हम अक्‍सर सुनते हैं, दिमाग भारी है. सिर में दर्द है. उसकी दवा ली जाती है, वह ठीक भी हो जाता है. कुछ दिनों पहले एक बेहद सुलझे, बड़े डॉक्‍टर से संवाद का अवसर मिला. उनकी सबसे अच्‍छी बात यह लगी कि वह शरीर के साथ मन को जोड़ने के बाद ही मरीज का इलाज शुरू करते हैं. उन्होंने जो कुछ बातें साझा की हैं, उनमें विज्ञान का हिस्‍सा भी उतना ही है, जितना मन, विचार का है. इनका मनना है कि इन दिनों अधिकांश बीमारियां गुस्‍से, तनाव और मन की जकड़न के कारण हैं.


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आज से दस-पंद्रह बरस पहले जीवन के हर विभाग में तनाव की हिस्‍सेदारी बहुत कम थी. जीवन में तनाव का बहुत अधिक हिस्‍सा आर्थ‍िक था. लेकिन अब यह उल्‍टा हो गया है. तनाव दिमाग, संबंध और रिश्‍तों पर सबसे अधिक भारी पड़ने लगा है. कुल जमा यह हो रहा है कि दिमाग बीमारियों के केंद्र में आ गया है. पहले हमें तनाव होता है, उसके बाद हम उसकी अनदेखी करते हैं. शरीर का दर्द समझकर हम जिसका उपचार कर रहे हैं, असल में तो वह शरीर से पहले विचार से जन्‍मी समस्‍या है. सबसे अधिक कष्‍ट तो विचार देता है.


एक विचार जो मन में कुंठा, हिंसा, ईर्ष्‍या के साथ दाखिल हुआ है, जितने दिन हमारे साथ रहता है, वह मन में इन सारी चीजों का विस्‍तार करके जाता है. असल में वह मन में इनके संग्रह की जगह बनाने का काम करता है. इसलिए सबसे पहला काम यह होना चाहिए कि हम तक जो विचार चलकर आ रहे हैं, उनकी स्‍कैनिंग भी उसी समय होती रहे. ठीक वैसे ही जैसे मोबाइल में वायरस से निपटने के लिए एंटीवायरस रखे जाते हैं. कुछ वैसे ही जैसे हम बीमारी के लिए कई बार पूरे शरीर की जांच से गुजरते हैं.


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कुछ वैसे ही हमें हर दिन विचारों की स्‍कैनिंग के लिए एक पद्धति अपनानी होगी. दूसरे का विचार केवल विचार है! कहीं आप उसके किसी एजेंडे का हिस्‍सा तो बनने नहीं जा रहे. दूसरे के सुख-दुख का हिस्‍सा होना एक बात है, लेकिन उसके विचारों से प्रभावित होकर स्‍वयं को डिस्‍टर्ब/विचलित कर लेना, दूसरी बात. हम ज्‍यादातर दूसरी बात के आसपास होते हैं. हमारा सारा ध्‍यान इस बात पर रहना चाहिए कि हम दूसरे की चीजों से खुद को विचलित न होने दें.


यह अभ्‍यास में बेहद मुश्किल प्रक्रिया है. विचारों की स्‍कैनिंग आसान नहीं. क्‍योंकि हम हर चीज से इतना अधिक जुड़ाव महसूस करते हैं कि हम उनसे खुद को डिटैच (अलग) ही नहीं कर पाते. जबकि जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए डिटैचमेंट (अलगाव) सबसे जरूरी चीज है.


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यह कुछ हद तक वैसे ही है, जैसे डॉक्‍टर को सिखाया जाता है कि वह मरीज का ऑपरेशन करते समय कैसे खुद को उसकी पीड़ा से अलग रखे. क्‍योंकि अगर ऑपरेशन के समय वह मरीज की पीड़ा से प्रभावित हो गया तो अपना काम कैसे कर पाएगा. इसलिए उसका डिटैच होना, बेहद जरूरी है. यहां डिटैच होने का अर्थ मानवीय सरोकार, सेवाभाव की अनदेखी करना नहीं है. बल्कि अपने पेशे के प्रति समर्पण, पूर्णता के लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने के लिए स्‍वंय को प्रशिक्षि‍त करने जैसा है.


ठीक इसी तरह का दृष्टिकोण हमें विचारों के प्रति अपनाना होगा. किस विचार को पकड़ना है, किससे उलझना है. किससे बचकर निकलना है, यह निर्णय हमारे जीवन के सबसे अहम निर्णयों में से एक होने चाहिए.


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'आपकी अनुमति के बिना आपको कोई दुखी नहीं कर सकता.' यह बात दिल-दिमाग और मन की दीवारों पर लिख लीजिए. यह विचारों की स्‍कैनिंग में आपकी बेहद मदद करेगा. कौन सी बात आपके कितने गहरे तक असर करेगी, इसका फैसला आप दूसरों की राय/विचारों को नहीं करने दे सकते. यह आपके मन को हल्‍का रखने, जीवन को सुखी रखने का निर्णय है, सो आपको ही करना चाहिए.


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(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)


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