कैलाश सत्यार्थी आरएसएस के कार्यक्रम में गए, तो बुरा क्या है
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कैलाश सत्यार्थी आरएसएस के कार्यक्रम में गए, तो बुरा क्या है

मैंने गौर किया है कि वे हर उस मंच पर जाते हैं, जहां से बच्चों का हित सधता हो. पिछले साल उन्होंने बच्चों की ट्रैफिकिंग और यौन शोषण के खिलाफ देशव्यापी भारत यात्रा का आयोजन किया था.

कैलाश सत्यार्थी आरएसएस के कार्यक्रम में गए, तो बुरा क्या है

विजयदशमी का दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्थापना दिवस होता है. इस अवसर पर हर साल संघ अपने मुख्यालय नागपुर में एक विशाल कार्यक्रम आयोजित करता है. इस बार संघ ने अपने इस कार्यक्रम में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित जाने-माने बाल अधिकार कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी को आमंत्रित किया. सत्यार्थी जी कार्यक्रम में गए और सोशल मीडिया में इस पर हंगामा मच गया.
 
संघ विरोधी विचारधारा के लोग उनकी यह कह कर आलोचना करने लगे कि सत्यार्थी को इस कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए था, क्योंकि उनकी एक तटस्थ और स्वच्छ छवि है. जबकि संघ एक खास विचारधारा को बढ़ावा देता है. सोशल मीडिया के योद्धाओं ने बिना तथ्यों को जाने और उनके भाषण को सुने यह भी आरोप लगा दिया कि सत्यार्थी जी भाजपा का समर्थन कर रहे हैं. हमारा देश इस समय आरोप-प्रत्यारोप के बहुत ही खराब और चिंताजनक दौर से गुजर रहा है.
परस्पर विरोधी विचारधारा के लोग एक दूसरे की आलोचना में मर्यादा की सभी हदें पार कर रहे हैं. कई बार तो वैचारिक रूप से विरोधी व्यक्ति का तथ्यों से बिल्कुल परे जाकर ऐसा चरित्र हनन कर दिया जाता है, जिसकी सभ्य समाज में आशा भी नहीं की जा सकती. कुछ लोग सत्यार्थी जी के साथ ऐसा ही कर रहे हैं.  
 
खैर, मुद्दा यह है कि कैलाश सत्यार्थी को आख्रिर संघ के कार्यक्रम में जाना चाहिए था या नहीं? सत्यार्थी जी ने संघ के मंच से ही इसका जवाब दिया है. उन्होंने अपने भाषण में ऋग्वेद का एक मंत्र उद्धृत करते हुए कहा, “संगच्छध्वम्, संवदध्वम्, संवोमनांसि जानताम्. देवाभागम् यथापूर्वे संजानानामुपासते.’’ यानी हम सब साथ-साथ चलें. सब प्रेम से मिलकर आपस में बातचीत करें. सब मिलकर विचार-विमर्श करें. हमारे पूर्वजों की तरह हम भी साथ मिल-बैठकर सबके लिए ज्ञान का सृजन करें.” किसी भी सभ्य समाज में आपसी संवाद और विचार-विमर्श जरूरी है. इसी संवाद और विचार विमर्श से ही समस्याओं का समाधान निकलता है. यही भारतीय संस्कृति की परंपरा भी रही है. हमारे यहां शास्त्रार्थ का लंबा और गौरवशाली इतिहास है. बच्चे 21वीं सदी का सबसे ज्वलंत मुद्दा हैं. इसलिए इस पर तो सबको मिलकर संवाद करना ही चाहिए.
 
बच्चे समाज में सबसे कमजोर माने जाते हैं. अगर ये बच्चे दलित और वंचित समाज के हैं तो इनका सुनने वाला कोई भी नहीं. बच्चे न तो वोट बैंक हैं और न ही संगठित होकर अपनी आवाज उठा सकते हैं. लिहाजा वे राजनीति और विकास के हाशिए पर हैं. बच्चे लगातार ट्रैफिकिंग और यौन शोषण के शिकार हो रहे हैं. हर रोज अखबार बाल हिंसा की खबरों से भरे रहते हैं. स्थिति कितनी भयावह है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि मौजूदा समय में हर घटे में दो बच्चों के साथ बलात्कार होता है और चार बच्चे यौन शोषण के शिकार हो रहे हैं. हर आठ मिनट में एक बच्चा गुम हो रहा है. हर घंटे में एक बच्चा ट्रैफिकिंग का शिकार हो रहा है. उन्हें बाल श्रम, बाल विवाह, वेश्यावृत्ति और भिखमंगी आदि के लिए खरीदा बेचा जा रहा है. ऐसे में क्या बच्चों की सुरक्षा पर बात नहीं की जानी चाहिए? क्या बच्चों के यौन शोषण और ट्रैफिकिंग पर लोगों को जागरुक करने की जरूरत नहीं है? बच्चे इस देश का भविष्य हैं. जिनके कंधों पर देश का भविष्य है, क्या उनकी चिंता पूरे देश-समाज को नहीं करनी चाहिए. श्री कैलाश सत्यार्थी हर तरह के लोगों के बीच और हर मंच पर जाकर लोगों को यही तो समझा रहे हैं. आरएसएस के मंच पर भी उन्होंने यही बात की.
 
मैंने गौर किया है कि वे हर उस मंच पर जाते हैं, जहां से बच्चों का हित सधता हो. पिछले साल उन्होंने बच्चों की ट्रैफिकिंग और यौन शोषण के खिलाफ देशव्यापी भारत यात्रा का आयोजन किया था. इस यात्रा के दौरान सत्यार्थी ने मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारे से लेकर सभी संप्रदाय के धर्म गुरुओं का दरवाजा खटखटाया. सभी विचारधाराओं और राजनीतिक दलों के लोगों को भारत यात्रा में शामिल किया और उनका सहयोग लिया. भारत यात्रा के मंच पर केरल से लेकर आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री तक आए. कैलाश सत्यार्थी कहते भी हैं कि वे हर वह दरवाजा खटखटाएंगे और हर उस चौखट पर जाएंगे, जहां से बच्चों का बचपन सुरक्षित और खुशहाल बन सकता है.
 
रही बात संघ के मंच पर जाने की तो यह देश का ही नहीं, दुनिया का सबसे बड़ा सामाजिक संगठन है और उसकी पहुंच सुदूर ग्रामीण इलाकों तक है. देशभर में उसकी 55,000 से अधिक शाखाएं लगती हैं. संघ से जुड़े 39 देशव्यापी अन्य संगठन हैं. इसमें दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन, मजदूर संगठन और किसान संगठन भी शामिल हैं. तकरीबन एक लाख विद्यालय हैं. इनमें 60 हजार एकल विद्यालय हैं जो देश के बिल्कुल सुदूर इलाकों में संचालित होते हैं. संघ द्वारा 1.77 लाख सर्विस प्रोजेक्ट यानी सेवा कार्य संचालित किए जा रहे हैं. इस आधार पर कहा जा सकता कि बच्चों को शोषण से बचाने के संदेश को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने के लिए यह मंच बहुत उपयोगी है. यह भी ध्यान रखने योग्य है कि इस कार्यक्रम की मीडिया में भी जबरदस्त कवरेज होती है. डीडी न्यूज सहित तमाम समाचार चैनल इस कार्यक्रम को लाइव दिखाते हैं. अकेले डीडी न्यूज की पहुंच ही 4.5 करोड़ लोगों तक है. इस लिहाज से देखा जाए तो कैलाश सत्यार्थी ने एक विशाल जनसमूह तक अपनी बात पहुंचाने और बाल अधिकारों की रक्षा हेतु लोगों को प्रेरित करने के लिए संघ के इस मंच का बहुत अच्छा और प्रभावी इस्तेमाल किया.
 
मैंने नागपुर में दिया गया उनका पूरा भाषण सुना. उसमें कहां भाजपा का समर्थन है? बल्कि सत्यार्थी केंद्र की भाजपा गठबंधन सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना करते हुए कहते हैं, “हम विदेशी पूंजी निवेश और गिने-चुने उद्योगपतियों के और ज्यादा अमीर बन जाने से स्वावलंबी नहीं बन सकते. हमें किसानों, श्रमिकों और खुदरा व्यापारियों को सशक्त बनाना होगा. हमारे देश में अभी तक भुखमरी खत्म नहीं हुई है. करोड़ों बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. सबके लिए ठीक-ठीक इलाज की व्यवस्था, गुणवत्तापूर्ण, उपयोगी और रोजगारपरक शिक्षा हमारी बड़ी चुनौतियां हैं. भारत को पुनः जगतगुरु और सोने की चिड़िया बनने की प्रतिष्ठा हासिल करनी है, तो देश में शिक्षा से वंचित साढ़े आठ करोड़ बच्चों को अच्छी पढ़ाई उपलब्ध करानी पड़ेगी.”  उन्होंने विकास के आधुनिक मापदंडों पर सवाल उठाते हुए कहा कि अर्थशास्त्रियों के लिए विकास का पैमाना प्रति व्यक्ति आय, जीडीपी आदि कुछ भी हो, लेकिन उनका पैमाना अलग है. वह दूर-दराज के गांवों के खेत-खलिहान या खदान में गुलामी और असुरक्षा की शिकार मेरी दलित और आदिवासी बेटी की खुशहाली है.
दूसरी बात, क्या किसी व्यक्ति के किसी अन्य मंच पर जाने भर से या उसका साथ देने से उसकी विचारधारा बदल जाती है? यह कितनी हस्यास्पद बात है. जार्ज फर्नानडीज जैसे प्रखर समाजवादी नेता अटलजी की सरकार में रक्षा मंत्री थे. तो क्या वे संघी या भाजपाई बन गए थे? कई मौकों पर मजदूरों के हितों के लिए वामपंथी मजदूर संगठन और दक्षिणपंथी, जिनमें आरएसएस से जुड़ा भारतीय मजदूर संघ भी है, मिलकर लड़ाई लड़ते हैं और एक साथ धरना-प्रदर्शन करते हैं. तो क्या उनके मतभेद खत्म हो जाते हैं? उत्तर है कतई नहीं. इसी तरह बच्चों की लड़ाई के लिए भी सभी को एक मंच पर आना चाहिए.  
 
इस अवसर का लाभ उठाते हुए सत्यार्थी ने देशभर के लाखों स्वयंसेवकों से आह्वान किया कि वे जन-जन तक बाल सुरक्षा का संदेश फैलाएं और यौन शोषण के खिलाफ लोगों को जागरुक करें. उन्होंने सुझाव दिया कि गांव-गांव तक फैली आरएसएस की शाखाएं बच्चों के लिए सुरक्षा कवच बन सकती हैं. संघ प्रमुख श्री मोहन भागवत ने भी सत्यार्थी जी को आश्वासन दिया कि स्वयंसेवक बच्चों का सुरक्षा कवच बनेंगे. अगर ऐसा हुआ तो न केवल हमारे बच्चे शोषण मुक्त हो सकेंगे, बल्कि उनका बचपन भी सुरक्षित और खुशहाल बन पाएगा.
 
बच्चों के सवाल पर हमें राजीनीति और विचारधारा से ऊपर उठ कर सोचना चाहिए. भविष्य की पीढ़ी को बचाने के लिए हमें बिल्कुल भूल जाना चाहिए कि हम दक्षिणपंथी हैं या वामपंथी. हम सब को बाल शोषण के खिलाफ आंदोलन को मजबूत करने और बच्चों के खिलाफ हिंसा को समाप्त करने के मकसद से जमीनी स्तर पर बातचीत व संवाद से सर्वसम्मति निर्मित करने का प्रयास करना चाहिए. यही एक विकल्प है जिससे हम देश के करोड़ों बच्चों का बचपन सुरक्षित बना सकते हैं.
 
(लेखक सामाजिक कार्यकर्ता हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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