डियर जिंदगी: साथ रहते हुए ‘अकेले’ की स्वतंत्रता!
विवाह को लेकर वर पक्ष का रवैया अब तक नहीं बदला. वर पक्ष की 'श्रेष्ठता ग्रंथि' जब तक नहीं बदलेगी, इस रिश्ते में ऊर्जा, स्नेह से भरी कोपलें नहीं खिलेंगी.
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‘डियर जिंदगी’ के पाठकों के साथ यह साझा करते हुए बेहद प्रसन्नता हो रही है कि अब इसे हिंदी, मराठी, गुजराती और बांग्ला में जिस आत्मीयता के साथ पढ़ा जा रहा है, उसी आत्मीयता के साथ इसके संवाद के निमंत्रण अब हिंदी प्रदेश के बाहर से भी मिल रहे हैं. आठ जनवरी को ‘डियर जिंदगी’ के लिए इस पड़ाव का सबसे अहम दिन था. मुंबई के सुपरिचित ‘रामनारायण रुइया आर्ट एंड साइंस कॉलेज’ में जीवन संवाद के लिए आमंत्रित किया गया.
यहां छात्र-छात्राओं के साथ जिस तरह शिक्षकों ने इसमें हिस्सा लिया. उससे ‘डिप्रेशन और आत्महत्या’ के विरुद्ध प्रयास को बहुत बल मिला. इस संवाद में जिन दो छात्रों ने सबसे अधिक उत्साह से हिस्सा लिया, उनमें से एक छात्र दृष्टिहीन हैं. उनकी जीवन के प्रति दृष्टि और समझ यह बताने के लिए पर्याप्त है कि असल में हम कथित दृष्टिवालों के नजरिए कितने बाधित हैं. मनुष्य की दृष्टि एक बार सही दिशा में आगे बढ़ जाए, तो उसके आगे जाने की कोई सीमा नहीं!
डियर जिंदगी: स्वयं को दूसरे की सजा कब तक!
इस यात्रा में युवा मन के साथ सबसे अधिक बात प्रेम, विवाह और रिश्तों को लेकर हुई. आज इसके एक छोर यानी विवाह से जुड़ी कुछ बातें करते हैं.
विवाह को देखने, समझने का हमारा नजरिया एकदम वही है, जबकि इसके हिस्सेदारों की दुनिया पूरी तरह बदल चुकी है. समाज, स्त्री, पुरुष और परिवार भी. विवाह को लेकर वर पक्ष का रवैया अब तक नहीं बदला. वर पक्ष की श्रेष्ठता ग्रंथि जब तक नहीं बदलेगी, इस रिश्ते में ऊर्जा, स्नेह से भरी कोपलें नहीं खिलेंगी. एक-दूसरे से प्रेम करिए, लेकिन अपने प्रेम को बंधन में मत बांधिए. कैसे वीणा के तार अलग रहते हुए भी एक सुर में होते हैं. स्वतंत्र होते हुए एक-दूसरे का साथ निभाने का आनंद सर्वश्रेष्ठ जीवन है!
डियर जिंदगी: जो बिल्कुल मेरा अपना है!
परंपरागत विवाह, परिवार के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसकी मूल सोच में परिवार चलाने का सारा दायित्व स्त्री पर है. पुरुष को बहुत हद तक केवल आर्थिक जिम्मेदारी से जोड़ा गया. किसी एक समय में यह सब बातें शायद ठीक रही हों, लेकिन आज ऐसे विचार हमें कहीं नहीं ले जाएंगे!
एक प्रश्न यह भी मिला कि प्रेम विवाह करते समय किस बात का ध्यान रखा जाए! मैंने कहा, ‘क्या प्रेम करते समय कुछ ध्यान रखना संभव है. क्या ध्यान रख-रखकर कर किए गए प्रेम को प्रेम कहा जा सकता है! वह तो महज गणित है, गणना से हम गणितज्ञ बन सकते हैं, कम से कम इसका प्रेम से कोई वास्ता नहीं.’
डियर जिंदगी: असफल बच्चे के साथ!
हमने जीवन में बीते दस बरस में धन को कुछ अधिक ही महत्व देना आरंभ कर दिया है . मुंबई में हमारे संवाद का हिस्सा रही एक छात्रा ने बताया कि उसके पिता ने उसकी बड़ी बहन के लिए आए प्रेम विवाह के प्रस्ताव को यह कहकर टाल दिया कि लड़के के पास रहने के लिए घर नहीं है! उनके पास अपनी बेटी के इस प्रश्न का उत्तर नहीं था कि हम आज तक किराए के मकान में क्यों रहते हैं. पिता ने कहा, जो कष्ट मेरे बच्चों ने सहे, जरूरी नहीं तुम्हारे बच्चे भी सहें.
पिता के विचार चिंता से भरे हैं, लेकिन अपनी बेटी के भविष्य का सारा भार वह अकेले, उनकी लड़की से प्रेम करने वाले लड़के पर कैसे डाल सकते हैं. वैसे भी मुंबई जैसे शहर में मध्यमवर्गीय परिवार के लिए घर बहुत बड़ी उपलब्धि है. लेकिन पिता नहीं माने. यह बात कुछ और है कि लड़के और उनके परिवार ने एक साल के अंदर मुंबई में अपना घर बना लिया. विवाह हो गया.
डियर जिंदगी : बच्चों को अपने जैसा नहीं बनाना !
यह किस्सा सुनाने वाली छात्रा ने कहा, ‘जीजा जी ने कर दिखाया.’ मैंने कहा, लेकिन बड़ी बात यह नहीं है. बड़ी बात तब होती जब विवाह बिना शर्त के होता. अगर वह लड़का घर नहीं ले पाता, तो क्या इससे उसका प्रेम कम हो जाता!
विवाह में थोपी गई शर्त का कोई महत्व नहीं. जब तक युवा इन कागजी, एक पक्षीय व्यवस्था का विरोध नहीं करेंगे. जीवन में नई ऊर्जा हासिल करना संभव नहीं. प्रेम एकदम सरलता जैसी चीज़ है. जैसे सरल होना बहुत कठिन है, वैसे ही प्रेम को समझना, प्रेम के असंख्य दावे के बीच बहुत गहराई की बात है!
प्रेम, विवाह और जीवन बहुत सरल, सीधे हैं. हमें बस इनको बिना किसी मिलावट के समझना, जीना है. मिलावट से तो अमृत को भी उसके स्वभाव के उलट बनाया जा सकता है!
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