-धीरे उस अनचाहे स्वाद का हिस्सा बन जाता है. ताउम्र यह सिलसिला जारी रहता है. कभी नहीं छूट पाता. क्योंकि उसके मन में तंबाकू के प्रति एक किस्म की निष्ठा और सम्मान का भाव भर दिया गया था.
बच्चे वह काम हमेशा ही करते हैं, जो माता-पिता को करते देखते हैं. भले ही माता-पिता उनके इस काम को करने से रोकने की लाख कोशिश करते रहें. यह बच्चे जब बड़े हो जाते हैं. तो वह केवल उम्र से बड़े होते हैं. क्योंकि उनके दिमाग के काम करने का पैटर्न तो एक जैसा ही रहता है. वह आसनी से नहीं बदलता. क्योंकि हम अनजाने में उन्हें उन चीजों से चिपके रहने की शिक्षा दे रहे होते हैं, जो हमें पसंद है.
यह भी पढ़ें- डियर जिंदगी: ‘असहमति’ के बीच आनंद सूत्र!
बच्चों से हम निरंतर संवाद में रहते हैं. जिससे वह सीखते हैं. लेकिन वह सबसे अधिक हमें देख कर सीखते हैं. शब्दों से कहीं ज्यादा असर बच्चों पर भाव भंगिमा, बातों पर कायम रहने, आपके व्यवहार का होता है. बच्चे 'जस का तस' पैटर्न लागू कर लेते हैं. इसमें शामिल है, नियम कायदों, रिवाजों के नाम पर वह करते रहना जो पसंद नहीं. असहमत होकर भी वही करना जो पसंद नहीं. यह एक किस्म का संक्रामक रोग है.
इसलिए, जितना अधिक हो सके. स्वयं को और बच्चों को इससे मुक्त करें. यह डियर जिंदगी में प्रेम, स्नेह और सुख की बड़ी बाधाओं में से एक है.
सभी लेख पढ़ने के लिए क्लिक करें : डियर जिंदगी
(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)
(https://twitter.com/dayashankarmi)
(अपने सवाल और सुझाव इनबॉक्स में साझा करें: https://www.facebook.com/dayashankar.mishra.54)